सौ साल भी ज्यादा पुराने हेब्रोन स्कूल में

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

सौ साल भी ज्यादा पुराने हेब्रोन स्कूल में

अंबरीश कुमार  
हम सौ साल भी ज्यादा पुराने ऊटी के हेब्रोन स्कूल के भीतर थे .हल्की बरसात हो रही थी पर इतनी भी नहीं कि भीग जाएँ .स्वेटर पहने थे . देश के सबसे खुबसूरत बगीचों से घिरा यह स्कूल लगता नहीं था कि भारत में है .पूरा परिवेश ब्रिटिश दौर वाला .क्यों न हो आखिर इसकी नींव पास के कुन्नूर स्थित ब्रुक्लैंड क्रिस्चियन गेस्ट हाउस में वर्ष 1898 में तब पड़ी जब ब्रिटेन से कुछ लोग जो भ्रमण पर आये और यह जगह ,यहां की आबोहवा उन्हें पसंद आ गई .और वर्ष 1902 में यह हेब्रोन स्कूल शुरू हो गया .हम इसी स्कूल परिसर में थे जो ऊटी के बोटनिकल गार्डन के आधे हिस्से में बना बसा है .हम एक बच्चे के जन्म दिन पर उसके लिए कुछ उपहार लेकर आये थे .चाकलेट के कुछ पैकेट और भी कुछ जो उसके मम्मी पापा ने हमें मद्रास से ऊटी जाते हुए दिया था .अपने मित्र प्रदीप कुमार ने ही ऊटी में तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अतिथि गृह को बुक कराया था .तब इंटरनेट नहीं आया था इसलिए मद्रास से ही बुकिंग होनी थी .उन्होंने बुकिंग कराई और कहा कि उनके दोस्त का बेटा ऊटी के हेब्रोन स्कूल में पढता है जिसका जन्म दिन आने वाला है इसलिए उसके लिए कुछ उपहार लेते जाएँ .उन्ही उपहारों के साथ हम इस स्कूल के प्रिसिपल के कमरे में थे .इस बोर्डिंग स्कूल में ज्यादातर गैर भारतीय बच्चे थे .वह छोटा सा बच्चा आया और पापा मम्मी के उपहार देख कर खुश हो गया .उससे ज्यादा खुश हम थे . 
ऊटी की यह मेरी संभवतः चौथी यात्रा थी .इस बार ऊटी में बाजार के पास तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अतिथि गृह में रुकना हुआ .पर कुन्नूर याद आता रहा जहां पहले रुके थे चाय बागान के अतिथि गृह में .बताया गया पास के चाय बागान फिल्म अभिनेत्री मुमताज और उनके पति मयूर वाधवानी के हैं .उनका एक बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर भी है .कुछ और अभिनेताओं के घर भी इधर थे .कुन्नूर ऊटी से कुछ अलग है .ऊटी में भीड़ भी मिल जाती है खासकर बाजार से लेकर झील तक .पर कुन्नूर में शांति है .प्रकृति के बीच रहना हो तो वही जगह ठीक है .धुंध भरी सुबह में आप चाय बगान के परिसर में ही दूर तक जा सकते हैं .रबर से लेकर युकिलिपटिस के दरख्त भी जगह जगह मिल जायेंगे .बहुत इच्छा हो तो कुन्नूर के रेलवे स्टेशन से आसपास घूम आयें. 
उत्तर भारत के पहाड़ी सैरगाह के मुकाबले दक्षिण के पहाड़ी सैरगाह कम भीड़भाड़ वाले हैं .इधर न तो हिमालय है न ही बर्फ गिरती है .पर बरसात इधर ज्यादा होती है .समुद्र पास ही है और तापमान भी बहुत ज्यादा नहीं गिरता .जंगल अभी बचे हुए हैं इसलिए प्रकृति के अलग अलग रंग नजर आ जायेंगे . 
पर कभी भी किसी भी पहाड़ी सैरगाह पर जायें तो कम से कम पांच छह दिन का कार्यक्रम जरुर रखे तभी उस जगह का आनंद ले पाएंगे .कुन्नूर हमें इसीलिए पसंद भी आया .यह एक शांत छोटा सा पर बहुत खूबसूरत पहाड़ी सैरगाह है नीलगिरी का .जो शाम होते ही नीले रंग से घिर जाता है .इसकी धुंध भरी सुबह भी कम सम्मोहक नहीं होती .यहां के कई अतिथि गृह ब्रिटिश दौर के ही हैं .बड़े आलीशान और भव्य .इनके खानसामा भी हुनरमंद है .वे उत्तर भारतीय व्यंजन भी बहुत स्वाद वाला बनाते हैं .सामिष और निरामिष दोनों .नाश्ते में हमने दक्षिण भारतीय व्यंजन ही लेना पसंद किया जो मुझे ज्यादा पसंद है .इडली और उपमा .डिनर में क्या लेंगे यह पूछा गया तो मैंने कहा ,मछली और चावल .  पर रोहू इधर नहीं थी इसलिए प्रान करी के लिए बोल दिया था .दिन भर आसपास जाना होता था इसलिए वे रात के खाने के बारे में नाश्ते के समय ही पूछ लेते थे .दूसरे उन्हें भी सामान का इंतजाम करने बाजार जाना पड़ता था .

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :