मार्कंडेय
आज पीछे मुड़कर देखते है और आज के हालात में सरकार हजार रुपये का एक गैस बर्नर भी दे देती है, तो कितना चिल्लाती है .ये देखकर अहसास होता है कि हमे कितना दिया गया और कभी जताया तक नही गया.एक अच्छा विचार, एक राजनेता ने कैसे लागू किया ये नवोदय विद्यालय , एक श्रेष्ठ उदाहरण है इस बात का...
राजीव गाँधी के बारे में अनेक भ्रम फैलाए गए है , पर अगर उनकी नीतियों का विश्लेषण करे ,तो भविष्य की दूरगामी सोंच दिखती है .
कौन ऐसा नेता होगा , जो जानता है की आसू का पूरा आन्दोलन झूठ पर आधारित है , और इस झूठ को आसाम की जनता वैलिडिटी भी दे रही थी , फिर भी वह आसाम अकॉर्ड कर ३० साल के नौजवान प्रफुल्ल कुमार महंत को मुख्यमंत्री बना देते है , और कहते है , अब तुम खुद इसका हल निकालो . वह नौज़वान १० साल मुख्यमंत्री रहकर भी हल नहीं निकाल पाता है , क्योंकि उसे मालूम है कि अगर ट्रांसपेरेंट छान-बीन हुयी ,तो उसके प्रोपेगंडा की हवा निकल जायेगी , उसकी राजनीति की साख चली जायेगी .आखिरकर इतिहास ने सिद्ध कर दिया कि वह आन्दोलन कितना झूठा और अमानवीय था . क्षेत्रीय अस्मिता की राजनीति ने कितना बड़ा अपराध किया . उस आन्दोलन के युवा अब बूढ़े हो चुके है , और उनमे से कईयों के पास अपनी गलती को स्वीकार कर पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं है .
प्रभाकरन ने अपना उद्दंड अहम् त्यागा नहीं होता , तो आज श्रीलंका में तमिल समस्या का हल निकल गया होता . अपार मानवता को कष्ट न मिला होता . श्रीलंका में कितना विरोध सहकर और अपने जान को खतरे में डालकर उन्होंने तमिल जातीयता की समस्या का बेहतरीन हल निकाला था . तुर्रा यह आज वही शांति समझौते के आधार पर श्रीलंका में पारित विधेयक को लागू करवाना ही तमिल जनमानस का लक्ष्य बना हुआ है , जिसे कभी प्रभाकरण ने इनकार कर दिया था .
बिना बाबरी मस्जिद गिराए हुए राम चबूतरे के आस -पास राम मंदिर निर्माण की सहमति लगभग हो चुकी थी , शिलान्यास भी हो गया . विहिप /आरएसएस को मजबूरी में यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा , कि तभी मुस्लिम पक्ष ने नादानी दिखाते हुए कोर्ट का जो रुख किया कि विहिप /आरएसएस को एक बार फिर मौका मिला , और अब "मंदिर निर्माण " की जगह "मंदिर वही बनायेंगे" का नारा गढ़ा गया , जिसमे मस्जिद को ध्वस्त करना सुनिश्चित था .रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद कोई ज़मीन के टुकड़े का मामला नही था . यह साम्प्रदायिकता की राजनीति का मामला था . ये जितना ज्यादा बढ़ता , उतना ही देश - समाज का नुकसान होता है . राजनीति में साम्प्रदायिक ताकते मज़बूत होती . इतिहास ने राजीव की चिंता को सही साबित कर दिया .
बेफोर्स की असलियत सबके सामने है . कितनी बड़ी विडंबना है कि जिस बेफोर्स सौदे में वित्त मंत्री वीपी सिंह का दस्तख़त है , वही उस सौदे में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दोषी ठहरा रहा है , पर खुद वी . पी . सिंह दोषमुक्त है . भ्रष्टाचार का प्रोपेगंडा रचकर और एक फकीर / मसीहाई के रूप में वीपी सिंह को प्रस्तुत कर किस प्रकार एक आधुनिक राजनेता राजीव गांधी की ह्त्या की गयी , सबको पता है .बाते बहुत सी है , एक पुरानी पोस्ट , जिसमे नवोदय विद्यालय के alumni ने राजीव गांधी को याद किया है .
राजीव गांधी की उम्र 47 साल थी जब उनकी हत्या हुई . वे मात्र 40 साल के थे जब प्रधानमंत्री बने. हम सब नवोदयन्स राजीव गांधी के ऋणी है... मैं खुद कम से कम 1000 ऐसे लोगो को जानता हूँ जिनके जीवन, जिनकी करियर में नवोदय का बहुत बड़ा योगदान है. अगर नवोदय विद्यालय न होता , तो आज वे जो ओहदा, रुतबा, सफलता हांसिल कर पाए है , कभी न कर पाते . मैं भी उनमे से एक हूं.
आज अगर हम उन्हें याद न रखें तो सही नही है. 1984 में वे प्रधानमंत्री बने और 1985 में उन्होंने इस देश के गरीब देहात के प्रतिभाशाली बच्चों को एक उच्च कोटि की शिक्षा मिल सके , इस इरादे से नवोदय विद्यालय की नींव रखी. जरा गौर कीजिएगा की कितनी बेहतरीन व्यवस्था की थी उन्होंने ...
- एक जिले में से छठी क्लास से 80 बच्चों को प्रवेश परीक्षा से चयनित किया जाएगा.
- उन 80 में से 16 (20फीसद) शहरी विस्तार से होंगे बाकी 64 ग्रामीण इलाको से होंगे . ऐसा इसलिए कि , अगर ऐसा न होता तो ग्रामीण इलाकों से कम ही लोग क्वालीफाई कर पाते.
- इन चयनित बच्चों को राजीव गांधी जिस दून स्कूल में पढ़े थे , बहुत कुछ उस जैसी बोर्डिंग स्कूल में निशुल्क पढ़ाया जाएगा...
- निशुल्क माने , ये मान लो सरकार उनको अगले 6 साल के लिए गोद लेगी, भोजन, पढ़ाई, रहना, कपड़ा सब फ्री.
- यहां तक कि टूथ ब्रश, साबुन, हेयर आयल, घर से आने जाने का टिकट , सब कुछ फ्री. मानो वे सरकार के बेटे बेटिया है.
-पढ़ाई, खेल कूद, विज्ञान, कला संस्कृति आदि सब की ट्रेनिंग दी जाती है.
- नौवीं में Migration होता है , जिसके तहत 15 बच्चों को उस राज्य से बाहर किसी और स्कूल में Migrate किया जाता है, ताकि बच्चे एक दूसरे के राज्य रहन- सहन को जाने देश मे एकता बढ़े.
- जाति, धर्म, पैसा ,रसूख के आधार पर कोई भेदभाव नही किया जाता था, सब को एक नजर से देख जाता था.
- आज देश में 661 से ज्यादा ऐसी स्कूल है, सारी की सारी लगभग एक जैसी ही है .- अब तक 10 लाख से ज्यादा लोग इससे पास आउट है.- इस वर्ष 2018 में ही करीब 400 से ऊपर नवोदयँ आइआइटी IIT के लिए क्वालीफाई हुए हैं.
मुद्दे की बात ये है कि इतना सारा देने के बाद भी हमने कभी राजीव गांधी या सोनिया , राहुल के मुंह से उसकी क्रेडिट लेते न देखा न सुना....वो पैसे जनता के थे और हम जनता से चयनित होकर आए थे, हमे वो हक से दिया , हक समझ के दिया.
कभी हमको किसी उपकार की भावना से नही जताया गया. मुफ्त का खाया या मुफ्त की पढ़ाई की ऐसा किसी ने नही कहा...
जब उनकी हत्या हुई तब हम नवोदय में ही पढ़ रहे थे, मुझे याद भी नही कि मैं कोई ज्यादा दुखी भी हुआ होगा , क्योंकि हमें वो हक इतनी सहजता से दिया गया था हमे उसका कोई महत्व तक पता नही था.
आज पीछे मुड़कर देखते है और आज के हालात में सरकार 1000 रुपये का एक गैस बर्नर भी दे देती है, तो कितना चिल्लाती है .ये देखकर अहसास होता है कि हमे कितना दिया गया और कभी जताया तक नही गया.एक अच्छा विचार, एक राजनेता ने कैसे लागू किया ये नवोदय विद्यालय , एक श्रेष्ठ उदाहरण है इस बात का...
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments