दक्षिण से टूट गया अपना रिश्ता नाता !

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दक्षिण से टूट गया अपना रिश्ता नाता !

अंबरीश कुमार  
मद्रास में जयप्रकाश नारायण की छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के संयोजक रहे प्रदीप कुमार नहीं रहे .यह सूचना अपने लिए बहुत दुःख देने वाली है.अपनी ही उम्र वाले थे प्रदीप कुमार . मद्रास में उनका घर अपना दक्षिण का घर था .छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की वजह से .उनका परिवार बिहार से मद्रास आकर बस गया था .जयप्रकाश नारायण से घर परिवार का रिश्ता था क्योंकि उनके पिता श्री शोभाकांत दास जेपी के करीबी थे जो बिहार के दरभंगा /मधुबनी से जुड़े हुए थे .कुछ साल पहले जनसत्ता में 'दक्षिण के गांधी शोभाकांत दास ' हेडिंग से मैंने एक बड़ी स्टोरी भी की थी . जेपी मद्रास में इन्ही के घर रुकते थे .पता था 59 गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट ,मद्रास .कुछ समय के लिए यह मेरा भी पता बन गया था . नब्बे साल के शोभाकांत दास गांधी से प्रभावित होकर सामाजिक और रचनात्मक कार्य से जुड़े और आज नब्बे साल की उम्र में बेटे के विछोह सह रहे हैं .प्रदीप कुमार शोभाकांत जी के पुत्र थे जिनसे अपना चालीस साल का संबंध था .आज वह संबंध टूट गया .प्रदीप कुमार मद्रास में ही पले बढे और उसी मिटटी में मिल गए .मद्रास में उन्होंने हजारों लोगों की मदद की ,पढ़ाई ,रोजगार से लेकर इलाज तक में .बिहार से जो भी आता इलाज के लिए वह बिहार भवन में ठहरता .इस बिहार भवन को शोभाकांत जी ने बनवाया है और प्रदीप इसकी सारी व्यवस्था देखते थे .जो भी आता उसे बीस रूपये में खाना नास्ता और रहने की व्यवस्था हो जाती .जो यह भी न दे पाए उसे बिना पैसे के यह सब सुविधा मिलती है .वे न सिर्फ आंदोलन के लोगों की मदद करते बल्कि गांव गरीब की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते .मेरी आँखों के सामने आज चार दशक की विभिन्न घटनाएं याद आ गई जिन्हें शब्दों में समेटना मुश्किल है . 
अपना संबंध वर्ष 1980 के आसपास से है .वे संघर्ष के दिन थे .मद्रास में जड़ी बूटियों के बड़े कारोबारी श्री शोभाकांत दास ने प्रभावती देवी आश्रम बनाया था जिसके जरिये आसपास के तीस पैंतीस गांव में सामाजिक कार्य होता और गाँव वालों को आत्मनिर्भर बनाया जाता .महिलाओं को कुटीर उद्द्योग से जोड़कर उनके लिए रोजगार के अवसर सृजित किये जाते .जेपी जिन्दा थे तभी यह आश्रम बना था .वाहिनी के दर्जनों साथी इस आश्रम में ठहरते .कई शिविर हुए .अपना ठिकाना गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट ही रहा .जिसे साहूकार स्ट्रीट भी कहते क्योंकि मद्रास स्टेशन के पास बड़ी संख्या यहां मारवाड़ी बस गए थे जिसकी वजह से आसपास के होटल रेस्तरां में भी उत्तर भारतीय खानपान मिल जाता .और पान भी .अपना उस दौर में सौफिया पान का शौक था जो सिर्फ इसी इलाके में मिलता .गली के एक छोर पर .गली भी बरसात के चलते पानी से भरी रहती . और शोभाकांत जी का घर नहीं धर्मशाला थी .खाना खाने बैठते तो पचास से साठ लोग रहते हर दिन .खाना खुद शोभाकांत जी की धर्मपत्नी बनाती एक दो नौकरों की मदद से .सिर्फ खाना रहना ही नहीं वाहिनी के कार्यकर्ताओं का खर्च भी वे ही उठाते .आने जाने का किराया भाड़ा आदि सभी इंतजाम उनका दफ्तर करता .पत्रिका निकालने के संबंध में उन्होंने मुझसे दक्षिण घुमने को कहा .एकाउंटेंट से कहा ,मेरा रहने ,आने जाने के इंतजाम के साथ नकद भी दे ताकि कोई दिक्कत न हो पहली यात्रा पांडिचेरी की थी जिसका पूरा इंतजाम उन्ही ने करवाया .उनकी वह फिएट कार पर भी आना जाना हुआ जो उन्होंने जेपी को ड्राइवर के साथ दी थी बाद में जेपी के निधन के बाद वह लौटा दी गई थी . 
.  शोभाकांत जी के घर के पास ही इंडियन एक्सप्रेस समूह के चेयरमैन श्री रामनाथ गोय्ना का घर था .गोयनका से शोभाकांत जी का पुराना संबंध रहा हैं और उसी वजह से मेरी भी श्री रामनाथ गोयनका से मुलाक़ात हुई और एक्सप्रेस समूह से जुड़ना भी .इस सब में प्रदीप कुमार की बड़ी भूमिका थी .आंदोलन के साथी थे और चाहते थे कि मैं मद्रास में बसकर दक्षिण से हिंदी की एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू करूँ .यह बात चालीस साल पुरानी है .शोभाकांत जी ने दफ्तर के लिए गोविन्दप्पा नायकन  स्ट्रीट  
में ही दफ्तर और मेरे रहने की व्यवस्था की .बहुत बड़ा घर था यह और अब तो इसे नए सिरे से अत्याधुनिक बना दिया गया है .पार्किंग स्पेस के साथ .पर अपना मन नहीं लगा मद्रास में और बाद में बंगलूर के अख़बार से शुरुआत की .खैर दो साल पहले जब चेन्नई गया तो शोभाकांत जी और प्रदीप कुमार ने फिर पत्रिका की बात कही . प्रदीप मुझे गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट ले गए दिखाने .बहुत बदल गया था .प्रदीप जी ने अपना दफ्तर भी दिखाया जो कारपोरेट स्तर का था .अब जड़ी बूटियों के कारोबार का आधुनिकीकरण हो गया था .पर पिछले साल से इस परिवार पर आफत आई .प्रदीप कुमार को ब्रेन हैम्ब्रेज हो गया .महीनो इलाज चला .ठीक हो गए पर अचानक कल रात वे खाने के बाद उनकी तबियत बिगड़ी और अस्पताल के रास्ते में उनका निधन हो गया .आज सुबह उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया .नब्बे साल के शोभाकांत दास के सामने उनके इकलौते पुत्र प्रदीप कुमार को सबने विदाई दी .एक पिता के लिए इससे बड़ा दुःख क्या होगा .बहुत याद आयेंगे प्रदीप जी .  
 

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