डॉ सुनीलम
आज संयुक्त किसान मोर्चा की अपील पर आज लाखो गांवों और मोहल्लों में नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किया गया तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक करोड़ों
किसानों और मज़दूरों ने काले झंडे लगाकर विरोध प्रदर्शन किया गया.आखिर क्यों ? 26 नवंबर से शुरू किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने और मोदी सरकार के कुशासन के 7 वर्ष पूरे होने पर
संयुक्त किसान मोर्चा ने बतला दिया कि वह आंदोलन को नतीजे तक पहुंचाने के लिए संकल्पित है.475 किसानों के बॉर्डर पर शहीद होने के वावजूद उंसके हौसलों में कोई कमी नहीं आई है.
26 नवंबर से 26 मई के किसान आंदोलन के सफ़र पर जब मैं नजर दौड़ाता हूं, तब मुझे वर्तमान किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान नेताओं पर फक्र होता है.तीन कृषि बिलों को वापस लेने की मांग से शुरू हुआ यह दो दिन का आंदोलन छह माह का सफ़र पूरा कर चुका है.जब 26-27 नवंबर की तारीख तय की गई थी तब किसी भी किसान नेता और संगठन को यह अंदाजा नहीं था कि यह आंदोलन छह माह से अधिक चलेगा.वर्तमान किसान आंदोलन की जड़ मंदसौर किसान आंदोलन पर हुए पुलिस गोली चालन से जुड़ी है, जिसमें छह किसान शहीद हुए थे.मंदसौर पुलिस गोली चालन की प्रेरणा से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति बनी.जिसने दो दिवसीय आंदोलन के लिए सात सदस्यीय संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया ताकि आंदोलन को मजबूती दी जा सके.
जिसमें अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के तीन प्रतिनिधि हनान मौला ,डॉ दर्शनपाल और योगेंद्र यादव शामिल थे.इसके अलावा बलवीर सिंह राजेवाल जी ,जगजीत सिंह डल्लेवाल जी ,शिवकुमार कक्का जी ,गुरनाम सिंह चढूनी जी को शामिल किया गया था.
आज इस आंदोलन का नेतृत्व 9 सदस्यीय समिति कर रही है.जिसमें जोगिंदर सिंह उग्राहान , राकेश टिकैत के प्रतिनिधि के तौर पर युद्धवीर सिंह जी को जोड़ा गया है.
आंदोलन की सबसे ज्यादा ताकत पंजाब में है क्योंकि सिखों ने इस आंदोलन को जीवन मरण का प्रश्न बना लिया है.सिखों के लंगर सेवाएं तथा स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में अगुवाई करने के कारण सिख समुदाय ने देश ही नहीं, दुनिया का दिल जीत लिया है .
परंतु यह याद रखना जरूरी है कि शुरुआत से ही यानी 26 नवंबर से ही आंदोलन के साथ देश भर के 250 किसान संगठन, समन्वय समिति के साथ जुड़े हुए थे अब संयुक्त सँघर्ष मोर्चा में अब इनकी संख्या बढ़कर 550 हो गई है.
संयुक्त किसान मोर्चा की निर्णायक प्रक्रिया पारदर्शी है.समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के फैसले को उसके तीन प्रतिनिधि पहले 7 सदस्यीय समिति में और अब 9 सदस्यीय समिति में रखते हैं.पंजाब के 32 जत्थेबंदियों द्वारा जो निर्णय लिए जाते हैं, वे जनरल बॉडी में रखे जाते हैं.उन पर जो फैसला होता है उसकी घोषणा 9 सदस्यीय समिति द्वारा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से रोजाना की जाती है.
सरकार ने पहले पंजाब के किसानों को हरियाणा से होकर दिल्ली तक पहुंचने से रोका, 20 फुट के गड्ढे किए, ऊंची तार की फेंसिंग लगाई, मिट्टी डाली लेकिन 6 नाकेबंदियों को पार कर किसान जब दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच गए तब उनकी घेराबंदी के लिए बुराड़ी मैदान आवंटित कर दिया गया.किसान झांसे में नहीं आए उन्होंने सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर पर दो जगह गाजीपुर बॉर्डर और पलवल बॉर्डर पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया.भाजपा ने बॉर्डर के धरना स्थल के आसपास के ग्रामीणों को भड़काने की कोशिश की लेकिन उसमें नाकामी हासिल हुई.11 बार की बातचीत में सरकार यह स्वीकार करती रही कि तीनों कानूनों में बहुत कमियां है लेकिन रद्द करने के अलावा विकल्प देने की बात कहते रही.40 किसान संगठनों ने जो वार्ता में शामिल थे कई विकल्प बताएं लेकिन सरकार ने स्वीकार नहीं किए.सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से भी हस्तक्षेप करने का प्रयास किया लेकिन न्यायालय ने धरनों को कानून व्यवस्था के तौर पर स्वीकार करने से इंकार कर दिया.तब सरकार ने अपनी इच्छा अनुसार 4 सदस्यीय कमेटी बनवा ली, जिसे किसानों ने मानने से इनकार कर दिया.सरकार ने 26 जनवरी को किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए गहरी किंतु असफल साजिश की .लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने हिंसक तत्वों से खुद को अलग कर स्थिति को सम्हाल लिया.
सरकार को लगता था कि पांच राज्यों के चुनाव को जीतकर वह देश में एकछत्र राज्य कायम कर लेगी.लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा हटाओ का ना केवल नारा दिया बल्कि उसे मतदाताओं के पास पहुंचाने के लिए सभाएं भी की, परिणाम भी निकला. बंगाल, केरल और तमिलनाडु में अच्छे नतीजे निकले.जिस तरह पंजाब के स्थानीय चुनाव में भाजपा का सफाया हुआ उसी तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा हार गई.तब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने संघ की मदद मांगी और संघ ने भारतीय किसान संघ को जमीन पर संयुक्त किसान मोर्चा से लड़ने के लिए मैदान में उतार दिया.
सरकार ने जब दमन करने का प्रयास किया तब उसका जबाब किसानों ने किसान महापंचायतों के आयोजन के साथ दिया.पूरे देश मे बड़ी संख्या में किसान महापंचायतों में इकट्ठा हुए.
किसानों ने मैदान में हिसार में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का विरोध करते किसानों पर लाठीचार्ज हुआ.मुकदमे लगे ,गिरफ्तारियां हुईं .लेकिन हरियाणा सरकार मुकदमे वापस लेने के साथ साथ पुलिस द्वारा तोड़ी गई गाड़ियों को सुधार कर देने के लिए मजबूर हुई.
मोदी सरकार ने कोरोना से निपटने की बजाय चुनाव प्रचार में तथा कुंभ पर ध्यान लगाया.नतीजतन सरकार की आपराधिक लापरवाही के चलते लाखों भारतीय बिना ऑक्सीजन, दवाई, वेंटीलेटर के असामयिक मर गए.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के आज छह माह पूरे हो रहे हैं, तब मोदी सरकार के कुशासन के भी सात वर्ष पूरे हो रहे हैं.देश की अर्थव्यवस्था 30%लुढ़क चुकी है ,15 करोड़ युवा बेरोजगार हो चुके हैं लेकिन अदानी- अंबानी को तीन लाख करोड़ का मुनाफा हुआ है.2014 की तुलना में गौतम अडानी की संपत्ति में 432 गुना तथा मुकेश अंबानी की संपत्ति 267 गुना बढ़ गई है.दूसरी तरफ महंगाई के चलते किसानों की वास्तविक आमदनी में 30% की गिरावट आई है.इसलिए संयुक्त किसान मोर्चे ने आज देश भर में काले झंडे लगाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले जलाने की अपील की है.
संयुक्त किसान मोर्चा ने बॉर्डर से राजनीतिक दलों के नेताओं को दूर रखा है.बॉर्डर पर पहुंचने वाले विपक्षी नेताओं का सम्मान तो किया गया लेकिन अब तक मंच पर स्थान नहीं दिया गया.यहां तक की संयुक्त किसान मोर्चा ने बंगाल में जो सभाएं की उसमें भी पार्टी के नेताओं के साथ में मंच साझा नहीं किया.यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि समन्वय समिति में जब कर्जा मुक्ति और लाभकारी मूल्य की गारंटी के कानून तैयार किए थे तब जिन 22 पार्टियों ने समर्थन किया, वे आज भी किसान आंदोलन का समर्थन कर रही हैं.पार्टियों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा का स्पष्ट मत है कि पार्टियोन को अपने स्तर पर,अपनी ताकत के साथ जमीन पर किसान आंदोलन का समर्थन करना चाहिए.
अब संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आने वाले चुनाव में भाजपा को हराने की मुहिम चलाने की घोषणा कर दी है.
यदि देश में कोरोना की दूसरी लहर नहीं आई होती तथा लॉकडाउन नहीं होता, ट्रेनें चल रही होती, सब कुछ खुला होता तो आंदोलन का नजारा कुछ और ही होता.
लॉक डाउन के बावजूद 6 महीने में इस आंदोलन ने देश में ही नहीं दुनिया में सबसे लंबे, सशक्त,अनुशासित, अहिंसक, आंदोलन होने का गौरव हासिल कर लिया है.
पंजाब से जब किसान चले थे तब उन्होंने कहा था कि वे 6 माह का इंतजाम करके दिल्ली जा रहे हैं.छह महीने पूरे हो गए अब अगले 6 महीने की तैयारी किसान संगठनों द्वारा की जा रही है.हाल ही में संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्र लिखकर सरकार से तुरंत बातचीत की मांग की है .लेकिन सरकार अभी वार्ता के लिए तैयार नहीं दिखती है.लेकिन यह सर्वविदित है कि सरकार बैकफुट पर है.किसान आंदोलन लगातार मजबूत होता जा रहा है संयुक्त किसान मोर्चा के साथ देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठन ही नहीं, भारतीय मजदूर संघ के अलावा अधिकतर ट्रेड यूनियन साथ खड़े हैं .
इतिहास में पहली बार देश के प्रतिनिधि किसान एवम मज़दूर संगठन एक साथ सरकार के खिलाफ मैदान में हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा मज़दूरों पर थोपे गए 4 लेबर कोड वापस कराने और श्रमिकों को 10हज़ार प्रतिमाह की सरकार से मदद कराने के लिए साथ खड़ा है.आपसी बैठकों का सिलसिला भी शुरू हो चुका है.
संयुक्त किसान मोर्चा का लक्ष्य पंजाब जैसा माहौल पूरे देश में बनाने का है जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष, व्यापारी और कारोबारी, मजदूर और कर्मचारी किसान आंदोलन को साथ देने को तैयार हो.किसान आंदोलन 475 किसानों की शहादत के बाद भी इस संकल्प के साथ चल रहा है कि जब तक 550 किसान संगठनों का एक भी किसान जीवित रहेगा तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा.किसान कानून रद्द कराकर,बिजली बिल वापस कराकर , एमएसपी की गारंटी लेकर ही वापस लौटेंगे.
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