बिहार के मुख्यमंत्री को महागठबंधन का पत्र

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बिहार के मुख्यमंत्री को महागठबंधन का पत्र

आलोक कुमार 
पटना.महागठबंधन के दलों ने आज बिहार में खतरनाक हो चुके कोविड संक्रमण के मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री को इमेल के जरिए 11 सूत्री स्मार पत्र भेजा है.  भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और सीपीआईएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार द्वारा हस्ताक्षरित स्मार पत्र में आज बिहार के मुख्य सचिव के द्वारा कोविड अस्पतालों व कम्युनिटी किचेन सेंटर के सर्वेक्षण से जनप्रतिनिधियों को रोकने के निर्देश को अलोकतांत्रिक व जनविरोधी बताते हुए कड़े शब्दों में निंदा की गई है. 

स्मार पत्र में कहा गया है कि कमजोर स्वास्थ्य तंत्र तथा एक साल का समय मिलने के बावजूद सरकार द्वारा आवश्यक नीतिगत निर्णय लेने व समय पर ठोस कदम उठाने में असमर्थता व इच्छाशक्ति के अभाव के कारण आज ग्रामीण इलाके भी पूरी तरह से कोविड संक्रमण की गिरफ्त में आ चुके हैं. चैतरफा तबाही के बीच ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों की कालाबाजारी, एक बड़ी आबादी के बीच बेकारी, भुखमरी और मंहगाई की बढ़ती मार से लोग त्रस्त हैं. आजादी के बाद की अब तक की सबसे बड़ी इस त्रासदी ने लोगों की जिंदगी के साथ-साथ जीविका पर भयानक हमला किया है और हम बेबस व लाचार महसूस कर रहे हैं. 

इन विषम स्थितियों में विपक्षी दलों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक सहज संवाद स्थापित करने की बजाए सरकार ने असंवेदनहीन रुख व कम्युनिकेशन गैप का ही परिचय दिया है. अधिकारियों का रवैया इस गंभीर त्रासदी से मिलजुलकर निपटने की बजाए जनता के चुने गए प्रतिनिधियों के प्रति बेहद गैरलोकतांत्रिक व असिहष्णु बना हुआ है. जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई समस्याओं का संज्ञान लेकर उसपर त्वरित कार्रवाई करने की तो बात ही छोड़िए, अधिकारी फोन तक नहीं उठाते. 

महागठबंध ने मांग की है कि 

1. वेंटिलेटर और एंबुलेंस की अद्यतन स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करें 
2. विधायक मद की राशि के प्रति लोकतान्त्रिक और पारदर्शी तरीका अपनाएं 
3 सर्वव्यापी टीकाकरण की गारंटी करें 
4. पंचायत स्तर तक जांच का विस्तार करें, 24 घंटे में आरटीपीसीआर रिपोर्ट की गारंटी करें: 
   5. अस्पतालों के तमाम रिक्त पदों पर अतिशीघ्र बहाली करें 
  6. चिकित्सा सेवा का विस्तार करें, उसकी गुणवत्ता बढ़ाएं 
7. तमाम मृतकों के आश्रितों को 4 लाख की अनुग्रह राशि 
8. रोज कमाने-खाने वाले लोगो के लिए राशन और गुजारा भत्ता दिया जा 
9. आशा कार्यकर्ता और सफाई मजदूरों को विशेष भत्ता व बीमा का लाभ दें 
10. एक्सपर्ट कमिटी का अविलंब गठन करें 
11. महामारी के संभावित तीसरी लहर से मुकाबले की तैयारी शुरू करें 

महागठबंधन के दलों ने इन सुझावों पर तत्काल कदम उठाने की मांग की है. 


सेवा में,  
माननीय मुख्यमंत्री महोदय 
बिहार 

महाशय, 
बिहार में कोविड-19 का दूसरा चरण बेहद खतरनाक साबित हो रहा है. कमजोर स्वास्थ्य तंत्र तथा एक साल का समय मिलने के बावजूद सरकार द्वारा आवश्यक नीतिगत निर्णय लेने व समय पर ठोस कदम उठाने में असमर्थता व इच्छाशक्ति के अभाव के कारण आज ग्रामीण इलाके भी पूरी तरह से कोविड संक्रमण की गिरफ्त में आ चुके हैं. हालत यह है कि लोगों को सम्मानजनक मौत भी नसीब नहीं हो रही है. गंगा के विभिन्न घाटों पर मिलती क्षत-विक्षत लाशें इसकी दास्तान बयां कर रही हैं. विडम्बना यह है कि एक तरफ, लोग आॅक्सीजन, वेंटिलेटर, एंबुलेंस आदि के लिए तड़प रहे हैं, ठीक उसी समय भाजपा सांसद के हाते से दर्जनों एंबुलेंस बरामद होते हैं, जिनसे मरीज नहीं बालू ढुलाई का काम हो रहा होता है. इसी तरह रिपोर्ट मिल रही है कि पीएम केयर फंड से बेकार वेंटिलेटर सप्लाई किए गए हैं. बेतिया में भेजे गए 60 वेंटिलेटर में से 57 रद्दी निकले। हमें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि अव्वल दर्जे की  लापरवाही ने ही आज बिहार को ऐसी विषम परिस्थितियों में धकेल दिया है, जहां लोग मौत के साये में जीने को मजबूर हैं. इसे आपराधिक कृत्य नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए? दरअसल, आपदा में अवसर तलाशने की माननीय प्रधानमंत्री महोदय द्वारा शुरू की गई अमानवीय सोच ने ही इस अभूतपूर्व त्रासदी को पैदा किया है और आपकी सरकार ने अपने नकारापन के कारण स्थिति को विस्फोटक बना दिया है. चौतरफा तबाही के बीच ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों की कालाबाजारी, एक बड़ी आबादी के बीच बेकारी, भुखमरी और मंहगाई की बढ़ती मार से लोग त्रस्त हैं. आजादी के बाद की अब तक की सबसे बड़ी इस त्रासदी ने लोगों की जिंदगी के साथ-साथ जीविका पर भयानक हमला किया है और हम बेबस व लाचार महसूस कर रहे हैं. 

इन विषम स्थितियों में विपक्षी दलों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक सहज संवाद स्थापित करने की बजाए सरकार ने असंवेदनहीन रुख व कम्युनिकेशन गैप का ही परिचय दिया है. अधिकारियों का रवैया इस गंभीर त्रासदी से मिलजुलकर निपटने की बजाए जनता के चुने गए प्रतिनिधियों के प्रति बेहद गैरलोकतांत्रिक व असिहष्णु बना हुआ है. 
जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई समस्याओं का संज्ञान लेकर उसपर त्वरित कार्रवाई करने की तो बात ही छोड़िए, अधिकारी फोन तक नहीं उठाते! ये पटना से लेकर दूर-दराज के इलाकों की अद्यतन स्थिति है. विगत 17 अप्रैल को महामहिम राज्यपाल के साथ हुई बैठक में विपक्षी दलों द्वारा एक्सपर्ट कमिटी गठन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन आपने उसपर आजतक कोई नोटिस नहीं लिया. 
जनता का प्रतिनिधि होने के नाते विधायकों का संवैधानिक दायित्व है कि वे महामारी से निपटने के लिए की जा रही व्यवस्था की जांच करें और उसमें यदि कोई कमी हो तो सरकार को अवगत करायें. लेकिन हमें पता चला है कि वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए होने वाली समीक्षा बैठक में सरकार के मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे जनप्रतिनिधियों को कोविड अस्पताल और कम्युनिटी किचेन का सर्वेक्षण न करने दें. हम इसे अलोकतांत्रिक व जनविरोधी निर्देश मानते हैं और आपसे इसे तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं. 

महागठबंधन के दल आज आपको एक साझा स्मारपत्र सौंप रहे हैं, ताकि तत्काल कुछ सकारात्मक कदम उठाए जा सकें, वर्तमान संकट का कारगर ढंग से मुकाबला हो सके और कोविड के संभावित तीसरे हमले से निपटने की आज से ही तैयारी शुरू की जा सके. हमें उम्मीद है कि राजनीतिक संकीर्णता को किनारे करते हुए आम लोगों की जिंदगी व जीविका का ख्याल रखते हुए आप इन मांगों पर यथाशीघ्र व यथासंभव कदम उठाएंगे. 

*1. वेंटिलेटर और एंबुलेंस की अद्यतन स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करें* : पीएम केयर फंड की राशि से आए अधिकांश वेंटिलेटर्स बेकार साबित हो रहे हैं. दरअसल सप्लाई ही रद्दी वेंटिलेटर की हुई है जो चालू होने से पहले ही बेकार हो गए. जो थोड़े बहुत ठीक हैं, उनका टेक्नीशियनों की बहाली आदि जरूरी कदम उठाकर जिला अस्पतालों में इस्तेमाल की गारंटी करने की बजाए सूचना मिली है कि सरकार इन मशीनों को जिलों से वापस मंगाकर निजी अस्पतालों को सौंप रही है. यह आम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना नही तो और क्या है? विगत 15 वर्षों में राज्य में एमपी-एमएलए-एमएलसी व अन्य कोटे की राशि से खरीदे गए एंबुलेंस की वास्तविक स्थिति का भी हमें कोई अंदाजा नहीं है. हमारी मांग है कि इन दोनों मुद्दों पर सरकार एक सप्ताह के अंदर श्वेत पत्र जारी करे और जनता को अद्यतन स्थिति से अवगत कराए. 

2. *विधायक मद की राशि के प्रति लोकतान्त्रिक और पारदर्शी तरीका अपनाएं*: बिना किसी राय/ मशविरे के बहुत ही अलोकतांत्रिक तरीके से विधान सभा और विधान परिषद के हरेक सदस्यों के 2021-22 वित्तीय वर्ष के क्षेत्र विकास योजना मद से 2-2 करोड़ की राशि ले ली गई है। इसके खर्च में भी पारदर्शिता का सर्वथा अभाव है। इसे कहां और किस मद में खर्च किया जा रहा है, सब कुछ अंधेरे में है। विगत वर्ष के कोरोना के समय भी इसी प्रकार 50-50 लाख रुपया ले लिया गया था, लेकिन आज तक नहीं बताया गया कि उसे कहां खर्च किया गया. 

हम सरकार के इस रवैए की तीखे शब्दों में निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि संबंधित जनप्रतिनिधि के क्षेत्र में ही उक्त राशि का खर्च स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने में किया जाए. क्षेत्र विशेष की जरूरत को चिन्हित करते हुए राशि आवंटन की पूरी प्रक्रिया में विधायकों/पार्षदों की सहभागिता व उनकी सलाह को सर्वोपरि माना जाए. इस संबंध में मुख्यमंत्री महोदय से आग्रह है कि नीतिगत निर्णय लें. 

3. *सर्वव्यापी टीकाकरण की गारंटी करें*: सर्वव्यापी टीकाकरण ही हमें कोविड से निजात दिला सकता है. लेकिन यह बेहद दुखद है कि हमारा राज्य इस मामले में पूरे देश में सबसे निचले पायदान पर है. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और बुकिंग की प्रक्रिया के कारण इंटरनेट की सुविधा से वंचित 18 से 44 वर्ष आयु समूह के ग्रामीण गरीबों के लिए टीका मिलना ही असंभव हो गया है. इस आयु समूह के जिन लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा भी लिया है, उनके लिए भी टीका दुर्लभ बना हुआ है क्योंकि टीका का ही अभाव है. 45 से 60 आयु समूह के टीकाकरण की गति भी काफी धीमी है. हमारी मांग है कि तीन महीने के अंदर हर आयु समूह के टीकाकरण की गारंटी की जाए और इसके लिए जो भी आवश्यक कदम उठाने हों, उसे तत्काल उठाया जाए. जरूरत के हिसाब से विदेशों से भी टीका आयात किया जाए. इस मामले में फौरी तौर पर सार्थक कदम उठाये जाएँ और केंद्र सरकार के ढुलमुल रवैय्ये का इंतजार न करें. 

विगत विधानसभा चुनाव के समय प्रधान मंत्री महोदय ने मुफ्त टीका का वादा किया था. लेकिन अब वे इससे मुकर रहे हैं और टीकाकरण का पूरा बोझ राज्य पर डाल दिया है. हम उनसे वादा पूरा करने की मांग करते हैं. हमें भरोसा है सरकार भी इसकी मांग करेगी. इसी तरह, टीकाकरण के लिए केन्द्र सरकार के बजट में आवंटित 35000 करोड़ की राशि में अपने हिस्से के लिए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जाए. हमारी मांग है कि ऑनलाइन पंजीकरण व बुकिंग और आधार कार्ड का झमेला खत्म कर टीकाकरण प्रक्रिया का पंचायत स्तर तक विस्तार किया जाए और स्कूल, वार्ड, आंगनबाड़ी केंद्रों व चलंत टीका केंद्रो के जरिए अधिकतम 3 महीने की समय सीमा में इसे हर हाल में पूरा किया जाए ताकि संक्रमण का खतरा कम से कम हो सके. 

4. *पंचायत स्तर तक जांच का विस्तार करें, 24 घंटे में आरटीपीसीआर रिपोर्ट की गारंटी करें*: यह निर्विवाद सत्य है कि बीमारी की रोकथाम के लिए व्यापक जांच बहुत ही जरूरी है। लेकिन इसमें की गई कोताही के कारण बीमारी का प्रसार गांव तक हो गया है। अब तो निम्न कोटि के एंटीजन किट की  रिपोर्टें भी आ रही हैं. भोजपुर जिला में रोजाना करीब ढाई हजार जांच में महज 5 से 10 लोगों में बीमारी का पता चलना किसी बड़े घोटाले की आशंका पैदा करता है। 

17 अप्रैल की बैठक में ही आरटीपीसीआर जांच बढ़ाने और 24 घंटे के भीतर जांच की रिपोर्ट मिलने की गारंटी करने की सर्वसम्मत मांग उठी थी। लेकिन भारी चिंता व दुख की बात है कि आज भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और रिपोर्ट आने में 10-10 दिन लग जा रहे हैं। हमारी मांग है कि पंचायत स्तर पर जांच की व्यवस्था का विस्तार किया जाए, आरटीपीसीआर जांच की संख्या बढ़ाई जाए और अधिकतम 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट की गारंटी की जाए. 

साथ ही ग्रामीण इलाके में तुरत इलाज कराने, टीका लगवाने और कोरोना से बचाव के एहतिहात का प्रचार कर लोगों को जागरूक बनाया जाए, बीमारी के बारे में वैज्ञानिक समझदारी पैदा करने का प्रयास किया जाए और गाय, गोबर, गोमूत्र से कोरोना के उपचार जैसे अंधविश्वासों का प्रचार करनेवालों पर सख्ती बरती जाए. 

5. *अस्पतालों के तमाम रिक्त पदों पर अतिशीघ्र बहाली करें* : महामारी से निपटने में एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि डाक्टरों, विशेषज्ञों, नर्सों, तकनीशियनों आदि स्वास्थ्य कर्मियों के हजारों हजार पद वर्षों से रिक्त हैं. इस वजह से अस्पताल रहते हुए भी उसका इस्तेमाल संभव नहीं हो पा रहा है। कोविड से बड़ी संख्या में डाक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी न सिर्फ बीमार पड़े हैं बल्कि अनेक लोगों को जान तक गंवानी पड़ी है। कई बार तकनीशियन के संक्रमित होने से जांच बंद तक करनी पड़ी है। इसलिए स्वास्थ्य कर्मियों के खाली पदों पर न सिर्फ बहाली करनी चाहिए, बल्कि उनका एक बड़ा पुल भी बनाना चाहिए, ताकि उनके बीमार पड़ने पर चिकित्सा कार्य प्रभावित न हो. हमारी मांग है कि ऐसे तमाम रिक्त पदों पर पहले आओ - पहले पाओ की नीति के जरिए शीघ्रातिशीघ्र बहाली की जाए. विशेष ट्रेनिंग देकर देहाती डॉक्टरों का भी उपयोग किया जा सकता है. 

6. *चिकित्सा सेवा का विस्तार करें, उसकी गुणवत्ता बढ़ाएं*: उपस्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, रेफरल व अनुमंडल अस्पताल तक कोविड के इलाज की व्यवस्था बढ़ाई जाए। खासकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, अनुमंडल अस्पतालों में ऑक्सीजन युक्त बेड की व्यवस्था की जाए और बेड बढ़ाया जाए. हरेक जिला के सदर अस्पतालों में वेंटिलेटर युक्त आइसीयू की व्यवस्था की जाए. इससे मेडिकल कालेजों पर दवाब घटेगा. अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडर फ्लोमीटर, एंबुलेंस आदि उपकरणों, जांच और जरूरी दवाइयों की पर्याप्त मात्रा की गारंटी की जाए. मेडिकल कॉलेजों में आइसीयू बेड की संख्या में और बढ़ोत्तरी की जाए। उपरोक्त कार्यों के लिए अगर जरूरी हो तो सरकार स्वास्थ्य बजट को पर्याप्त मात्रा में बढ़ाए या अन्य विभाग की राशि डायवर्ट करे. 

शुरू से हमारी मांग रही है कि निजी अस्पतालों में मरीज के इलाज पर हो रहा खर्च सरकार वहन करे. सरकार द्वारा निजी अस्पतालों के इलाज के बारे में जारी आदेश का भी पालन नहीं हो रहा है और इलाज में मनमाना राशि लेने की अनेक रिपोर्टें मिल रही हैं. सरकार इसपर उचित कदम उठाये. 

7. *तमाम मृतकों के आश्रितों को 4 लाख की अनुग्रह राशि दें* : महामारी से एक-एक गांव में 34 लोगों तक की मौत की खबरें आ रही हैं. भरा पूरा परिवार उजड़ जा रहा है और बच्चे अनाथ हो जा रहे हैं. अनेक मौतें ऐसी भी हैं जिनमें कोविड के तमाम लक्षण पाए गए, लेकिन न तो एंटीजन टेस्ट और न ही आरटीपीसीआर जांच पॉजिटिव आया। ऐसे लोगों को सरकार द्वारा तय 4 लाख का अनुदान नहीं मिल पा रहा है. कई लोग किन्हीं कारणों से कोविड की जांच ही नहीं करा सके और मारे गए. यही नहीं अस्पतालों में आम बीमारियों का इलाज बंद होने से भी अनेक लोग समुचित इलाज के अभाव में मारे जा रहे हैं। हमारी मांग है कि सरकार ऐसे तमाम लोगों को 4 लाख की  तयशुदा अनुग्रह राशि प्रदान करे और साथ ही अनाथ हुए बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेवारी ले. 

8. *रोज कमाने-खाने वाले लोगो के लिए राशन और गुजारा भत्ता दिया जाए*:  रोज कमाने-खाने वाले ग्रामीण और शहरी गरीबों, छोटे दुकानदारों, माइग्रेंट वर्कर्स और बेरोजगारों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है. सरकार को इनकी सहायता में बाहें पसार आगे आना चाहिए. राशन कार्डधारियों समेत तमाम गरीबों, बेरोजगारों को आगामी 6 महीने तक सरकार प्रति परिवार 10 किलो सूखा अनाज के साथ 6000 रुपये का गुजारा भत्ता दे. मनरेगा और इसी तरह की शहरी व्यवस्था के तहत ग्रामीण और शहरी श्रमिक वर्ग के लिए काम की गारंटी की जाए. या फिर, 50 कार्यदिवस का डीम्ड वर्क मानकर मनरेगा मजदूरों को उसके समतुल्य पारिश्रमिक का भुगतान किया जाए. स्वयं सहायता समूह व माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों के सभी कर्ज माफ किए जाएं. सब्जी उत्पादक किसानों की सब्जियां खेतों में सड़ रही हैं। सरकार उनके लिए बाजार व फसलों की बिक्री की गारंटी करे और उन्हें फसल क्षति मुआवजा दे. 

9. *आशा कार्यकर्ता और सफाई मजदूरों को विशेष भत्ता व बीमा का लाभ दें*:  सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार ने विशेष महामारी भत्ता और स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की है। लेकिन आशा कार्यकर्ता और सफाई मजदूरों के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है, जबकि वे भी कोरोना वारियर ही हैं. हम सरकार से इन्हें भी उक्त सुविधा देने की मांग करते हैं. 

10. *एक्सपर्ट कमिटी का अविलंब गठन करें*:  हम एक बार फिर आपसे मांग करते हैं कि राज्य में कोरोना प्रबंधन के लिए एक्सपर्ट कमिटी का अविलंब गठन किया जाए, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हों ताकि वे अपने सुझावों और कोविड की अद्यतन स्थिति की जानकारी साझा कर सकें और मिलजुलकर इस महामारी का मुकाबला किया जा सके। 

11. *महामारी के संभावित तीसरी लहर से मुकाबले की तैयारी शुरू करें* : प्रधानमंत्री के चीफ वैज्ञानिक सलाहकार समेत कई विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना का तीसरा चरण संभावित है. सरकार को इसके मद्देनजर विशेष तैयारी करनी चाहिए ताकि बिहार को पिछली बार और इस बार की बर्बाद-बदहाल स्थिति वाली छवियाँ नहीं देखनी पड़े. 
 

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