चाय के लिए साढ़े चार हजार किलोमीटर की यात्रा !

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चाय के लिए साढ़े चार हजार किलोमीटर की यात्रा !

अंबरीश कुमार  
भारी बरसात में चाय बागान को पार हम यहां पहुंचे थे . यह ब्रिटिश काल की एक पुरानी इमारत थी .डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुरानी जैसा बेयरे ने बताया . कुछ देर बाद ही हम इसके बरामदे में थे,चाय के साथ .चारो ओर बादल उमड़ रहे थे और धुंध बरामदे में भर गई थी .पर चाय पीने में मजा आ रहा था इसलिए भीतर कमरे में या डाइनिंग हाल में जाने की पेशकश ठुकरा दी . यह कुन्नूर की सबसे पुरानी हवेली में से एक है सिंगारा एस्टेट रोड में . इसकी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है क्योंकि यह भारत में उनके शासन के दौरान ब्रिटिश अफसरों का घर था. यह एक शानदार होम स्टे वाली जगह है . इस कोठी में छह कमरे थे और हर कमरे का नाम एक चाय के नाम पर रखा गया है .हम दोपहर बाद यहां पहुंचे थे .चेन्नई से तो सुबह ही चल दिए थे पर मौसम की वजह से छोटे जहाज को उड़ान भरने में देरी हो गई .पर दोपहर बाद तक पहुंच गए और यहाँ की एक मशहूर ब्रांड की चाय का स्वाद भी ले लिया .मौसम भी तो चाय पकौड़ी का था जो पहुँचते मिल गई थी .इसी चाय पर कल से चर्चा हो रही है . 
कल चाय दिवस था .कई मित्रों ने चाय पर लिखा .पर यायावर और लेखक सतीश जायसवाल ने चाय पर अपनी शुक्रवार पत्रिका में जो लिखा है वह अभी भी पढने वाला है .बहरहाल चाय का अपना शौक बहुत पुराना है और एक बार इसी चाय के चलते साढ़े चार हजार किलोमीटर की यात्रा हुई .बात नब्बे के दशक की है .एक चाय कंपनी शुरू हुई थी कुन्नूर में .इसी कंपनी के चाय के ब्रांड का लांच समारोह था .इस कंपनी की अपनी एयरलाइन्स भी थी अब तो वह बंद हो चुकी है .खैर अपना भी जाना हुआ जनसत्ता की तरफ से कुछ मित्र फाइनेंशियल अख़बारों के भी थे .दिल्ली से चेन्नई . 
चेन्नई में बरसात हो रही थी रात में एयरपोर्ट के पास एक होटल में रुकना हुआ पर मैरिना समुद्र तट पर कुछ घंटे गुजारे .सुबह छोटे जहाज संभवतः किंग एयर की लगभग दर्जन भर सीट वाले चार्टर्ड जहाज से कोयम्बतूर की तरफ निकले .छोटा जहाज बहुत ज्यादा उंचाई पर तो उड़ता नहीं है इसलिए हेलीकाप्टर की तरह नीचे का दृश्य भी देखना अच्छा लगता है .समुद्र की तरफ से उड़े थे और पहाड़ की तलहटी तक जाना था .उसके आगे की यात्रा के दो विकल्प थे या तो कार से जाएं या फिर छोटी ट्रेन से जो समय बहुत लेती है .इस ट्रेन से अपनी यात्रा दो बार हो चुकी थी इसलिए कार से जाना ही बेहतर लगा .बरसात कोयम्बतूर में भी थी .दरअसल समूचे तटीय इलाके में बरसात रुक रुक कर हो रही थी .छोटे जहाज में एक दिक्कत और होती कि ज़रा सा भी बादल आ जाए तो जहाज को हिला कर रख देता है और जिन्हें इसका अनुभव न हो वे काफी डर जाते है .मुझे पूर्वोत्तर की बीएसएफ के एक छोटे जहाज एवरो की यात्रा का अनुभव था इसलिए ज्यादा डर तो नहीं लगा .फोटो साभार टी नेस्ट कुन्नूर .जारी   
 

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