ममता से क्यों बार बार टकरा रहे हैं मोदी ?

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ममता से क्यों बार बार टकरा रहे हैं मोदी ?

प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के महीनों पहले से पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और अबकी बार दो सौ पार का नारा देने वाली भाजपा के बीच कड़वाहट लगातार बढ़ रही है. दोनों दलों के बीच तेज होती सियासत की वजह से कई बार केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा हो चुकी है. अब यास तूफान से हुए नुकसान के राहत और मुख्य सचिव के औचक दिल्ली तबादले के मुद्दे पर भी यह दोनों आमने-सामने आ गए हैं. 

भाजपा और तृणमूल के बीच टकराव का ताजा मुद्दा है यास तूफान के बाद केंद्र सरकार की ओर से राहत के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटवर्ती इलाकों का दौरा करने के बाद कलाईकुंडा एयरबेस पर एक समीक्षा बैठक बुलाई थी. इसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जाना भी तय था. लेकिन तृणमूल नेताओं के मुताबिक, एक दिन पहले ममता को जब अचानक पता चला कि इसमें विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को भी बुलाया गया है तो उन्होंने प्रधानमंत्री दफ्तर को सूचित कर दिया कि ऐसी स्थिति में उनका बैठक में शामिल संभव नहीं होगा. इसी के मुताबिक, समीक्षा बैठक में न तो ममता बनर्जी ने हिस्सा लिया और न ही मुख्य सचिव आलापन बनर्जी ने. उन्होंने एयरबेस पर प्रधानमंत्री की अगवानी के बाद उनको तूफान से बंगाल को करीब 20 हजार करोड़ के नुकसान से संबंधित कागजात सौंपे और वहां से दीघा के दौरे पर निकल गईं. हालांकि ममता ने अधिकृत तौर पर कहा है कि दीघा के तूफान प्रभावित इलाकों का दौरा करने का कार्यक्रम पहले से तय था और वहां प्रशासनिक बैठक भी होनी थी. प्रधानमंत्री की बैठक की सूचना देरी से मिली थी. इसलिए वे प्रधानमंत्री की अनुमति लेकर मुख्य सचिव के साथ दीघा रवाना हो गईं. 

प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक के घंटे भर के भीतर ही केंद्र सरकार ने जब राहत की रकम की घोषणा की तो ओडिशा को पांच सौ करोड़ रुपए दिए गए और झारखंड व बंगाल को मिला कर पांच सौ करोड़. यानी झारखंड और बंगाल के हिस्से में ढाई-ढाई सौ करोड़ की रकम आई है. सरकार ने कहा है कि केंद्रीय टीम राज्य का दौरा कर नुकसान का आकलन करेगी. उसके बाद आगे की सहायता पर फैसला किया जाएगा. 

लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से कलाईकुंडा में आयोजित की समीक्षा बैठक में ममता बनर्जी के शामिल नहीं होने के मुद्दे पर राजनीति लगातार तेज हो रही है. राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अलावा भाजपा के तमाम नेताओं ने इसके लिए ममता पर हमला करते हुए उनको कठघरे में खड़ा किया है. भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक ने अपने ट्वीट में ममता की जमकर खिंचाई की है. 

इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री के ट्वीट के कुछ देर बाद ही शुक्रवार रात को अचानक राज्य के मुख्य सचिव आलापन बनर्जी का तबादला दिल्ली कर दिया गया. उनको 31 मई को दिल्ली पहुंचने को कहा गया है. अभी इसी सप्ताह उनको तीन महीने का सेवा विस्तार दिया गया था. मुख्य सचिव राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रमुख तो थे ही, राज्य में कोविड प्रबंधन का काम भी संभाल रहे थे. इसी वजह से मुख्यमंत्री ने उनको सेवा विस्तार देने की सिफारिश की थी. तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई करार दिया है. घोष कहते हैं, “भाजपा बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी हार नहीं पचा पा रही है. इसलिए वह ममता बनर्जी सरकार को परेशान करने की हरसंभव कोशिश कर रही है.” 

तृणमूल कांग्रेस सांसद सुखेंदु शेखर राय सवाल करते हैं, “क्या आजाद भारत के इतिहास में पहले कभी किसी राज्य के मुख्य सचिव को जबरन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया है? महज इसलिए कि बंगाल के लोगों ने चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी को झटका देते हुए ममता बनर्जी को चुना है.” 

राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि ममता बनर्जी सरकार को सबक सिखाने के लिए ही कानून की आड़ में ऐसा किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बंगाल दौरे पर मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव भी थे. लेकिन उन दोनों ने समीक्षा बैठक में हिस्सा नहीं लिया. जिस अधिकारी को चार दिन पहले ही सेवा विस्तार मिला हो, उसे अचानक दिल्ली बुलाने पर राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं. 

अब शनिवार को ममता ने इस विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए बीजेपी और केंद्र सरकार की जमकर खिंचाई की है. उन्होंने कहा कि पहले समीक्षा बैठक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच होनी थी. इसके लिए मैंने अपने दौरे में कटौती की और कलाईकुंडा जाने का कार्यक्रम बनाया. लेकिन बाद में बैठक में आमंत्रितों की संशोधित सूची में राज्यपाल, केंद्रीय मंत्रियों और विपक्ष के नेता का नाम भी शामिल किया गया. इसलिए मैंने बैठक में हिस्सा नहीं लिया क्योंकि यह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच बैठक थी ही नहीं.. आखिर गुजरात और ओडिशा में तो ऐसी बैठकों में विपक्ष के नेता को नहीं बुलाया गया था. 

जहां तक देरी से पहुंचने का सवाल है, एटीसी ने प्रधानमंत्री का हेलीकॉप्टर उतरने की वजह से मुझे 20 मिनट की देरी से सागर द्वीप से कलाईकुंडा के लिए रवाना होने को कहा था. उसके बाद कलाईकुंडा में भी करीब 15 मिनट बाद हेलीकॉप्टर उतरने की अनुमति मिली. तब तक प्रधानमंत्री पहुंच गए थे. मैंने वहां जाकर उसे मुलाकात की अनुमति मांगी. लेकिन काफी इंतजार के बाद मुझे उनसे मुलाकात की अनुमति दी गई. मैंने प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौंपी और उनकी अनुमति लेकर दीघा के लिए रवाना हो गईं 

लेकिन शाम को प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के दफ्तर से मुझे बदनाम करने के अभियान के तहत लगातार खबरें और बयान जारी किए गए. उसके बाद राज्य सरकार से सलाह-मशविरा किए बिना मुख्य सचिव को अचानक दिल्ली बुला लिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार हमेशा टकराव के मूड में रही है. चुनावी नतीजों के बाद भी राज्यपाल और दूसरे नेता लगातार आक्रामक मूड में हैं. दरअसल भाजपा अपनी हार नहीं पचा पा रही है. इसलिए बदले की राजनीति के तहत यह सब कर रही है. 

ममता ने आरोप लगाया कि मुख्य सचिव को दिल्ली बुला कर केंद्र सरकार तूफान राहत और कोविड के खिलाफ लड़ाई में सरकार को अशांत करना चाहती है. उनका सवाल था कि आकिर केंद्र को बंगाल से इतनी नाराजगी क्यों है? अगर मुझसे कोई नाराजगी है तो बंगाल के लोगों के हित में मैं प्रधानमंत्री का पांव पकड़ कर माफी मांगने के लिए तैयार हूं. लेकिन केंद्र सरकार यह गंदा खेल मत खेले. 

ममता ने केंद्र से मुख्य सचिव को प्रतिनियुक्ति पर बुलाने का आदेश रद्द करने की अपील की. कहा...केंद्र मुख्य सचिव को राजनीतिक बदले का शिकार मत बनाए. 

वैसे, इससे पहले बीते दिसंबर में भाजपा प्रमुख जे.पी.नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद भी केंद्र ने अचानक तीन संबंधित आईपीएस अधिकारियों को डेपुटेशन पर दिल्ली पहुंचने का निर्देश दिया था. लेकिन राज्य सरकार के अड़ जाने की वजह से वह मामला दब गया था. उस समय भी केंद्र और राज्य आमने-सामने आ गए थे. अब इस मसले पर भी दोनों में टकराव तय है. ममता के करीबी एक नेता बताते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर कानूनी सलाह ले रही है. 

वैसे, विधानसभा चुनावों के पहले के घटनाक्रम को ध्यान में रखें तो यह साफ है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़वाहट कभी कम ही नहीं हुई है. चुनाव अभियान के दौरान दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर जिस तरह करारे हमले करते रहे, राज्य के चुनावी इतिहास में उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती. चुनावी नतीजों के बाद यह टकराव थमने या कम होने की उम्मीद थी. लेकिन इसकी बजाय यह और तेज हो रहा है. नतीजों के बाद राज्य के विभिन्न इलाकों में होने वाली हिंसा और फर्जी वीडियो और तस्वीरों के जरिए इस आग में घी डालने की कोशिश किसी से छिपी नहीं हैं. उसके बाद ममता मंत्रिमंडल के शपथग्रहण से पहले ही राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने सीबीआई का नारदा स्टिंग मामले में तृणमूल नेताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने को हरी झंडी दिखा दी और उसके बाद केंद्रीय एजंसी ने एक विधायक और दो मंत्रियों समेत चार लोगों को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई की विशेष अदालत से जमानत मंजूर होने के बाद जिस तरह कलकत्ता हाईकोर्ट ने देर रात उस पर स्टे लगा दिया उस पर सुप्रीम कोर्ट भी सवाल उठा चुका है. इस मुद्दे को भी केंद्र और राज्य के बीच टकराव के तौर पर देखा जा रहा है. 

अब ताजा मामला यास तूफान से हुए नुकसान और इसके लिए केंद्र से मिलने वाली सहायता का है. वैसे, ममता ने दीघा में ही पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री को 20 हजार करोड़ के नुकसान से संबंधित कागजात सौंपे हैं. लेकिन हो सकता है कि हमें कुछ भी नहीं मिले. 

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सेवा विस्तार पर चल रहे मुख्य सचिव का जिस तरह अचानक दिल्ली तबादला किया गया है वह कानूनी तौर पर भले सही हो, उसकी टाइमिंग के कारण सवाल उठना लाजिमी है. एक पर्यवेक्षक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, “दोपहर के समय प्रधानमंत्री की बैठक में शामिल होने की बजाय मुख्यमंत्री के साथ जाना ही कुछ घंटों के भीतर मुख्य सचिव के तबादले की वजह बन गया. पहली नजर में यह बदले की भावना से की गई कार्रवाई ही नजर आती है.” वह कहते हैं कि ममता के प्रधानमंत्री की बैठक में हिस्सा नहीं लेने पर संघवाद की दुहाई देने वाले केंद्रीय नेता और मंत्री इस फैसले के जरिए खुद संघवाद की धज्जियां उड़ाने में जुटे हैं. 

इस बीच, प्रदेश भाजपा ने यह कहते हुए इस मामले से पल्ला झाड़ लिया है कि यह केंद्र और राज्य सरकार के बीच का मामला है और पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है. 

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि क्या राज्य सरकार मुख्य सचिव को दिल्ली जाने की अनुमति देगी या फिर इस मुद्दे पर भी वह केंद्र से दो-दो हाथ करेगी, यह तो समय ही बताएगा. लेकिन कोरोना महामारी के बीच केंद्र और राज्य के बीच लगातार तेज होता टकराव लोकतंत्र के हित में नहीं है. 

 


 

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