महेंद्र मिश्र
नई दिल्ली . सेना के लापता हुए एएन-32 विमान को जमीन खा गयी या आसमान निगल गया यह बिल्कुल रहस्य बना हुआ है. सेना द्वारा लगातार चार दिनों तक जारी सर्च ऑपरेशन का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. नेवी के साथ-साथ इसरो को भी इस ऑपरेशन में लगा दिया गया है. सेना के लिए सामानों को ढोने का काम करने वाले इस विमान ने 3 जून को असम के जोरहट से तकरीबन 12.25 बजे उड़ान भरी थी और उसे चीन की सीमा पर स्थित अरुणाचल के वेस्ट शियांग जिले में 1.30 बजे उतरना था. लेकिन एटीसी से उसका संपर्क एक बजे ही टूट गया. विमान में 8 क्रू के सदस्यों समेत कुल 13 लोग सवार हैं.
घटना को चार दिन बीत गए हैं लेकिन विमान का अभी भी कहीं अता-पता नहीं है. मौजूदा सरकार के बारे में माना जाता है कि यह सैनिकों के मामले में बेहद संवेदनशील है. दरअसल इसने चुनाव ही इसी मुद्दे पर लड़ा था. जिसमें पुलवामा, बालाकोट और सैन्य राष्ट्रवाद उसके अहम मुद्दे थे. लेकिन बिल्कुल सीधे सैनिकों से जुड़े इस मुद्दे पर इसकी लापरवाही किसी अचरज से कम नहीं है. सांत्वना देने के लिए कल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विमान में सवार लोगों के परिजनों से मुलाकात की है. लेकिन इस मसले पर सरकार की तरफ से जो सक्रियता दिखनी चाहिए थी वह दूर-दूर तक नदारद है. राजनाथ के शुरू में एक ट्वीट को छोड़ दिया जाए तो पीएम मोदी ने इसका संज्ञान लेना भी जरूरी नहीं समझा. ऊपरी स्तर पर न तो कोई उच्चस्तरीय बैठक हुई और न ही उसका कोई प्रयास किया गया. कहने को कोई कह सकता है कि सरकार के पास कोई ऐसी कमेटी नहीं थी जिसकी वह बैठक कर सके. लेकिन अब जबकि पीएम ने सुरक्षा मामलों की समिति गठित कर दी है तो सबसे पहला उसका काम बनता था कि वह इस मुद्दे पर बैठक करती. लेकिन इस तरह की कोई भी पहल उस दिशा में नहीं हुई है.
देश के 13 परिवारों का अपने परिजनों की अनिश्चितता को लेकर क्या हाल होगा इसको समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं है. किसी विमान के गायब होने की यह कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले 2016 में 29 सैनिकों की सवारी वाला इसी फ्लीट का एक दूसरा विमान भी गायब हो गया था. जो चेन्नई से अंडमान निकोबार की यात्रा पर निकला था. महीनों तक चली खोजबीन के बाद सरकार ने आखिर में सभी सैनिकों के मौत की आशंका की घोषणा कर दी थी. लेकिन उस वाकये से भी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. उस दौरान भी मामले पर गंभीर रूप से विचार-विमर्श करने और आइंदा इस तरह की कोई गल्ती न हो उस पर काम करने के बजाय पूरे मामले को दबाने की ही कोशिश चलती रही. मौजूदा समय की तरह सरकार के इशारों पर नाचने वाले मीडिया ने भी उसको मुद्दा बनाना जरूरी नहीं समझा. और बात आयी गयी और हो गयी. कुछ यही अंदाज था. लेकिन अब जबकि एक बार फिर से उसी तरह की घटना घट चुकी है. और उसमें देश के अमूल्य 13 सैनिकों का जीवन दांव पर लगा हुआ है. तब एक बार फिर उसी किस्म का लापरवाही भरा रवैया सामने आ रहा है जो किसी अपराध से कम नहीं है.
अब मामला किसी विमान के सिर्फ खोने भर का नहीं है बल्कि इस तरह की घटनाएं देश की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर ही सवालिया निशान खड़ा कर रही हैं. लिहाजा मामले की गंभीरता के हिसाब से सरकार की पहल बिल्कुल नाकाफी है. इस मसले पर व्यापक तरीके से विचार-विमर्श होने की जरूरत है कि आखिर इस तरह से विमानों के लापता होने के पीछे असली वजह क्या है? इसके पीछे कोई बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश तो नहीं है? अगर है तो उसके पीछे कौन देश है? और ऐसा करने के जरिये आखिर वह क्या हासिल करना चाहता है? ये तमाम सवाल हैं जिनके उत्तर रक्षा मंत्रालय और उससे जुड़े महकमे को तलाशने की जरूरत है.
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