लाशें आंकड़ा भी नहीं बन पा रहीं-माले

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लाशें आंकड़ा भी नहीं बन पा रहीं-माले

लखनऊ. भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कहा है कि योगी सरकार में कोरोना से मौत होने पर इंसानी लाशें आंकड़ा भी नहीं बन पा रहीं, सम्मानजनक बिदाई तो दूर की कौड़ी है. पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने गुरुवार को जारी बयान में कहा कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते योगी सरकार कोविड व्यवस्था की अपनी विफलताओं को छुपाने की हर कोशिश कर रही है.उसका पूरा जोर जानें बचाने पर कम, मौतों को छुपाने और अपनी छवि चमकाने पर ज्यादा है.इसी के चलते पंचायत चुनाव में डयूटी करने वाले छह सौ से ऊपर की संख्या में कोरोना से जानें गंवा चुके शिक्षकों-कर्मचारियों की मौतें सरकारी आंकड़ों में महज तीन की संख्या में दर्ज हुई हैं, जबकि संबंधित शिक्षक संगठन ने बाकायदा मृतकों की सूची जारी की है.लेकिन सरकार की नजर में यह मिथ्या प्रचार है. 

कामरेड सुधाकर ने कहा कि यही नहीं, सरकार के अधिकारियों को उन्नाव, बलिया, गाजीपुर के बाद प्रयागराज के घाटों पर हजारों की संख्या में दफन और गड़ी लाशें भी दिखाई नहीं पड़ रहीं, जिन्हें हवाओं ने बालू की परतें उड़ाकर सामने ला दिया है.कफन में लिपटी और बालू में दफ्न लाशें सरकारी आंकड़ों में भी दफ्न हो चुकी हैं.लेकिन ये सत्य की परतें हैं जो श्मशानों-कब्रिस्तानों से लेकर नदियों और घाटों पर बेशुमार बिखरी पड़ीं हैं.जिन्हें सरकार चाहकर भी दफन नहीं कर सकती.ये सरकारी झूठ की परतों को हर दिन बेनकाब कर रही हैं. 

सुधाकर ने कहा कि इस सबके बावजूद खुद सरकारी आंकड़ों में राजधानी लखनऊ कोरोना से मौतों में शीर्ष पर है.पिछले 24 घंटों के आंकड़े गवाह हैं.राजधानी का यह हाल है.ग्रामीण इलाकों में संक्रमण और मौतों का कोई पुरसाहाल ही नहीं है.योगी सरकार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की कड़ी फटकार कि ग्रामीण चिकित्सा व्यवस्था 'रामभरोसे' है, से भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.जब तक सरकार की नजर गांव की ओर मुड़ती, हजारों लाशें बिछ चुकी थीं. 

माले नेता ने कहा कि योगी सरकार राजनीतिक लाभ के लिए कोरोना जांचों, संक्रमितों और मौतों के सही आंकड़े प्रदर्शित न कर चिकित्सा अनुसंधान को भी भारी नुकसान पहुंचा रही है.वैज्ञानिकों के अनुसार, कोरोना से लड़ाई में सही डेटा एक प्रमुख हथियार है.अगर आंकड़े सही नहीं होंगे, तो सही दवा-इलाज भी विकसित नहीं किये जा सकते.मगर सरकार को, चाहे योगी की हो या मोदी की, इसकी परवाह ही नहीं है.अगर परवाह होती, तो कोरोना की दूसरी लहर की वैज्ञानिक चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया गया होता.जांच, दवाई और टीका की उपलब्धता सुनिश्चित करने के बजाय ताली-थाली के बाद डार्क चॉकलेट, कोरोनील, गोबर, गोमूत्र, हनुमानचालीसा, गायत्री मंत्र का झुनझुना थमाया जा रहा है.

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