चंचल
कमबख्त सियासत की खाल ओढ़े आढ़तियों ने इसे भी प्रहसन के कुंए में डाल दिया . कलेट्टर सांस नाप रहा है . गली गली घूम कर हर आते जाते को थप्पड़ मार रहा है . मारेगा . इसका विरोध क्यों ? ये ओहदे गढ़े ही गए हैं इसीलिए . his master's voice ..
1857 भारतीय इतिहास का टर्निंग प्वाइंट है . अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह होता है . विद्रोह दबा दिया जाता है . उसकी राख में मिला , टुकड़ों में बटा , मरा भारतीय मन . उसके विस्तार में फिलहाल अभी नही . 1857 अंग्रेज को अपने निजाम की फिक्र सताने लगी . 1858 से लेकर 1860 तक अनगिनत नियम कानून बने . कलेट्टर कप्तान , रजिस्ट्रेशन एक्ट वगैरह सब . निजाम की मजबूती और दीर्घायु के लिए . आज तक यह कायम है . कलेट्टर , कप्तान आपके लिए नही हैं ये अपने ' मालिक ' के लिए हैं . मुलाजमत में आने के पहले इन्हें एक शपथ पत्र पर दस्तखत करने होते हैं . संविधान से मिले नियम कानून के तहत चलने का संकल्प . लेकिन मुलाजमत पर चढ़ी बैठी हुकूमत की नकलेल इनके रीढ़ की हड्डी निकाल लेती है . ये अमीबा बन जाते हैं . ऐसा नही कि सब बे रीढ़ के ही होते हैं उनका भी इतिहास है जो इस तमीज के बरक्स तन कर चले भी हैं . बहुत सारे अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ और ये भी जानता हूँ इस जोखिम की सजा भी उन्हें मिली है . BHU के मेडिकल से निकला गौतम गोस्वामी पटना में कलेट्टर था . पटना चुनाव की आचार संहिता में था . देश के तत्कालीन घर मंत्री जनाब लालकृष्ण आडवाणी रात में भाषण कर रहे थे , नियमतः 10 बजे माइक को बन्द होना था , लेकिन मंच पर गृह मंत्री हैं बोल रहे हैं . गौतम मंच पर चढ़ा , माइक पर हाथ रख दिया - सर ! दस बज चुके हैं . हश्र क्या हुआ ? लिख चुका हूं . बिहार लिख चुका है . जानता है . जेल भेजा गया . पागल होकर मरा . विभूति नारायण राय पुलिस के बड़े अधिकारी रहे , साहित्यकार हैं . हासिम पुर , मलियाना में मेरठ PAC के सिपाहियों ने अपने सनकी कमांडेंट के हुक्म पर कई दर्जन मुसलमानों को मार कर हिंडन नदी में फेंकवा दिया . उस समय राय साहब गाजियाबाद के पुलिस कप्तान थे . लाशें उनके क्षेत्र में मिली . कविनगर थाने में बैठ कर खुद रपट दर्ज कराए . मुख्य मंत्री बिर बहादुर सिंह को मालूम हुआ तो राय साहब की तलाश शुरू हुई . उनदिनों हम मयूर विहार में रह रहे थे , राय साहब हमारे यहां बैठे रहे . लम्बी कथा है . मिजाम ने सजा दी . राय साहब को गाजिया बाद से हटा दिया गया .
निजाम तय करता है हमारा कलेट्टर कैसा होगा ?
पंडित नेहरू की आस्तीन खींचा था एक महिला . उसने पूछा था- तुमने कहा था आजादी आएगी , क्या मिला हमे ? भारत का पहला प्रधानमंत्री बोल रहा था - आज तुम एक प्रधान मंत्री का कॉलर खींच रही हो यह कम है ? बूढ़ी महिला ने नेहरू को गले से लगा लिया था . देश के कलेट्टर और कप्तान को यह संदेश नही मिला होगा कि अब हम आजाद है ?
बहु श्रुत खबर है . प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी की कार का चालान किरण बेदी ने काटा था . नियमतः बेदी सही थी . इंदिरागांधी ने बेदी को गौतम नही बनाया था . घर बुलाई . चाय पर . बेदी की तारीफ की . नियम के ऊपर कोई नही है , यह संदेश नही गया होगा प्रधान मंत्री भी नही ? आप कौन सा संदेश दे रहे हैं गुजरात का एक बड़ा पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट जेल में यातना पा रहा है . कौन सा संदेश जाएगा ? His master's. Voice . . गया है एक संदेश छतीसगढ़ के मुख्य मंत्री बघेल का जनता को थप्पड़ मारने का अधिकार कलेट्टर को भी नही है . ये संदेश जाते हैं . नाम दे दे रहा हूँ . विभूति नारायण राय ADGP बन चुके थे , DGP बननेवाले थे . मुलायम सरकार के मंत्रिमंडल को देख कर पुलिस मोहकमे को अलविदा कह दिए . एक दिन हमने पूछा ऐसा क्यों किये ? मुस्कुराए - जिन्हें लॉकअप में होना चाहिए वो मंत्री हैं , अब इन्हें भी सल्यूट देना पड़ेगा ? चलिए . कलेट्टर भी क्या करे उसे जो करना होता है वो न कराके वो कराया जा रहा है जो जो जो , जाने दीजिए . कलेट्टर लाठी लेकर गांव में घूमे कि खेत मे कौन कौन झाड़ा फिर रहा है ? मारो , पकड़ो , दौड़ाओ , कलेट्टर लोटा गिन रहा है . तीन सौ 'अ प्रवासी मजदूर '
(?) पैदल जौनपुर जिले से होकर निकलेंगे . कलेट्टर खाने का इंतजाम करे. लम्बख्त ओहदे का रुतबा न होता और जनमन जाहिल न होता तो ये कलेट्टर भिखमंगो की तरह दर दर भटकता . गाय हमारी माता है , उसे भूसा खिलाओ . भूसा खोज रहा है कलेट्टर . लाकडाउन है सड़क का मुआयना करो . निजाम का चुस्त बंदोबस्त ही उसकी बेहतरी का शिनाख्त है .
लेकिन his master 's voice ?
यह एक विज्ञापन था . 20 वी सदी का बहुचर्चित विज्ञापन . लंदन में मार्क बॉरोड नाम के पर्दा पेंटर थे उनके पास एक कुत्ता था , उसका नाम था निप्पर . बॉरोड ने एक चोंगा बनाया था , उसमे मुह डाल कर निप्पर से बात करता था . कुछ दिनों बाद बॉरोड का देहांत हो गया और निप्पर को बॉरोड का भाई फ्रांसिस अपने घर ले गया लेकिन निप्पर अपने मालिक की आवाज के लिए परेशान रहता . उसके लिए फ्रांसिस ने ग्रामोफोन का चोंगा उसकी तरफ कर दिया . निप्पर का मन बहलने लगा . फ्रांसिस प्रसिद्ध चित्रकार था सो उसने एक पेंटिंग बनाई . बाद में यह पेंटिंग एक ग्रामोफोन कम्पनी के प्रचार में उतरी उसका नाम रखा गया - हिज मास्टर्स वायस . ग्यारह साल बाद निप्पर कि म्रत्यु हुई . बड़े धूम धाम से निप्पर को एक पार्क के कोने में दफनाया गया . आज उसकी बगल से गुजरने वाली सड़क का नाम निप्पर के नाम से है .
एक छोटे कलेट्टर को जान से मारने के आरोप में बाइज्जत बरी हो चुका हूं . , एक अदालत में है 45 साल से . सरकार बहादुर जब मन मे आता है पकड़ ले जाते हैं .इस बार हम जम कर बैठे हैं अदालत जी करो फैसला . ये हकीकत फिर कभी .
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