रमा शंकर सिंह
नई दिल्ली के इंडिया गेट से विजय चौक तक का क़रीब ढाई किमी लंबा यह इलाक़ा आज से पहले ऐसा होता था.कई मूर्ख अज्ञानी व्हाट्सऐपिये पिछली बार मुझ से कह रहे थे कि वृक्षों की ये तस्वीरें झूठी है. सौ बरस से अधिक पुराने जामुन के बड़े बड़े वृक्षों की दो क़तारें दोनों ओर और फिर पानी के मानवनिर्मित क़रीने से बनाये जलकुंड जिनके नाम से यह इलाक़ा बोटक्लब कहलाया.और फिर बड़े वृक्षों की एक क़तार दोनों ओर.कुछ बरस पहले तक इन्हीं जलाशयों में नावें चलती थी .इसके बाद सरकारी कार्यालयों का निर्माण हुआ था .वे सब के सब जिनका अपना लॉन और हरित क्षेत्र होता था टूट रहें हैं बल्कि कुछ टूट भी चुके हैं.कृषिभवन , शास्त्री भवन , इंदिरागांधी राष्ट्रीय कलाकेंद्र, उद्योग भवन , जवाहर भवन , विज्ञान भवन , राष्ट्रीय संग्रहालय, उपराष्ट्रपति निवास, राष्ट्रीय अभिलेखागार आदि आदि.
पहले ही बोवडे के रहते सुप्रीम कोर्ट से सभी पर्यावरणीय आपत्तियों को रद्द करवा लिया था और सरकार को सर्वाधिकार कि सब कुछ साफ़ किया जा सकता है. कोई गुजराती आर्किटेक्ट है पटेल उसने कुछ भी विद्रूप बना कर प्रधानमंत्री को यह समझा दिया कि इतिहास में अमर होने का यही तरीक़ा है कि सब भवनों के उद्घाटन पट्ट पर आपका नाम हो.प्रधानमंत्री पर तुग़लक़ चढ बैठा और सैंट्रल विस्टा मंज़ूर हुआ.शुरुआती लागत है २०००० करोड़ रूपया और पहुँचेगी २५०००करोड़ के ऊपर.
सीओए काउंसिल ऑफ आर्किटेक्ट्स का नियम है कि भवन के अंतिम कुल लागत का कम से कम ५-७% और कभी कभी ज़्यादा भी वास्तुशिल्पी अपनी फ़ीस वसूल कर सकता है .कितना हुआ पटेल साहब का ? १००० करोड़ से लेकर १४०० करोड़ की फ़ीस या ज़्यादा भी. बनेगा सो देखा जायेगा क्यों कि अभी तक बताया नहीं कि कैसा बनेगा सिर्फ़ नये संसद भवन का कमोडनुमा ( संडासनुमा ) डिज़ायन ही दिखाया है.नुक़सान क्या होगा या हुआ ? दिल्ली की एतिहासिक विरासत, सैंकड़ों वर्ष पुराने हज़ारों पेड , विश्व की राजधानियों में सबसे खुली हरीतिमा का मैदान आदि !
वो जो राष्ट्रपति भवन के पार कोई ईमारतें नहीं दिख रहीं क्यों कि अंग्रेज ने क़ानून बना दिया था कि वायसराय भवन से करीब पाँच किमी आगे तक का सारा इलाक़ा संरक्षित वन कहलायेगा , रिज ! दिल्ली का रिज वन.कौन कहता है कि मोहम्मद बिन तुग़लक़ मर गया था , देखो आज भी ज़िंदा है. कि नागरिकों की ग़ैरत मर चुकी है।
रमा शंकर सिंह की वाल से साभार
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