मस्जिदों से छेड़छाड़- वोटों की साजिश

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मस्जिदों से छेड़छाड़- वोटों की साजिश

हिसाम सिद्दीक़ी  
बाराबंकी जिले के रामसनेही घाट में सौ साल पुरानी मस्जिद को मिसमार कर दिया गया ठीक उसी तरह जिस तरह छः दिसम्बर 1992 को अयोध्या में चार सौ बरस पुरानी बाबरी मस्जिद मिसमार की गई थी. फर्क सिर्फ यह है कि बाबरी मस्जिद को दिन दहाड़े कारसेवकों के नाम पर इकट्ठा की गई लाखों गुण्डों की भीड़ ने तोड़ा था तो रामसनेही घाट की मस्जिद रात के अंधेरे में एसडीएम ने सरकारी अमले के जरिए बुलडोजर से तुड़वा दी. रामसनेही घाट की मस्जिद तुड़वाने के बाद बाराबंकी जिले के कतुरी गांव के मदरसे समेत कई मसाजिद डीएम आदर्श सिंह के निशाने पर आ गई हैं. रामसनेही घाट की मस्जिद तुड़वाने में बाराबंकी के डीएम आदर्श सिंह और एसडीएम दिव्यांशु पटेल का जितना हाथ है तकरीबन उतना ही हाथ मुसलमानों के दरम्यान मसलकी मामलात का भी है. मस्जिद की तामीर तकरीबन सौ साल पहले हुई थी फिर जब वहां तहसील कायम हुई तो मस्जिद का नाम तहसील वाली मस्जिद पड़ गया. अब उसपर बरेलवी मसलक के लोगों ने कब्जा करके 2018 में नई कमेटी बनाकर सुन्नी वक्फ बोर्ड में गरीब नवाज मस्जिद के नाम पर इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया. गरीब नवाज मस्जिद की कोई तारीख या रिकार्ड नहीं है. इसी का फायदा उठाकर एसडीएम ने उसे तुड़वा दिया. जिला मजिस्ट्रेट आदर्श सिंह और एसडीएम दिव्यांशु पटेल मस्जिद तुड़वाने के लिए इतने उतावले थे कि उन्होने यह भी नहीं देखा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट पूरे उत्तर प्रदेश में इकत्तीस (31) मई तक किसी भी मजहबी इमारत को तोड़ने पर पाबंदी लगा रखी है. वैसे भी योगी आदित्यनाथ सरकार में ऐसा लगता है कि सरकार हर वह काम जरूर करेगी जिसे हाई कोर्ट ने रोका हो. दिसम्बर 2019 में पूरे प्रदेश में शहरियत तरमीमी कानून (सीएए) के खिलाफ मुजाहिरा करने वालों को सरकार ने दंगाई करार दिया, दंगे में नुक्सान के नाम पर बड़ी तादाद में लोगों से वसूली का नोटिस जारी कर दिया गया, उनकी तसावीर के पोस्टर शहर में चस्पा कराए हाई कोर्ट ने दखल दिया, लेकिन प्रदेश सरकार नहीं मानी. इस साल अप्रैल के आखिर में हाई कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में एक हफ्ते का लाकडाउन लगाए तो सरकार इस आर्डर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई जहां से स्टे मिल गया और लाकडाउन नहीं लगा, अब कर्फ्यू के नाम से इकत्तीस मई तक लाकडाउन लगा है. यही हाल मस्जिद का भी हुआ है. 
इस वक्त योगी आदित्यनाथ सरकार मुसलमानों और मसाजिद के साथ जो रवैया अख्तियार किए हुए है वह उनकी सियासी मजबूरी भी है. उत्तर प्रदेश असम्बली एलक्शन आठ-नौ महीने में होने वाला है. अवाम के दरम्यान जाकर अपनी कामयाबियां बयान करने के लिए बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के पास कुछ नहीं है. कोविड-19 की बदइंतेजामियों ने उन्हें और भी पीछे कर दिया है. अब इतनी जल्दी कुछ हो भी नहीं सकता इसीलिए परखा हुआ मुद्दा फिरकापरस्ती और हिन्दू मुस्लिम ही बचा है. मस्जिद गिरवाकर सरकार ने अपने हिन्दू वोटरों को यह मैसेज दिया है कि मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए हमने मस्जिद तुड़वा दी है. अगर कहीं मुसलमानों में इसका रिएक्शन हो जाता लोग सड़कों पर निकल पड़ते तो सीएए मुखालिफ तहरीक की तरह इस बार भी मुजाहिरा करने वालों पर शायद फायरिंग हो जाती तब आरसएस के लोग गांव-गांव जाकर इसका सियासी फायदा उठाते. इस एतबार से मुसलमानों ने सड़कों पर न निकल कर अक्ल व दानिशमंदी का सबूत दिया है. मुसलमानों को खामोश रहना चाहिए और मजबूती के साथ अदालत में मस्जिद का मुकदमा लड़ा चाहिए क्योंकि जानिबदार (पक्षपाती) सरकारों में अदालत ही बेहतर रास्ता होता है. 
रामसनेही घाट मस्जिद के मामले में सरकार की हठधर्मी और फिरकापरस्ती के साथ-साथ जात-पात का भी मजबूत मामला है. इत्तेफाक से इस वक्त बाराबंकी के डीएम आदर्श सिंह और रामसनेही घाट के एसडीएम दोनों का ताल्लुक एक ही कुर्मी समाज से है. अब अगर एसडीएम ने कुछ गलत कर दिया है तो भी डीएम पूरी ताकत के साथ उनके साथ खड़े दिखाई देंगे. जात-पात की जड़े कितनी गहरी हैं इसका अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी के सदर अखिलेश यादव ने कुछ मौजूदा साबिक मेम्बरान असम्बली और एमएलसी व साबिक वजीरों का एक डेलिगेशन बनाकर रामसनेही घाट का दौरा करके डीएम के पास अपना एतराज और एहतेजाज दर्ज करने के लिए भेजा तो उसमें बेनी वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को भी शामिल किया. अब राकेश वर्मा का भी ताल्लुक चूंकि कुर्मी बिरादरी से ही है इसलिए राकेश वर्मा न तो डेलीगेशन में शामिल हुए न किसी मीटिंग में शरीक हुए ऐसे हालात में मुसलमानों को इंसाफ कैसे मिल सकता है? 
बाराबंकी जिला इंतजामिया के अफसरान की दलील है कि इस मस्जिद की मिलकियत के कागजात मस्जिद कमेटी के पास नहीं थे हमने उन्हें पूरा मौका दिया कि वह मस्जिद की जमीन की मिलकियत के कागजात पेश करके साबित करें कि मस्जिद सरकारी जमीन पर नाजायज कब्जा करके नहीं बनाई गई है. उनका यह दावा गलत है क्योकि यह मस्जिद 1968 से वक्फ बोर्ड में दर्ज है और 1959 में इसके लिए बिजली कनेक्शन के कागजात मौजूद हैं, अफसरान ने यह दलील भी नहीं मानी कि 1960 और 1990 में दो बार चकबंदी हुई तो दोनों बार बंदोबस्त में मस्जिद दर्ज है. दरअस्ल एसडीएम और डीएम दोनों ही तहसील वाली मस्जिद के बजाए मस्जिद गरीब नवाज के कागजात मांग रहे थे. यह नाम तो बाद में तब रखा गया जब मस्जिद बरेलवी मसलक के लोगों के जेरे इंतजाम आई और 2018 में वक्फ बोर्ड में इसका रजिस्ट्रेशन हुआ इस लिए मस्जिद गरीब नवाज नाम के दस्तावेज मस्जिद कमेटी पेश नहीं कर पाई. एसडीएम भी इतने उतावले हो गए कि दिन में अपनी कोर्ट में बैठकर मस्जिद के खिलाफ फैसला दिया और रात के अंधेरे में चोरों की तरह अपने ही आर्डर पर अमल कराते हुए मस्जिद तोड़वा दी. 
सब कुछ तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक ही हुआ एक तो मस्जिद तोड़वाई दूसरे कमेटी मेम्बरान और कुछ दीगर लोगों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी. चार-पांच लोग जो शायद यू-ट्यूब चैनल चलाते हैं वह लोग रामसनेही घाट जाकर टूटी हुई मस्जिद की तस्वीरें ले रहे थे. उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. मतलब साफ है कि डीएम आदर्श सिंह हो या एसडीएम दिव्याशु पटेल दोनों यह समझ कर काम कर रहे हैं कि अब कयामत तक प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की ही सरकार रहेगी उन्हे न तो अवाम खुसूसन मुसलमानों की कोई फिक्र है और न अदालतों का खौफ. उन्हें यह एहसास नहीं है कि अगर मुकदमा संजीदगी से चल गया तो उन्हें भी छः दिसम्बर को फैजाबाद के डीएम रहे राम सरन श्रीवास्तव और कप्तान रहे डीवी राय की तरह पूरी जिंदगी अदालतों के चक्कर लगाने में ही गुजर जाएगी.जदीद मरकज़

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