नई दिल्ली. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के कद और पद में पार्टी/सरकार ने कतरब्योंत की .पर संघ ने दखल दी तो उनके पर जोड़े भी गए . अब उन्हें फिर से सभी कैबिनेट कमेटियों में शामिल कर लिया गया है. हालांकि बताया जा रहा है कि ऐसा इस्तीफे की धमकी और आरएसएस के हस्तक्षेप से ही संभव हो पाया. इस तरह से राजनाथ सिंह अब सरकार की छह कैबिनेट कमेटियों के सदस्य हो गए हैं. हालांकि अभी भी अमित शाह से पीछे हैं जो 8 कमेटियों के सदस्य हैं. बताया जाता है कि ऐसा आवास आवंटन और नियुक्तियों के लिए बनी कमेटी में गृहमंत्री के रहने की अनिवार्यता के चलते हुआ है.
बृहस्पतिवार की सुबह पैनलों के सदस्यों के नाम सामने आए थे जिसमें सुरक्षा और आर्थिक मामलों की समिति के अलावा किसी भी दूसरी कमेटी में राजनाथ का नाम नहीं था. लेकिन रात में अचानक 10 बजे के आस-पास कमेटियों की दूसरी सूची जारी हो गयी जिसमें राजनाथ सिंह को उनमें से छह में शामिल कर लिया गया था. जिसमें उनको राजनीतिक मामलों की समिति में न केवल नंबर दो पर स्थान दिया गया बल्कि संसदीय मामलों की समिति की अध्यक्षता भी उन्हें सौंप दी गयी. इसको लेकर दिन भर सत्ता के गलियारे में चर्चा गरम रही. चूंकि तकनीकी तौर पर राजनाथ का सरकार में नंबर दो का स्थान है. बावजूद इसके उनका दूसरी महत्वपूर्ण कमेटियों से बाहर रहना हर किसी के लिए अचरज की बात थी. बताया जाता है कि राजनाथ सिंह भी इसको लेकर अपसेट थे. और उन्होंने आरएसएस नेतृत्व से बातचीत की.
“दि टेलीग्राफ” के हवाले से सामने आयी खबर में बताया गया है कि उन्होंने इस्तीफे तक का प्रस्ताव दे दिया था. हालांकि इसकी स्वतंत्र रूप से अभी पुष्टि नहीं हो पायी है. एक सूत्र के मुताबिक “मुझे पता चला है कि पीएम मोदी ने राजनाथ जी से बात की है और उनको अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया है.”
बीजेपी के एक नेता ने कहा कि यह अपमानित करने वाली बात थी और राजनाथ सिंह ऐसे नेता नहीं हैं जिसे वो नजरंदाज कर दें.राजनाथ के करीबी इन नेताओं का कहना है कि कमेटी के पुर्नगठन के बावजूद सब कुछ अच्छा नहीं है. राजनाथ बहुत खिन्न हैं.अमित शाह का सभी कमेटियों में रहना कोई गैरवाजिब बात नहीं थी क्योंकि गृहमंत्री रहते यह उनका अधिकार है और मोदी के पिछले कार्यकाल के दौरान गृह मंत्री रहते राजनाथ सिंह भी सभी कमेटियों के सदस्य थे.
लेकिन मामला गंभीर तब हो गया जब उन्हें राजनीतिक मामलों और संसदीय मामलों की समिति तक में नहीं रखा गया. जबकि एक वरिष्ठ नेता होने के नाते राजनीतिक मामलों में उनकी उपयोगिता बढ़ जाती है साथ ही संसदीय मामलों का इतने सालों का अनुभव होने के नाते वह संसदीय मामलों की समिति के स्वाभाविक दावेदार हो जाते हैं. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो यह माना गया कि भले ही वह तकनीकी रूप से नंबर दो हों लेकिन सभी व्यवहारिक उद्देश्यों के लिहाज से अब अमित शाह को वह जगह दी जा रही है.
यह मामला तब और गंभीर हो गया था जब उनके जूनियर मंत्रियों निर्मला सीतारमन और पीयूष गोयल तक को उसमें स्थान मिला था लेकिन उन्हें बाहर कर दिया गया था.सरकार का यह तर्क भी नहीं चल सकता है कि राजनाथ को राजनीतिक मामलों की समिति से इसलिए बाहर कर दिया गया था क्योंकि वह अब रक्षा मंत्री बन गए थे. सच यह है कि पिछले दिनों पर्रिकर और निर्मला सीतारमन के भी रक्षामंत्री रहते राजनीतिक मामलों की समिति में जगह मिली थी.जनचौक डाट काम
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