उदंती अभ्यारण्य का तौरंगा डाक बंगला

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उदंती अभ्यारण्य का तौरंगा डाक बंगला

<><>अंबरीश कुमार  <>हम जंगल में चल रहे थे .घने जंगल और जंगली भैंसे का इलाका .वैसे इस जंगल में भालू ,हिरन ,जंगली सूअर से लेकर बाघ तक थे पर लोग डरते थे तो भालू से जो अक्सर जंगल में जाने वाले आदिवासियों पर हमला करता .कब हम उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के भीतर पहुंच गए पता ही नहीं चला .अचानक एक बोर्ड पर नजर पड़ी तो समझ आया हम जंगली जानवरों के गढ़ में है .बरसात हो चुकी थी.भीगी मिटटी की गंध अच्छी लग रही थी .पर बरसात फिर होगी यह साफ़ था .बरसात के चलते गाडी चलने में दिक्कत भी हुई क्योंकि भीतर धुंध हो जा रही थी .इस सड़क पर कोई दूसरा वाहन तो नहीं दिखा पर जंगल का रास्ता कब मुड़ जाए पता नहीं चल रहा था .तीखे मोड़ पर गाडी फिसलने का भी डर लगता था .हम अंधेरा होने से पहले डाक बंगला तक पहुंच जाना चाहते थे .फिर अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा तो चंद्रकांत ने कहा , जंगली भैंसों का झुंड सड़क पार कर रहा है इन्हें निकल जाने दें .ये बहुत खतरनाक होते हैं .इधर मुड़े तो गाड़ी भी पलट देंगे .ये सामान्य भैसों से दुगने आकार के लगे .पैरों में नीचे का हिस्सा सफ़ेद था लगा सफ़ेद मोज़े पहन रखें हों .बाघ भी इनसे बचते हैं अगर ये झुंड में हो .बहरहाल वे दूर से ही एक एक कर निकल गए तब जान में जान आई .हम फिर भीगी हुई सड़क पर आगे बढे . <>बीच में ड्राइवर चंद्रकांत एक चेक पोस्ट पर रुका और छतीसगढ़ी में एक आदिवासी से बात करने लगा .पूछने पर बोला महुआ का इंतजाम हो गया .वैसे भी यह महुआ के टपकने और आम के फलने का मौसम था .सड़क के दोनों तरफ आम ,इमली ,महुआ औए सागौन के दरख्त साथ साथ चल रहे थे .पर धीरे धीरे आम इमली के दरख्त कम होने लगे और सागौन आदि के बढ़ने लगे . हम देवभोग के जिस इलाके की तरफ बढ़ रहे थे उधर न तो कोई पेट्रोल पंप मिलना था न ही कोई आबादी का इलाका था .सारा इंतजाम करके ही चल रहे थे .इस जंगल में न तो फोन की कोई लाइन गई थी न बिजली पानी की .अंतिम पुलिस चौकी से जंगलात विभाग के डाक बंगले के चौकीदार को वायरलेस से संदेश दे दिया गया था कि अंधेरा होने से पहले हम पहुंच जायेंगे .ड्राइवर समेत तीन लोगों के लिए रात के खाने का इंतजाम कर लें . <>शनिवार की शाम से लेकर सोमवार की सुबह नाश्ते तक रहना होगा .आसपास कोई बाजार तो था नहीं पास के गांव जाकर ही इंतजाम करना था .आलू ,प्याज से लेकर आटा दाल चावल तेल और किरोसिन का स्टाक रहता था .जंगलात विभाग की गाडी दस पंद्रह दिन में यह सब आसपास के डाक बंगलों में पहुंचा देती थी .बाकी सब्जी ,भाजी से लेकर मुर्गा मुर्गी का इंतजाम आसपास के गांव से हो जाता था .पर जबतक वायरलेस से संदेश नहीं जाता डाक बंगले का गेट भी नहीं खुलता .और शाम के बाद तो बिलकुल नहीं . <>यह डाक बंगला सवा सौ साल से भी ज्यादा पुराना है .सन >खानसामा साहू इंतजार कर रहा था क्योंकि उसे जंगलात विभाग के वायरलेस से भी सूचना कर दी गई थी .इस जगह कोई मोबाइल काम नहीं करता है .फोन भी नहीं था न बिजली आ रही थी .जो पानी लेकर आया वह बहुत ठंढा था पता चला बहुत पुराने कूएं का पानी है . तौरंगा का डाक बंगला परिसर भी जंगल जैसा ही था .साल के कई उंचे उंचे दरख्त से घिरे इस डाक बंगला में दो सूट थे और बीच में डाइनिंग हाल जो पीछे की तरफ से भी खुला हुआ था ,पर दरवाजा था .पीछे आम और कटहल के पेड़ के नीचे रसोई घर था जहां से धुवां निकल कर फ़ैल रहा था .एक बार बरसात हो चुकी थी जिसका असर बरक़रार था .हवा की नमी भी महसूस हो रही थी .थोड़ी ही देर में चाय और बिस्कुट वह ले आया .तब उससे बात शुरू हुई .खानसामा ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी को यह डाक बंगला बहुत पसंद आया था .वे यहां रुके थे .दोपहर के समय आए और दूसरे दिन लौटे थे .शाम के समय परिंदों की चहचहाट से डाक बंगला गुलजार था .हम लोग भी काफी देर तक बरामदे के आगे बने बगीचे में बैठे रहे .गुलाब के फूलों की खुशबू फैली हुई थी .यह बगीचा साल के पेड़ों से घिरा हुआ था .अंधेरा होते ही साहू लालटेन लेकर आया और बरामदे में टांग गया .मोबाइल में नेटवर्क नहीं था इसलिए किसी से किसी तरह का संपर्क होने का सवाल ही नहीं था .मैंने लालटेन की रौशनी में उस स्पाइरल डायरी में नोट दिन में गांव वालों से हुई बातचीत को देखना चाह पर कुछ देर बाद उसे बंद करना पड़ा .ड्राइवर के रात में सोने की व्यवस्था करने के बाद करीब आधा घंटा और बाहर बैठे पर ठंढ के चलते कमरे में जाना पड़ा .हवा भी तेज हो चुकी थी .करीब नौ बजे खानसामा ने बताया कि खाना डाइनिंग हाल में लग चुका है .  <>डाक बंगला के खानसामा भी बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं .कड़कनाथ का स्वाद भी इन्ही खानसामा से मिला था .कुछ देर हम रसोई घर में भी रहे और खाना बनाने का तौर तरीका भी देखा .जिसपर आदिवासियों का असर बरक़रार था .पहले खड़े मसलों को देर तक भूनना फिर सिलबट्टे पर पीसना .रसोई में महुआ की पहली धार वाली मदिरा भी उपलब्ध थी जो वे अपने लिए रखे हुए थे .एक बार बार नवापारा वन्य जीव अभ्यारण्य में ठहरने पर डेक्कन हेराल्ड के साथी अमिताभ ने इसका स्वाद भी चखाया था .उनका दावा था ये किसी भी स्काच से बेहतर होती है .खैर दिन भर की भागदौड से इतना थके हुए थे की खाना खाने बाद जो नींद आई तो सुबह पांच बजे ही उठ पाए .जबकि इतनी जल्दी बहुत कम सोना होता था .बहरहाल तौरंगा का यह डाक बंगला अद्भुत है .

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