बेगम हज़रत महल की ब्रिगेड की एक अफ़सर

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बेगम हज़रत महल की ब्रिगेड की एक अफ़सर

डा शारिक़ अहमद ख़ान 
 जब बेगम हज़रत महल ने नवाब वाजिद अली शाह के लखनऊ से निर्वासन के बाद अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाला तो हरम में रहने वाली एक बड़ी परी ने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि बेगम हज़रत महल ऐसी कोई आफ़त की परकाला हैं जो अंग्रेज़ों से जंग कर सकें.ऐसा उस परी ने इसलिए कहा था क्योंकि उस वक़्त के पहले तक बेगम हज़रत महल ने कोई पराक्रम नहीं दिखाया था,वजह कि इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं थी.बेगम हज़रत महल अवध की बेगम बनने से पहले एक तवायफ़ थीं,बचपन में उनको बेच दिया गया था,नवाब वाजिद अली शाह ने हज़रत महल को अपने हरम में स्थान दिया,फिर उनको परी का ख़िताब हासिल हुआ,एक दिन पीेठ पर सांपनुमा काला निशान होने की वजह से बहुत सी परियाँ मनहूस मान हरम से निकाल दी गईं,हजरत महल भी उसमें शामिल थीं.जब नवाब को पता चला तो हज़रत महल को वापस लाए,वजह कि वो उनकी प्रिय परी थीं.नवाब ने हज़रत महल को महक परी का ख़िताब दे दिया,क्योंकि हज़रत महल इत्र बनाने के मामले में भी महारत रखती थीं और नवाब को ऐसे इत्र भेंट करतीं जिनकी ख़ुशबू नवाब को बहुत पसंद आती. 
नवाब ने आख़िर में हज़रत महल से शादी कर ली और अब वो परी हज़रत महल से नवाब की बेगम मतलब पत्नी हो गईं और बेगम हज़रतमहल कही जाने लगीं.जब नवाब का निर्वासन हुआ तो बेगम हज़रतमहल ने पहले नवाब से तलाक़ ली ताकि उनके द्वारा अंग्रेज़ों के विरूद्ध किए जाने वाले संघर्ष की वजह से नवाब के ऊपर कोई आँच ना आए.नवाब तो 'दरो दीवार पर हसरत-ए-नज़र रखते हैं,ख़ुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं 'कहकर चले गए लेकिन अवध में ख़ुशी कहाँ थी,अंग्रेज़ सड़कें बनाने के लिए मंदिर और मस्जिद गिराने लगे,अवध की जनता पर अत्याचार करने लगे और भारी टैक्स लाद दिया.तब सन् 1857 में बेगम हज़रतमहल 'आफ़त की परकाला' बनकर अंग्रेज़ों पर टूटीं.ख़ुद जंग के मैदान में जाकर जंग करतीं.रहीमी नाम की महिला को महिला दल की सैन्य कमान दी.भयंकर जंग शुरू हुई.महिला सैनिक जंगली बिल्लियों की तरह लड़ रहीं थीं.तस्वीर में नज़र आ रहा सिकंदर बाग़ नवाब वाजिद अली शाह ने बनवाया था,इस बाग का नाम अपनी एक अन्य प्रिय बेगम सिकंदर बेगम के नाम से रखा था और नवाब गर्मियों के मौसम में यहीं रहा करते,यहाँ कथक स्टाइल वाली रासलीला भी खेलते और यहीं महफ़िलें जमतीं. 
जब बेगम हज़रत महल ने अंग्रेज़ों से जंग शुरू की तो अंग्रेज़ों ने सिकंदर बाग़ पर हमला किया,क़रीब दो हज़ार भारतीय अंग्रेज़ों ने मारे और सैकड़ों अंग्रेज़ यहाँ मरे,बेगम के भारतीय सैनिकों की लाशें खुले में सड़ती रहीं,भारतीयों की हार हो गई थी,अंग्रेज़ों की लाशों को गड्ढा खोद यहीं दफ़ना दिया गया.इसी सिकंदर बाग़ में गुलाबी कपड़े पहने बेगम का एक सैनिक पेड़ पर से गोलियाँ चला रहा था,उसने सैकड़ों अंग्रेज़ मारे.तभी एक अंग्रेज़ अफ़सर ने उसे देख लिया,निशाना साधकर गोली मारी और बेगम का सिपाही पेड़ से नीचे गिर गया.अंग्रेज़ों ने पास जाकर देखा तो वो पुरूष सिपाही नहीं बल्कि एक महिला थी,उसके लंबे बाल थे और वो बहुत ख़ूबसूरत थी,अंग्रेज़ अफ़सर को दुख हुआ कि उसने ये क्या किया,लेकिन महिला सैनिक मर चुकी थी,बाद में पता चला कि वो ऊदा देवी पासी थी.बेगम हज़रत महल की ब्रिगेड की एक अफ़सर.आज सुबह सिकंदर बाग़ की तरफ़ जाना हुआ तो ये बातें याद आ गईं.अब सिकंदर बाग़ का गेट और एक छोटी सी मस्जिद ही उस विशाल बाग़ में सुरक्षित है,बाकी इमारतें गिर चुकी हैं,तस्वीर में सिकंदर बाग़ का गेट. 
 

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