जवाहरलाल नेहरू का इंदिरा को लिखे पत्र !

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जवाहरलाल नेहरू का इंदिरा को लिखे पत्र !

जवाहरलाल नेहरू का इंदिरा को लिखे पत्र  ! 
प्रिय इंदु, 
जब तुम मेरे साथ होती हो तो अकसर मुझसे काफी बातें पूछा करती हो. मैं तुम्‍हारे सवालों का जवाब देने की कोशिश करता हूं. लेकिन, अब, जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों उस तरह बातें नहीं कर सकते. इसलिए मैंने सोचा कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की, जो इन दुनिया में हैं, छोटी-छोटी कहानियां लिखा करूं. तुमने हिंदुस्तान और इंग्लैंड का कुछ हाल का इतिहास में पढ़ा है. लेकिन इंग्लैंड केवल एक छोटा-सा टापू है और हिंदुस्तान, जो एक बहुत बड़ा देश है, फिर भी दुनिया का एक छोटा-सा हिस्सा है. अगर तुम्हें इस दुनिया का कुछ हाल जानने का शौक है तो तुम्हें सब देशों का और उन सब जातियों के बारे में जानना होगा, जो इसमें बसी हुई हैं. सिर्फ उस एक छोटे-से देश का नहीं, जिसमें तुम पैदा हुई. 
मुझे मालूम है कि इन छोटी-छोटी चिट्ठियों में मैं तुम्‍हें थोड़ी-सी बातें ही लिख सकता हूं. लेकिन मुझे उम्‍मीद है कि इन थोड़ी-सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि ये दुनिया एक है और इस दुनिया में रहने वाले दूसरे लोग हमारे भाई-बहन हैं. जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया और उसके इंसानों के बारे में मोटी-मोटी किताबों में पढ़ोगी. उसमें तुम्हें जितना आनंद मिलेगा, उतना किसी कहानी या उपन्यास में भी न मिला होगा. 
यह तो तुम जानती ही हो कि यह धरती लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी है और बहुत दिनों तक यहां कोई इंसान नहीं था. इंसानों के पहले सिर्फ जानवर थे और जानवरों से पहले एक ऐसा समय था, जब इस धरती पर कोई ऐसी चीज न थी, जिसमें जीवन हो. आज जब यह दुनिया हर तरह के पशुओं और इंसानों से भरी हुई है, उस समय की कल्‍पना भी मुश्किल है, जब यहां कुछ नहीं था. लेकिन विज्ञान ने इस विषय पर खूब सोचा, पढ़ा है और लिखा है. एक समय ऐसा था, जब यह धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जीव नहीं रह सकता था. और अगर हम उनकी किताबें पढ़ें, पहाड़ों और जानवरों की पुरानी हड्डियों को गौर से देखें तो हमें पता चलेगा कि ऐसा समय सचमुच था. 
तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो. लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था, किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात अपने मन से सोचकर निकाल लें. लेकिन ऐसा होता तो कितने मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते सोच लेते और सुंदर परियों की कहानियां गढ़ लेते. लेकिन जो कहानी देखे बिना ही गढ़ ली जाए, वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं, जितनी किसी किताब से होतीं. ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियां और इसी तरह की और भी कितनी चीजें हैं, जिनसे हमें दुनिया के बारे में पता चल सकता है. मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार रूपी इस पुस्तक को पढ़ें. मुझे उम्‍मीद है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़कर तुम थोड़े ही दिनों में उन्‍हें समझना सीख जाओगी. 
सोचो तो जरा, कितने मजे की बात है. एक छोटा-सा पत्‍थर का टुकड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पन्‍ना हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाए. शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो. कोई भी जबान जैसे उर्दू, हिंदी या अंग्रेजी, सीखने के लिए तुम्हें उसके अक्षर सीखने होते हैं. इसी तरह पहले तुम्हें प्रकृति के अक्षर पढ़ने पड़ेंगे, तभी तुम उसकी कहानी उसके पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी.  
शायद अब भी तुम उसे थोड़ा-थोड़ा पढ़ना जानती हो. जब तुम कोई छोटा-सा गोल चमकीला पत्‍थर देखती हो तो क्या वह तुम्हें कुछ नहीं बताता? यह कैसे गोल, चिकना और चमकीला हो गया और उसके खुरदरे किनारे या कोनों का क्‍या हुआ? अगर तुम किसी बड़ी चट्टान को तोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डालो तो हर एक टुकड़ा खुरदरा और नुकीला होगा. फिर यह पत्‍थर इतना चमकीला, चिकना और गोल कैसे हो गया? 
अगर तुम्हारी आंखें देखें और कान सुन सकें तो वह चिकना गोल पत्‍थर अपनी कहानी तुम्‍हें खुद सुनाएगा. वह तुमसे कहेगा कि बहुत समय पहले एक समय था, जब वह भी एक चट्टान का टुकड़ा था. ठीक उसी टुकड़े की तरह उसमें किनारे और कोने थे, जिसे तुम बड़ी चट्टान से तोड़ती हो. 
शायद वह किसी पहाड़ की तलहटी में पड़ा हुआ था. तब पानी आया और उसे अपने साथ बहाकर छोटी घाटी तक ले गया. वहां से एक पहाड़ी नाले ने ढकेलकर उसे एक छोटी नदी में पहुंचा दिया. उस छोटी नदी से बहकर वह बड़ी नदी में पहुंच गया. इस पूरी यात्रा के दौरान वह नदी के तल पर लुढ़कता रहा. उसके किनारे घिस गए और वह चिकना और चमकदार हो गया. इस तरह वह गोल चमकीला चिकना पत्‍थर बन गया, जो आज तुम्हारे सामने है. किसी वजह से नदी उसे किनारे पर छोड़ गई और वह तुम्‍हें मिल गया. अगर नदी उसे और आगे बहाकर ले जाती तो वह छोटा होते-होते अंत में बालू का एक महीन टुकड़ा बन जाता और समुद्र के किनारे अपने भाइयों से जा मिलता, जहां एक सुंदर बालू का किनारा बन जाता, जिस पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरौंदे बनाते. 
अगर एक छोटा-सा पत्‍थर का टुकड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से जो हमारे चारों तरफ हैं, हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती है. 
सप्रेम 
जवाहर 
तस्वीर : गूगल से साभार , नवम्बर 1949 प्रिंस्टन स्थित अल्बर्ट आइन्स्टाइन के आवास की है। इंदिरा गांधी, अल्बर्ट आइंस्टाइन, जवाहर लाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित जी फ्रेम में हैं। 
धनंजय सुग्गू की वाल से 
 

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