दो टुकड़ों में देश मिला,पर वे इसका रोना नही रोए

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दो टुकड़ों में देश मिला,पर वे इसका रोना नही रोए

हफ़ीज किदवई  
जब दो टुकड़ों में देश मिला,वे  इसका रोना नही रोए. रियासतो का झगड़ा मिला.वे इसका रोना भी नही रोए.शुरुआत में ही महात्मा का साथ छूटा,वोह इस ज़बरदस्त झटके के बावजूद भी मायूस होकर नही बैठे. बहुत से बनने वाले अपनो ने जी भर कोसा,इसपर भी उन्होंने रोना नही रोया.दुनिया ने शक से देखा,उन्होंने उफ़्फ़ तक नाकि. 

मज़हबी रँग से उनपर कीचड़ फेका गया,वे इसपर भी पलट कर जवाब देने नही मुड़े. तमाम दूसरे विचारपंथियों ने उनमे अपने आप को ना देखकरकर खूब आलोचना की.उन्होंने तब भी इनमे से किसी एक को भी देशद्रोही या अपने रास्ते का कांटा नही कहा.बहुतों ने उनकी जड़ो में दही डालने का काम किया,उन्होंने उन्हें भी साथ रखकर दुनिया के सामने लोकतन्त्र  और धर्मनिरपेक्षता की वह मिसाल रखी जिसे आज भी कोई तोड़ नही पाया. 

17 साल देश के शीर्ष पद पर रहे मगर कभी अपने आलोचको को नही दबाया.अडिग अपने काम करते ही रहे.देश की हर उस चीज़ जिसपर तुम फ़ख्र कर सकते हो,उसकी बुनियाद रखी.देश की भुजाओं को जिसने हर दिशा में फैला दिया.जिसकी छाँव में सब धर्म,सब विचार फलते फूलते रहे,उन्होंने किसी को जबरन नही रोका,ऐसी ही आज़ादी का तो ख्वाब बुना गया था. वह आधुनिक तो थे ही मगर उनमे ज़बरदस्त आध्यात्म भी था जो आपको नही दिखेगा.उनकी ज़िन्दगी के तमाम रँग बिखरे पड़े हैं, हर एक अपने मतलब का रँग लिए मतवाला फिरता है. वह आगे देखना चाहते थे मगर पिछली सँस्कृति की अच्छी बातों को सहेजना भी चाहते थे . उनकी दूरदृष्टि जितनी शानदार थी,उतनी ही निकट दृष्टि भी श्रेष्ठ थी . 

आपने तो उन्हें कुछ खास किताबो से जाना जिसपर उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कभी रोक नही लगाई,जमकर अपनी आलोचना करने के मौके दिए.मैं मानता हूँ की गलतियां हुईं होंगी.निर्माण के मार्ग पर बहुत बार गलतियाँ होती हैं मगर इसका मतलब यह नही की वोह व्यक्ति पूरा गलत है.हो सकता है एक बेहतर मुल्क़ की तस्वीर बनाते में आपके धर्म को चोट पहुँची हो मगर उससे ज़्यादा ज़रूरी उन्होंने इस मुल्क को हर जतन से एक किया. आज जो पाकिस्तान और हमारे भारत मे बड़ा फ़र्क है, जिसे आपको छोड़ पूरी दुनिया महसूस करती है.वह यह है की पाकिस्तान को नेहरू जैसा व्यक्तित्त्व नही मिला. वोह देश अस्थिर और असफल है.नेहरू ने हमे स्थिर किया और प्रगति की दिशा दी. 

अफसोस होता है फिर भी कुछ कुंठित लोग नेहरू पर कीचड़ उछालते हैं . हम उनसे पूछते हैं कि दुनिया के उन हिंदुओं के नाम बताओ,जिसका हर धर्म और हर देश सम्मान करता है, तो कई पहले नामों में से एक जवाहर लाल होगा,कहा जाए कि उस ब्राह्मण का नाम बताओ जिसपर दुनिया जान छिड़कती हो और उसके ज्ञान का लोहा मानती हो तो उनमें से प्रमुख नामों में एक नाम पण्डित जवाहर लाल नेहरू हैं . 

अब आपको कुछ मूर्खों की तरफ ले चलते हैं . यह महामूर्ख जवाहर लाल नेहरू को मुसलमान साबित करने में अपने घुटनों पर दिन रात ज़ोर देते हैं . इनको यह नही पता कि जिसको वह ठेल ठेल कर मुसलमान बता रहें,वह पूरी दुनिया मे हिंदुओं का गर्व हो सकता है . पूरी दुनिया देखकर आपको मुस्कुराती की आपके आँगन में इतना शानदार शख्स हुआ है मगर यह वाट्सएपिये ट्रोल लेहड़ी क्या जाने गर्व किसपर किया जाता है . 

ब्राह्मण मेरे तमाम दोस्त रहे हैं . एक से एक शानदार ब्राह्मण उनके घरों में आज भी वैसे ही आना जाना है, जैसे कल था . अपने दोस्तों और उनके मां बाप को भी कभी पण्डित जवाहर लाल नेहरू की बुराई नही सुनी,वह हमेशा पण्डित जी ही कहकर संबोधित करते थे,जानते हैं क्यों,क्योंकि उन्हें पता है उनकी जाति का विश्व मे डंका बजाने वाली शख्सियत है नेहरू जी . मगर इन्ही के घरों में बाद में पैदा हुई नस्ल नेहरू को गरियाती फिरती है, वह नेहरू को ब्राह्मण से,हिन्दू से खारिज करने को बेचैन रहती है, यही तो महामूर्ख हैं जो अपने आँगन की तुलसी में गरम पानी डालकर मस्त होते हैं . 

हमे पता है पण्डित नेहरू जाति, धर्म से ऊपर थे,जैसे तमाम महान लोग होते हैं मगर जिस आँगन में पैदा हुए,वह आँगन कबसे उनसे कटने लगा . कभी यहूदियों को देखा है कि वह आइंस्टीन को मुसलमान कहें,कभी ईसाइयों को देखा है कि वह लिंकन को बौद्ध कहें,भैया हर एक अपने महान चरित्रों को अपना बनाने में लगा रहता है और एक हम हैं कि आज भी नेहरू की पीढ़ियों में इस्लाम खोज खोज कर खुद के सर पर मूर्खो का ताज रख रहे हैं. 

मेरे समझदार ब्राह्मण दोस्त हमेशा कहते थे कि पंडित जी देश का गर्व बाद में हैं, पहले हमारा गर्व हैं,उनके घरों में पण्डित जी की तस्वीर होती थी,वह कहते कि उनके जैसा ही हम सबको बनने का प्रयत्न करना होगा . पण्डित अटल बिहारी भी पण्डित जी की विद्वता के प्रति समर्पित थे मगर क्या ही कहें आजके बौखल लड़कों को जो उनसे भागते हैं,खासकर उनपर तरस आता है, जो पण्डित जी की नस्लों से गोत्र पूछकर इतराते हैं . जो उनका खुद का गर्व हैं . 

हम नेहरू को न हिन्दू मानते हैं और न ही पण्डित मगर क्या दुनिया भी ऐसे ही देखती है . मौलाना आज़ाद को मुसलमान माने या न माने मगर वह मुसलमानो का गर्व तो हैं . हर जाति धर्म अपने गर्व चुनती है, मूर्ख ही होते हैं जो अपने गर्व को बदनाम करते हैं, जो ऐसा करते हैं, वह गर्त में ही जाते हैं और हमे पूरी एक पीढ़ी गर्त की तरफ जाती साफ नजर आ रही है . 

अफ़सोस होता है जो जाति कभी दिशा देती थी,जो कभी विद्वान पैदा करती थी आज वह सिर्फ ट्रोल भर रह गई है और अपने ही पुरखो पर लाठी भांज रही है . उसे कोई वाट्सएप मैसेज ड्राइव कर रहा है, यही तो मिटने की निशानी है .  

यह यक़ीन जानो जिसका दिमाग जितना पिछड़ा होगा,वह उतना ही संप्रदायिक होगा . जो संप्रदायिक होगा उसको दुनिया सम्मान नही देगी,कुछ मुट्ठी भर चिलगोज़ों का वह नायक हो सकता है मगर दुनिया का नायक तो वह तभी होगा जब वह सबका होगा . नेहरू सबके थे,यही बात से तो हमारे तमाम ब्राह्मण दोस्त गर्व करते थे . एक दोस्त तो अक्सर कहता था कि बताओ दुनिया के मशहूर और क़ाबिल लीडर्स में से एक हमारा पण्डित भी है,हम भी मुस्कुरा देते थे,क्योंकि यह सच था . 

यह लिखते हुए अफसोस हो रहा कि पंडित जी को जाति और धर्म के धागे में लपेटना पड़ रहा है मगर करें क्या,हम पण्डित जी के लिए कुछ नही कर रहे,न ही उनके सम्मान को बेताब हैं, वह यह सब अपनी ज़िंदगी मे कमाकर जा चुके,पण्डित जी को हम जैसे क्या सम्मान दिलाएंगे,वह खुद हम जैसों को सम्मान दिला गए हैं . 

हम तो यह उनके लिए लिख रहें जो अगर पण्डित जी को पढ़ लें और उन्हें अपना समझ लें,उनकी ज़िंदगी निखर जाए . इतना होश रखिये की पण्डित जी को जितना खुद से दूर कीजियेगा उतना खुद की पहचान को मटियामेट कीजियेगा . पण्डित जी इस पूरी भूमि का गर्व हैं और पहचान भी हैं, माने या न माने,हमने भी बहुत से बेवक़ूफ़ देखे हैं जो सोना फेक आए और पीतल बटोर लाए... 

हाँ अगर दिल ज़रा से भी प्रेम को जगह देता हो आपका तो देश के इस पहले प्रधानमंत्री को इज़्ज़त से याद कर लेंगे देशभक्ति कम नही पड़ जाएगी. मुझे भी लगता है कट्टर हिन्दू हों या कट्टर मुस्लिम अगर जिसका जमकर विरोध करें,तो वोह ही व्यक्ति सही है . नेहरू हिन्दू मुस्लिम की कट्टर सोच के सामने खड़ी एक बड़ी शक्ति थे . नेहरू में छिपी हर तरह की समझ को समझना मामूली बात नही है.नेहरू चन्द पन्नों के मोहताज नही.जो खुद मोटी मोटी किताबों को लिख गया हो उन्हें समझने के लिए समझ चाहिए . आज ही के रोज़ आपने एक कामयाब तारीख़ बना कर आखरी साँस ली थी. 

आज नेहरू की पुण्यतिथि है, हमे पता है उन्हें याद करने में बहुतों की साँस फूलने लगेगी.हर वोह व्यक्ति उन्हें याद करने में कतराएगा जो आपने धर्म के तो करीब है मगर देश से दूर है.नेहरू जब तक हम हैं तब तक भले अकेले आपको याद करें,करते रहेंगे.मेरे देश के निर्माता आप ही हैं.कोई इसका चाहकर,जितना रूप बदलने की कोशिश करे,ज़र्रे ज़र्रे में पड़ी नेहरू की छाप को खत्म करने में उनके मुँह से ख़ून आ जाएगा,मगर वोह यह बिल्कुल भी मिटा नही पाएँगे. दुनिया के तमाम देशों के महान नेताओं को दोस्त बनाने वाले,सलाह देने वाले,फ़िक्र को सुनने वाले और प्रधानमंत्री रहते हुए किसी गरीब के हाथ अपने गिरहबान तक पहुँचने देने वाले नेहरू को नमन . आपने जो किया है, वह याद किया जाएगा,जो जोभी करेगा उसे आने वाली नस्लें वैसे ही याद करेंगी . पण्डित जवाहर लाल नेहरू एक अमर चरित्र है . हमारे घर के पुरखे महान थे जो उन्होंने पण्डित जी को उनकी आखरी साँस तक उस कुर्सी पर बैठाए रखा,जो भारत का निर्माण कर रही थी,आधुनिक भारत का ऐसा चरित्र जिससे दुनिया बेपनाह मोहब्बत करती थी,जो हर एक का दोस्त था,जो बच्चों से बूढ़ों तक कि जमात में बेधड़क चला जाता था,आज ही के रोज़ हमारी मिट्टी में मिल गया,हमारे पानी मे घुल गया और आजतक हमारी हवाओं में तैर रहा है.....

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