पटना.पंचायतों के कामकाज को नौकरशाहों के हवाले करने वाले अध्यादेश की जगह पंचायतों के कार्यकाल को 6 माह बढ़ाने वाला अध्यादेश लाने का जनतांत्रिक निवेदन किया गया है.भाकपा माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि 15 जून को पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. हमारी पार्टी ने बिहार सरकार से लगातार मांग की है कि इस घोर संकट के दौर में पंचायतों के कार्यकाल को 6 माह के लिए बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन सरकार उलटे अध्यादेश लाकर पंचायतों के तमाम अधिकार नौकरशाही को सौंपना चाह रही है. यह पूरी तरह से आत्मघाती कदम साबित होगा.
हमारी पार्टी इस अलोकतांत्रिक निर्णय का विरोध करेगी और इसके खिलाफ 30 मई को राज्यव्यापी विरोध दिवस आयोजित करने का आह्वान करती है. हम अपने कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पंचायती प्रतिनिधियों व आम नागरिकों से इसके खिलाफ अपनी आवाज मुखर करने का आह्वान करते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि कोविड-19 के दूसरे हाहाकारी दौर में जब स्वास्थ्य व्यवस्था नकारा साबित हुई है, तब लोगों की व्यापक भागीदारी से ही इस त्रासदी से उबरना सम्भव हो सकता है. लेकिन यह दुर्भाग्य है कि आज सबकुछ नौकरशाही के जिम्मे छोड़ा जा रहा है और अब पंचायती कामकाज भी उन्हीं के हवाले किया जा रहा है. यह लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म करने का प्रयास तो है ही, साथ ही यह भी प्रश्न उठता है कि क्या पहले से ही कई प्रकार के अतिरिक्त बोझ का वहन कर रही नौकरशाही इस जिम्मेवारी को निभा पाएगी?
पंचायती व्यवस्था के जनप्रतिनिधि जनता से सीधे जुड़े लोग हैं और कोविड-19 के संक्रमण की रोकथाम और सर्वव्यापी टीकाकरण अभियान में उनकी भूमिका व उनका अनुभव विशेष महत्व रखता है. फिर सरकार इस तंत्र का उपयोग क्यों नहीं करना चाह रही है? इस तंत्र के जरिए एक निश्चित अवधि के भीतर टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है और कोविड को लेकर गांव-गांव जागरूकता अभियान भी चलाया जा सकता है, जिसकी अभी सबसे ज्यादा आवश्यकता है.
इसलिए हमारी मांग है कि सरकार नौकरशाही के जिम्मे पंचायतों के तमाम कामकाज सुपुर्द करने वाला अध्यादेश लाने की बजाय पंचायतों के कार्यकाल को 6 महीना बढ़ाने वाला अध्यादेश लाए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बहाल रखने की गारंटी करे.
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