एक पत्थर तबियत से उछालो यारो

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एक पत्थर तबियत से उछालो यारो

हिसाम सिद्दीक़ी 
दुष्यंत कुमार का एक बहुत ही मशहूर शेअर है ‘कौन कहता है कि आसमान में सूराख नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.’ बहुत दिनों बाद मगरिबी बंगाल की चीफ मिनिस्टर और तृणमूल कांग्रेस की सदर ममता बनर्जी ने इस शेअर को अमली जामा पहनाया है. उन्होने भारतीय जनता पार्टी और पीएम नरेन्द्र मोदी की फिरकापरस्ती पर एक पत्थर उछाला और कामयाबी हासिल की. ममता ने पूरे देश को बताया कि एक कोशिश तो करो लोगों, फिरकापरस्ती और फिरकापरस्तों को उखाड़ फेंका जा सकता है. यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं है. बंगाल असम्बली के हालिया एलक्शन में नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने एलक्शन मुहिम के दौरान फिरकापरस्ती का भरपूर इस्तेमाल किया. वह इस बात के लिए ही जाने जाते हैं. मुल्क खुसूसन उत्तर भारत में सभी सियासी पार्टियों ने मोदी और उनकी पार्टी की फिरकापरस्ती के सामने घुटने टेक दिए, लेकिन ममता बनर्जी ने ऐसा नहीं किया. उन्होने मोदी और बीजेपी की फिरकापरस्ती के खिलाफ मजबूती के साथ सेक्युलरिज्म की लड़ाई लड़ी और कामयाब रहीं. एक तरफ वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी, उनके होम मिनिस्टर अमित शाह, उनकी पार्टी के सदर जे पी नड्डा, जनरल सेक्रेटरी कैलाश विजयवर्गीय और एक भारी भरकम लीडरान की फौज के साथ में मिथुन चक्रवर्ती और बंगाली फिल्मों व टेलीविजन अदाकारों की टीम इनके अलावा बेशुमार दौलत का इस्तेमाल दूसरी तर फ डेढ सौ रूपए की साड़ी में अकेली ममता बनर्जी. ममता के खिलाफ बीजेपी की फौज के साथ-साथ इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई और एनआईए का बेजा इस्तेमाल. ममता के एमपी भतीजे के घर पर इनकम टैक्स और सीबीआई की छापेमारी भी. ममता इन सबसे लड़ी और सेक्युलरिज्म को मुद्दा बनाकर उन्होने 2016 से ज्यादा सीटें जीतकर मोदी को बता दिया कि इस देश में हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों की कोई अहमियत नहीं रह गई है. 
मुल्कगीर पैमाने पर कांग्रेस को और रियासतों की इलाकाई पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी, बीएसपी, तेलगु देसम, तेलंगाना राष्ट्र समिमि, शिव सेना और एनसीपी वगैरह को भी ममता बनर्जी का रास्ता अख्तियार करना चाहिए था. अगर इन सबने बीजेपी और नरेन्द्र मोदी के फिरकापरस्ती के कार्ड के खिलाफ अपने सेक्युलर कार्ड का इस्तेमाल किया होता तो शायद आज हालात ऐसे न होते जैसे दिख रहे हैं. इस मामले में सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदारी का सबूत कांग्रेस ने दिया. गुजरात के पिछले एलक्शन के बाद 2019 के लोक सभा एलक्शन तक कांग्रेस यही मैसेज देती रही कि हम भी हिन्दू पार्टी हैं पार्टी लीडर राहुल गांधी ने मंदिरों का दौरा करके वीडियो वायरल कराए कहीं जनेऊ दिखाया तो कहीं अपना गोत्र बताकर यह साबित करने की कोशिश की कि हमारा ताल्लुक भी कश्मीरी पंडित खानदान से है. हम भी हिन्दू ही हैं. उनकी समझ में यह नहीं आया कि अगर एक तरफ बीजेपी जैसी पार्टी नरेन्द्र मोदी जैसा कट्टर उसका लीडर मौजूद है तो उनकी मौजूदगी में फिरकापरस्त लोग राहुल गांधी को हिन्दू क्यों मानने लगे. राहुल कहें कुछ भी वह हिन्दू हैं भी नहीं हो भी नहीं सकते क्योंकि उनके वालिद पारसी और वालिदा ईसाई हैं. 
कांग्रेस वैसे भी जीत नहीं पा रही है. अगर उसने अपनी आयडियालोजी से समझौता न किया होता और मजबूती के साथ सेक्युलरिज्म को थामे रखती तो शायद वह लोग कांग्रेस को वोट जरूर देते जो फिरकापस्ती में यकीन नहीं रखते. पार्टी के नर्म हिन्दुत्व पर चलने की ही वजह है कि पार्टी को न सेक्युलर वोट मिल रहे हैं न कम्युनल. हैरतनाक बात यह है कि सबकुछ खत्म हो जाने के बावजूद पार्टी नर्म हिन्दुत्व का रास्ता छोड़ने को तैयार नहीं है. इस हद तक कि एलक्शन के दौरान राहुल गांधी समेत पार्टी का कोई भी लीडर मुसलमानों का नाम तक लेने से परहेज करता है. पार्टी के मुस्लिम लीडरान को पब्लिक मीटिंगों मे बुलाया नहीं जाता है, तकरीरों के दौरान इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि पार्टी को हिन्दुत्ववादी पार्टी जरूर बताया जाए. जिन लीडरान के मश्विरे पर पार्टी को हिन्दुत्ववादी साबित करने की कोशिशें की गईं और की जा रही हैं उनसे कभी पूछा भी नहीं जाता है कि आपके मश्विरे पर चलने के बावजूद पार्टी को हिन्दू वोट क्यों नहीं मिले. यह सवाल किए जाने के बजाए अगले एलक्शन में फिर उन्हीं नाकिस राय देने वालों के मश्विरों के मुताबिक पार्टी को चलाया जाता है. 
ममता बनर्जी ने कांग्रेस और दीगर इलाकाई पार्टियों के रास्ते पर चलने के बजाए दुष्यंत कुमार के कहे हुए शेअर के मुताबिक नरेन्द्र मोदी और उनकी बीजेपी की फिरकापरस्ती में सूराख करने की गरज से सेक्युलरिज्म नाम के पत्थर को उछाला और ऐसा उछाला कि उसकी जद में आकर नरेन्द्र मोदी जैसा बड़ा ड्रामेबाज भी सियासी एतबार से जख्मी हो गया. पुरूलिया, बाकुड़ा पूर्वी मेदनीपुर और पच्छिमी मेदनीपुर जैसे हिन्दू अक्सरियती जिलों में भी भारतीय जनता पार्टी नहीं जीत सकी. इन जिलों में कहीं-कहीं तो नव्वे फीसद से भी ज्यादा हिन्दू वोटर हैं. इतनी बड़ी हिन्दू आबादी के बावजूद अगर मोदी और बीजेपी की फिरकापरस्ती नहीं चल पाई तो यह इस बात का जीता-जागता सबूत है कि मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी हिन्दुओं की अक्सरियत कम्युनल नहीं हुई है न ही वह हिन्दुत्व और फिरकापरस्ती में फंसा है. यह इशारा किस तरफ है और क्या बयान करता है. बंगाल में ममता बनर्जी ही नहीं उनसे पहले बिहार में आरजेडी लीडर तेजस्वी यादव भी इसी रास्ते पर चल चुके है. उन्होने भी बीजेपी की फिरकापरस्ती, हिन्दुत्व और झूटे राष्ट्रवाद का जवाब अपने तरीके से दिया और कहीं भी यह इशारा नहीं किया कि वह भी हिन्दू हैं तो अकेले तेजस्वी ने नितीश कुमार उनकी पूरी फौज और नरेन्द्र मोदी, उनी पूरी लम्बी-चौड़ी फौज और बेशुमार दौलत को मुंह तोड़ जवाब दिया अगर तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने की गलती न की होती तो आज बिहार की सत्ता उन्हीं के हाथों में होती. मोदी और नितीश कुमार दोनों मिलकर किसी तरह सरकार तो बना ली लेकिन कोई काबिले जिक्र कामयाबी हासिल नहीं कर पाए. 
अब भी वक्त है अगली फरवरी में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश के साथ गोवा असम्बली का भी एलक्शन होना है. अगर इन रियासतों में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी इलाकाई पार्टियों ने ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव के रास्ते पर चल कर बीजेपी की फिरकारस्ती के खिलाफ सेक्युलरिज्म का पत्थर तबियत से उछालने का काम दिल से कर दिया तो इन सभी प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी को आसानी के साथ शिकस्त दे सकेंगी और अगर कांग्रेस ने फिर नर्म हिन्दुत्व पर चलने का काम किया तो वह फिर हारेगी और मोदी व उनकी बीजेपी पंजाब के अलावा बाकी रियासतों में फिर से सत्ता में आ जाएगी.जदीद मरकज़

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