डा शारिक अहमद खान
जब शायर जोश मलीहाबादी के वालिद फ़ानी दुनिया से कूच कर गए तो यूपी के गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने जोश मलीहाबादी को बुलाया.अंग्रेज़ गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर की जितनी भी तारीफ़ की जाए वो कम है,वजह कि उन्हें हिंदोस्तानियों और हिंदोस्तानी तहज़ीब से मोहब्बत थी,वो ज़ालिम नहीं थे बल्कि आलिम थे,उन्हें उर्दू-फ़ारसी और संस्कृत का बहुत अच्छा इल्म था.जोश को सर बटलर ने ख़त लिखा और उन्हें गवर्नर हाऊस बटलर पैलेस बुलाया,सर बटलर चाहते थे कि जोश को ब्रिटिश हुक़ूमत की नौकरी दे दें.वजह कि जोश के वालिद से सर बटलर की अच्छी दोस्ती थी.
सर बटलर ने कहा कि मैंने तय किया है कि आपको पहले तहसीलदार बना दूँ और कुछ ही वक़्त बाद डिप्टी कलेक्टर.ये सुन जोश नाराज़ हो गए,वजह कि वो गाँधी के साथ थे,हिंदोस्तान की आज़ादी चाहते थे और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उनकी क़लम आग उगलती थी,जोश ने क्रोध में आकर सर बटलर से कहा कि मैं पठान हूँ,मेरे पुरखों से लड़ते-लड़ते एक से बढ़कर एक बहादुरों की तलवारें भोथरी हो गईं.फिर जोश ने बटलर पैलेस पर लहरा रहे ब्रिटिश झंडे यूनियन जैक की तरफ़ इशारा कर कहा कि एक दिन मैं आपका ये यूनियन जैक उखाड़कर फेंक दूंगा.अब ये सुन सर बटलर नाराज़ हो गए,उन्होंने कहा कि मेरी आपके वालिद से दोस्ती थी इसी वजह से मैंने आपके भले के लिए आपके सामने नौकरी का प्रस्ताव रखा,आप एक दिन बहुत पछताएंगे.रहिए गाँधी के साथ.मैं चाहता तो आपको ब्रिटिश गवर्नर से बदतमीज़ी करने के जुर्म में क़ैद करा देता,लेकिन छोड़ रहा हूँ,आप जा सकते हैं.
जोश चले आए.वक़्त गुज़रा,गाँधी शांत पड़ गए,क़लम चोखी रखने से जोश और उनके परिवार का पेट कैसे भरता.उर्दू रिसाले और अख़बार मुआवज़ा ही कहाँ देते थे,मुफ़्त में छापा करते.जोश को नौकरी की तलाश थी,तलाश पूरी हुई.हैदराबाद के निज़ाम मुस्लिम परवर थे,उन्होंने जोश को अपनी रियासत में नौकरी दे दी.जोश मलीहाबादी लखनऊ ज़िले के मलीहाबाद के रहने वाले थे,मलीहाबाद के क़लमी आम बहुत मशहूर हैं.आज मलीहाबादी आम मलीहाबाद से आए हैं.आम के पेड़ दो तरह के होते हैं,एक होते हैं बीजू जो हज़ारों बरस से हैं,दूसरे क़लमी जो आम की क़लम से लगते हैं और जिन्हें हिंदोस्तान में सैकड़ों बरसों पहले मुस्लिम सुल्तानों के दौर में मुसलमानों द्वारा पहल-पहल लगाया गया जब बाग़ लगाने का कल्चर यहाँ शुरू हुआ.मलीहाबादी आम क़लमी आम होते हैं,पूरी दुनिया में इनकी लज़्ज़त के चर्चे रहते हैं.जोश मलीहाबादी के पास भी मलीहाबाद में आम के पैतृक बाग़ थे.जब मलीहाबाद जोश से छूटने लगा और वो दकन के हैदराबाद जाने को हुए तो उन्होंने जो लिखा उसकी कुछ जो याद आ रही हैं उनमें से कुछ यूँ हैं कि
'एै मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्ताँ अलविदा
अलविदा एै सरज़मीन-ए-सुब्ह-खंदा अलविदा
अलविदा एै किश्वर-ए-शेरो शबिस्ताँ अलविदा
अलविदा एै जलवागाहे हुस्न-ए-जानाँ अलविदा
आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुरखरोश
मेरी फ़ुरक़त में लहू रोएगी चश्मे मय फ़रामोश
एै मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्ताँ अलविदा'
ये कह जोश मलीहाबादी दकन चले गए.हैदराबाद के निज़ाम के राज्य में नौकरी करने लगे.
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