भारत को नई राजनीति की आवश्यकता- दीपंकर भट्टाचार्य

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भारत को नई राजनीति की आवश्यकता- दीपंकर भट्टाचार्य

पटना.संपूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर आज भाकपा-माले द्वारा 'महामारी व तानाशाही से जूझता भारत' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसे माले महासचिव  दीपंकर भट्टाचार्य, राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राज्यसभा सांसद मनोज झा, सीपीआई (एम) के राज्य सचिव मंडल के सदस्य सर्वोदय शर्मा, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव काॅ. राजाराम सिंह आदि वक्ताओं ने संबोधित किया.  

वेबिनार में कांग्रेस के एमएलए शकील अहमद खान, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर व सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश को भी भाग लेना था, लेकिन टेक्नीकल कारणों से नहीं जुड़ पाए. कार्यक्रम का संचालन माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा ने किया. वेबिनार में माले राज्य सचिव कुणाल सहित कई लोग उपस्थित थे. 

माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि पहले लाॅकडाउन की गहरी मार मजदूर वर्ग, रोजगार और लोकतंत्र पर पड़ी थी. आज ही के दिन पिछले लाॅकडाउन व कोरोना काल में अध्यादेश के जरिए तीन किसान विरोधी कानून लाए गए थे. लगातार छात्र-नौजवानों व मजदूर वर्ग पर हमला जारी है. नई शिक्षा नीति व नए लेबर कानून के जरिए हमला किया गया. पीएम केयर फंड पैसे का कोई हिसाब नहीं दिया गया. कुल मिलाकर, पहले दौर में भाजपा ने आपदा का इस्तेमाल सत्ता को अपने हाथों में संकेन्द्रित करने में किया. डिजास्टर मैनेजमेंट का हवाला देकर आज व्यापक दमन हो रहा है. फिर भी लोगों को इंतजार था कि वैक्सीन आएगा और समस्यायें हल हो जाएंगी. लेकिन आज वास्तविकता हम देख रहे हैं. इस दूसरी लहर में देख रहे हैं कि सरकार किसी भी प्रकार का काम नहीं कर रही है. 

इस दूसरी लहर में जो हमारे अपने बिछड़ गए हैं, उनकी याद में एक मुहिम चलाना है. हमें एक-एक मौत को याद रखना है और इन मौतों से उपजे सवालों को सरकार से लगातार पूछते रहना है. यदि देश में थोड़ी सी संवदेनशील सरकार और राजनीति होती तो हम लोगों को मरने से बचा सकते थे. उन साथियों को श्रद्धांजलि देने का मतलब है, देश मे चल रही आज की राजनीति को बदल देना. इस राजनीति को बदलने की बैचैनी होनी चाहिए. कल 6 जून को दीया व कैंडल जलाकर अपने मारे गए साथियों को याद करें. मोदी जी हर चौथे संडे को सत्ता व आरएसएस की बात करने के लिए मन की बात करते हैं. अब जनता को अपनी बात सुनानी है. इसे एक बड़ी मुहिम व बड़े आंदोलन में तब्दील कर देना है. 

1974 के आंदोलन ने छात्र-युवाओं को झकझोरा था. पिछले बिहार चुनाव में भी ऐसा ही हुआ. छात्र-नौजवानों ने बदलाव के लिए वोट किया, बड़े पैमाने पर छात्र-युवा जीते भी, लेकिन किसान बैकग्राउंड के नेता नहीं जीत पाए. इसलिए किसानों के बीच आंदोलन को मजबूत करना है. संपूर्ण क्रांति से गद्दारी करने वाले लोग आज सत्ता की मलाई चाभ रहे हैं, लेकिन उसके भीतर से निकली सामाजिक न्याय की धारा वामपंथ के साथ लोकतंत्र के प्रति संकल्पबद्ध है. 1974 आंदोलन की उसी भावना को आज नया आकार देना होगा व नई राजनीति स्थापित करनी होगाी. 

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राज्यसभा सांसद मनोज झा ने अपने संबोधन में कहा कि पूरी की पूरी व्यवस्था ऐसी बना दी गई है, जिसमें बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं बच रही है. सरकार चाहती है कि कोई विमर्श ही नहीं हो. लेकिन कोई भी मैंडेट चाहे उसका कितना भी बड़ा साइज क्यों न हो, इस बात का लाइसेंस नहीं है कि आप जो भी चाहें वह करें. जयप्रकाश जी कभी सदन के अंदर में नहीं गए लेकिन उन्होंने सदन के चरित्र को बदल कर रख दिया. दलों या आंदोलनों के रिश्ते को लचीला बनाने की जरूरत है. इसे जमीन पर उतारने के लिए एक व्यापक परिदृश्य की जरूरत है. यदि विपक्ष व नागरिक समुदाय से संवाद करने में सत्ता पक्ष अपने को छोटा महसूस नहीं करता तो आज स्थिति भयावह नहीं होती. बिहार के सहरसा के एक गांव में 78 लोग मारे गए. आंकडा व छवि प्रबंधन के अलावा नीतीश सरकार ने कुछ नहीं किया. आंकड़ों में सरकार मौतों को दर्ज करे या न करे, इतिहास में दर्ज कर लिया गया है. इसलिए इतने लोग गए कि वक्त पर व्यवस्था नहीं की गई. 

सीपीआईएम के राज्य सचिव मंडल सदस्य सर्वोदय शर्मा ने कहा कि संपूर्ण क्रांति ने देश को जनतंत्र के नए आयाम से परिचित कराया. 1966-67 में जब अकाल पड़ा था, लोगों ने बड़े पैमाने पर राहत अभियान चलाया था. जो भी संभव है, रिलीफ कर सकते हैं, हमें आज करना चाहिए. मोदी सरकार देश की जनता से खेल रही है. पूरी तरह से देश की अर्थव्यवस्था व स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है. इस जर्जर स्थिति का बड़े-बड़े बुद्धिजीवी भी आकलन नहीं कर पाए थे. 

ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि लाॅकडाउन के दौरान हमने महिलाओं के सवालों को लेकर मुख्यमंत्री को कई बार ज्ञापन भेजा. जीविका की महिलाओं ने आंदोलन किया, आशा-रसोइयों ने आंदोलन किया, छोटे कर्जों की माफी को लेकर महिलाओं ने आंदोलन किया, लेकिन सरकार ने एक ट्वीट भर किया. सरकार कहती है कि बिहार के विकास में महिलाओं की भूमिका है, लेकिन इन महिलाओं के लिए सरकार क्या कर रही है?  आशा, रसोइया आदि तबकों की मांगों को सरकार ने अनसुना ही किया, कोई सुनवाई नहीं हुई. सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है. स्वास्थ्य क्षेत्र में जिस तरह से निजीकरण बढ़ा है, महिलायें लगातार सवाल उठाते रही हैं. 

अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि आज के ही दिन तीन किसान विरोधी अध्यादेश पारित हुए थे. उसी समय से किसान संगठन विरोध कर रहे हैं. यह लड़ाई चल रही है. लेकिन उन आवाजों को मोदी सरकार लगातार अनसुना कर रही है. आज किसान संपूर्ण क्रांति का झंडा लेकर आगे बढ़ रहे हैं. 74 के आंदोलन में छात्र-युवा थे, आज भी उनके अंदर उबाल है. लोकतंत्र की हत्या की जा रही है. भ्रष्टाचार चरम पर है. ये मुद्दे आज फिर उसी उग्रता के साथ उठे हैं.  सरकार भ्रष्टाचार को संस्थाबद्ध कर रही है और आपदा में अवसर तलाश रही है. इसका पुरजोर विरोध जारी रखना है.

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