शानी जी के घर में....

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शानी जी के घर में....

चंचल  
आज यानी 16 मई 2021 तक शानी जी जिंदा रहते तो आज की सांझ मयूर विहार की एक छत गुलजार रहती और हम शानी जी को 88 वें जन्मदिन   की मुबारकबाद देने उस मकान की रसोई में खड़ी सलमा भाभी से दरयाफ्त कर होते -  कबाब कुछ तो बचेगा? सलमा भाभी बोलती कम थी , शायद एक वजह यह भी रही कि उनके हिस्से की तमाम बातें शानी जी खुद  पूरा  किये रहते . भाभी जी आहिस्ता से बोल देती - नाश्ते पर यहीं आ जाना पराठा और  कबाब    . इस खादिम का यह  एक और घर रहा जब तक हम मयूर विहार रहे . सलमा भाभी ही नहीं इस तरह के हमारे कई घर रहे दिल्ली में , मसलन -  दीदी सुमिता चक्रवर्ती ,  सर्वेश्वर जी ,  भाई अवध नारायन मुद्गल/ भाभी चित्रा मुद्गल , मोहन गुप्त , राम कृपाल , संतोष भारतीय , अर्चना झा , वागीश व हेमा सहाय सिंह , भानु भारती ,  फेहरिस्त लंबी  है . मजे की बात हर घर के जायके का अलग आलम . बेतकल्लुफी गोंद की तरह . 
- शानी जी के घर  में सब मिला कर पांच जन  हैं .  
पूछने वाले को उसके  सवाल का जवाब शानी जी के पहले हमने दे दिया था , उनके जाने के बाद पाइप सुलगाते हुए शानी जी ने पूछा था 
- तुम्हारी गिनती कमजोर है कि सामनेवाला गधा था ?  
 - दो अनुमान आपका सही है ,  वह वाकई गधा है , रेडियो पर काम करता है वरना कोई ये सवाल पूछेगा की कितने लोग हैं ?  आपने गिनती की बात की हर किसी को लग सकता है कि गणित कमजोर है जब  दो और दो पांच बताया जाए . महान गणितज्ञ बरटेंड रसेल कहते हैं एक धन एक ,दो नहो होता इसमे एक हाल्ट होता है . तो हमने ये जो हॉल्ट आपके कुटुम्ब में जोड़ा है उसका नाम है बेतकुल्लफी . उस घर यह बे तकल्लुफी हाजिर है और नाजिर भी . बेटा फिरोज , बेटी सूफिया , भाभी सलमा और एक अदद आप यानी शानी जी ने  सामूहिक रूप से इस पांचवे जिसे हम बार बार बेतकल्लुफी कह रहे हैं को दस्ते करम  दे रखा है . कोई न कोई चंचल कबाब की मांग करता है या चित्रा भाभी का टिफिन रसोई में खड़ा अपने  भरने का इंतजार करता है .  
- यार एक बात बताओ , तुमसे पहले क्यों नही मुलाकात हुई ?  
-  क्यों कि तब आप जगदलपुर भोपाल के बीच रहे और हम बनारस जौनपुर  के बीच .  
- तुम्हारे कारनामे हमे विष्णु खरे ने बता दिया है . तुम  लोंगो का इतना दबदबा  ? महादेवी वर्मा जी को उठा लिए . अगवा कर  ले गए ?  
- इश्स !, क्या शानी जी ? कहाँ महादेवी और कहां हम ?  श्रद्धेय हैं . हम सब की बुआ लगती हैं , उनका आशीर्वाद और ममत्व हमेशा मिलता रहा है हम लोंगो को . खरे जी ने पूरा वाकया सुनाया होगा . अंदर से वे  भी खुश थे . दुखी कोई था तो इंद्रनाथ चौधरी ( तत्कालीन सचिव साहित्य अकादमी )  . हुआ यूं कि अल सुबह जब यह खबर अखबार से मिली कि साहित्य अकादमी बनारस में  मुंशी प्रेम चंद पर एकअखिल भारतीय गोष्ठी  कर रही है जिसका उद्घाटन महादेवी वर्मा जी करेंगी . यहां तक तो ठीक था लेकिन यह गोष्ठी एक पांच सितारा होटल में आयोजित रही , यही बात खटक गयी और हम समय से पहले  दो तीन लोंगो के साथ  क्लार्क होटल पहुंच गए . थोड़ी देर में महादेवी जी की कार रुकी तो हम महादेवी जी के पास गए . देखते ही वे समझ गयी -  
- हाँ बोलो , तुम लोग कैसे ?  
 - आपको लेने आये है  बुआ ,   आप यहां नही बोलेंगी , आप चलिए विश्वविद्यालय , वही बोलिये .  
- चल , पैदल चलना है ? ये गाड़ी तो साहित्य अकादमी ने भेजा है . कह कर हंसने लगी . और आकर हमारी गाड़ी में बैठ  गईं . उस समय विष्णु खरे और दस बारह अन्य  साहित्यकार मौजूद थे . नतीजा  हुआ जितने भागीदारी करने आये थे सब के सब विश्वविद्यालय आये . मधुवन की लान पर नीचे बैठ कर महादेवी जी ने मुंशी प्रेमचंद पर इतना खूबसूरत और मार्मिक संस्मरण सुनाया कि श्रोताओं की आंख नम हो गयी .  
     -  हाँ वही संस्मरण न जब मुंशी प्रेमचंद महादेवी से मिलने इलाहावाद गए थे , महादेवी  जी दोपहर को सोने जा चुकी थी , और मुंशी जी किस तरह गर्मी की दुपहरी गुड़ की डली और मिट्टी की गगरी में रखे पानी से काट दी और माली से बतियाते रहे   . हमने उनके  इस  संस्मरण को ही इस पत्रिका में उठाया है . ( शानी जी साहित्य अकादमी से छपने वाली पत्रिका के संपादक थे )  
दिल्ली छोड़ने के जो अनेक वजूहात रहे उसमे से एक यह भी रहा दिल्ली की काया फैली जरूर लेकिन मन उजाड़ होता गया .  
    हम आपको याद कर रहे हैं शानी जी . 
 

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