राजनीति की लौह महिला यानी गौरी अम्मा

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राजनीति की लौह महिला यानी गौरी अम्मा

रति सक्सेना 
कल प्रातः काल केरलीय लौह महिला, नाम से गौरी, कर्म से काळी, निर्वाण कर गई, पूरे एक सौ दो साल की आयु पूरी करके.केरल की  लौह महिला, नाम गौरी काम  काळी, केरल का चमत्कार ही है. 14 July  1919, में आळपुषां प्रान्त के चेरत्ताल जिले के पत्तनाकाट्ट गांव में, एक इषवा परिवार में दस सन्तानों मे सातवी सन्तान के रूप में जन्मी गौरी एक अद्भुत शक्ति का प्रतीक रहीं. यह वह काल था, जब दलित स्त्रियों को अपने बाल ऊपर बांधने होते थे, बिना उपरि वस्त्र के ही  एक वस्त्रा रहना होता था, और सारी भूमि, मन्दिरों , चर्चों औेर मठाधीष जमीदारों के आधीन थी, काफी जमीन  वेट्टकळ कोच्चा नामक फिलीस्तीन के पास थी, ये सारे जमीदार गरीबों और भूमिहीनों का लाभ उठाते थे. दलितों को ना स्कूल में पढ़ने को मिलता, न मन्दिर में प्रवेश होता, उनसे बेगारी करवाई जाती . 

गौरी के पिता रामन इषवा  जाती के थे, जो केरल में दलित मानी जाती थी. लेकिन उन्हें  जरा सी जमीन पैतृक  सम्पति के रूप में मिली थी,बाद में उन्होंने ताड़ी के व्यवसाय से थोड़ी और जमीन खरीद ली. और मन्दिर की जमीन भी  बटाई पर ले ली, और इस तरह गरीब लोगों को रोजगार दिया, जो केवल बेगारी किया करते थे. इस तरह वे दलित होते हुए भी थोड़े समृद्ध हो गये थे, इसलिये  उनके घर की स्त्रियां उपरि वस्त्र पहनने लगी, जिसका विरोध करने का किसी को साहस नहीं हुआ. 

उस काल में दलितों का अलग रास्ता होता था, जिस पर चलना मुश्किल हो जाता, रामन ने इसका विरोध किया, मन्दिर प्रवेश अभियान में भी भाग लिया, और जेल भी गये, यही नहीं बच्चो को पढ़ने के प्रेरित किया. अपने बच्चों को भी पढ़ाया. उनके दस बच्चे थे, गौरीअम्मा के बड़े भाइयों ने भी पढ़ने के बाद दलित बच्चों की पढ़ने में सहायता की. माता पार्वती अम्मा की सातवीं सन्तान गौरी अम्मा का जन्म इस दलित किन्तु सुसंकृत समाज में हुआ, जहां नारायण गुरु के वचनो को जीवन मान लिया जाता है. गौरी की अपने बड़े भाई सुकुमारन से बहुत पटती थी, दलित बच्चों को  पढ़ाने के लिए पिता नें खुद एक छोटा सा विद्यालय खोला था, जिसमें केवल एक अध्यापक था, जिसको वेतन भी रामन देते थे. गौरी अम्मा को भी उसी विद्यालय में भेज दिया गया.दो साल बाद  वे कोर्माशेली,भारती विलासम,  चेर्तला गवर्नमेन्ट स्कूल, आदि स्कूल में पढ़ने गई़ . पिता चाहते थे कि वे लड़कों की तरह ही पढ़े, पिता ने बच्चों को जाति प्रथा के विष से दूर रखा था. उस काल में बहुत कम लड़कियां स्कूल जाती थी, यदि कोई पढ़ता था भी तो सातवी आंठवी के बाद रस्सी बनाने जूट बनाने और खेती में काम में लग जाती. अंग्रेजी पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या तो पांच प्रतिशत भी नहीं थी.     
गौरी अम्मा ने बाल्यकाल से देखा कि उनके घर में जाति प्रथा का विरोध करने वाले  नारायण स्वामि, कुमारन आशान , राम स्वामि, जी के नायकन आदी अनेक महान जन उनके घर आते, निवास करते और चर्चा करते थे. घर में अक्सर शादी ब्याह सा माहौल रहता , इतने सारे लोगों का भोजन माता पार्वती अम्मा अकेली किया करती थीं. नारायण स्वामि के उपदेश सुन कर अनेक इषवा और दलितों नें मद्यपान का तिरस्कार , और मन्दिर प्रवेश तथा, जातिगत मतभेद का विरोध करना शुरु कर दिया. 

इस सब के लिए खर्चा पिता ही उठाया करता था. इस तरह अपनी व्यस्तता के बावजूद पिता रामन कामगारों को शाम के वक्त कुमार आशान जो स्वयं इृवा जाति के थे, ( कवि समाजसुधारक )की कविताएं गा गा कर सुनाया करते थे. नलिनी दुरव्यवस्था आदि कविताएं गा गाकर व्याख्या करके सुनाते. ये सारी कविताएं जातिगत विद्वेष के परिणाम को बताती हैं. गौरी अम्मा बताती हैं मैंने अनेक कामगारों को कविता सुन कर रोते हुए देखा है. यही नहीं वे भी अपने बच्चों को पढ़ाने में विश्वास करने लगे. 
इस तरह गौरी अम्मा का घर सामाजिक क्रिया कलापों , और वैचारिकता का केन्द्र रहा. निसन्देह बच्चों पर प्रभाव पड़ा ही होगा. 

इसी समय सोवियत संघ का उदय हुआ, लेनिन का आदर भी बढ़ गया. 
स्कूल की शिक्षा पूरी कर के गौरी अम्मा एर्णाकुलम महाराजा इन्टर मीडियेट स्कूल में प्रवेश लिया, लेकिन उस काल में शहरों में भी जाति प्रथा क्रूर थी, पिछड़ी जाति के बच्चों खास तौर से लड़कियों को कहीं रहने की व्यवस्था नही मिलती थी. लेकिन कुछ समझदार लोगों ने सदन नाम से एक होस्टल खोला, जिसमें जाति वर्ग का भेद नहीं था. गौरी अम्मा को वहीं रहने का ठिकाना मिल गया. तभी एक बी ए सी में पढ़ने वाली त्र्येसीअम्मा को भी वहां प्रेवेश मिला. गौरी अम्मा की उनसे मित्रता हो गई. एक बार उनका भाई उनसे मिलने आया, जो टी वी थामस थे, जिनसे गौरीअम्मा का बाद में विवाह हुआ. वे इतिहास पढ़ते थे, उन्हे जी शंकर पिल्लै जैसे महान साहित्यकारों ने उन्हें पढ़ाया था. चंगपुषा कहान कवि भी उनकी मलयालम क्लास में पढ़ते थे, जिनकी कविताओं की उस काल की हर लड़की दीवानी थी़ . उस काल में कालेज में समकालीन विषयों पर हर महिने चर्चा हुआ करती थी जिसमें एर्णाकुलम के लोग भी आते थे, वहां राष्ट्रपति राधाकृष्ण तक का भी भाषण हुआ. इण्टर के बाद सेन्ट टेरेसा कालेज में पढ़ने गई  एक बार इन्दिरा टीचर ने सोवियत संघ, स्टालिन आदि के बारे में लेक्चर दिया तो गौरी अम्मा ने कहां,अब सोवियत संघ के बारे में बात करने की जरूरत नहीं है. मदर सुपीयर I can pray for you.  और कहा कि बच्ची तुम्हे गाड मदद करें, फिर किसी अमेरिकन लेखक द्रादा साम्यवाद के खिलाफ लिखी किताब को पढ़ने को दे दिया. उन्हें लगा कि यह लड़की केरल में साम्यवाद की बात कर रही है. तब तक प्रान्त में सर सी पी के ट्रावनकोर  दीवान क्रूरता के विरोध में तिरुविदाकंर के छात्रों ने एक संघ बनाया , 1938, सितम्बर 9 को  स्टेट कान्ग्रेस कोच्ची में विरोध किया गया, और के ए के गोपालन के नेतृत्व में सर सी पी के विरोध में एक जाथा यानी की जूलूस का आयोजन हुआ, कोच्ची में जब उनकी जैट्टी (छोटा जहाज ) पहुंचने वाली थी, उनके स्वागत के लिए छात्रों का एक संघ बनाया गया, जिसमें गौरी अम्मा  भी थी. छात्रो  ने विचार किया कि कैसे इस जाथा को सफल बनाये, इसके लिए गौरी अम्मा ने प्लान बताया कि सब लोग बर्तन लेकर सामान्य जनों के घर जायें, और आन्दोलन और उसके प्रभाव को सफल बनाने के लिए पहले सारा विवरण दें, और बर्तन में दान इक्कट्ठा करे.  बोट जेट्टी पर ए के गोपालन ( Ayillyath Kuttiari Gopalan ), जो केरल के कद्दावर नेता रहे हैं, ने भाषण दिया. 
जो पैसा बचा, वह कैप्टन को दे दिया, लेकिन दूसरे दिन कालेज गई तो घुसने नहीं दिया और पिता से खत लाने को कहा. तब लड़कों के कालेज से छात्र आये और भूख हड़ताल की धमकी दी, तब इन्हे कालेज में बैठने की अनुमति दी गई. 
गौरी अम्मा के पिता हालांकि राजनीति और सामाजिक आन्दोलनों से जुड़े थे, लेकिन वे धर्म में विश्वास करते थे. 1936 , में जब मन्दिर प्रवेश आन्दोलन में विजय हासिल हो गई तो वे भी ब्राह्मणो की तरह गैरुए वस्त्र पहन कर कात्यायनी मन्दिर जाया करते थे. पिता बच्चों को पढ़ाना तो चाहते थे, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि बच्चे राजनीति में नहीं जाए, इसलिए गौरी अम्मा पिता के जीवन तक पूरी तरह से  राजनीति में नहीं गई़ . 
कहां जाता है कि उस काल में गौरी अम्मा साइकिल से कालेज जाती थीं, जो उस काल की महिलाओं के लिए विचित्र था. 
उनके बड़े भाई सुकुमारन अन्नन राजनीति से जुड़े थे, वे  पहले कांग्रेस में गये, फिर क्म्यूनिस्म से प्रभावित हो गए. यह अधिकतर उस काल के युवाओं के साथ हुआ था.  वे दिन रात कम्यूनिस्म के काम में लगे रहते , पिता को यह पसन्द नहीं था, उन्हें भी डर था, कहीं गौरी अम्मा जो भाई के बहुत करीब है, राजनीति में न चली जायें. पिता और भाई में  मतभेद बढ़ता गया. उन्होंने ने गौरी की मां से कह दिया कि सुकुमारन को इस घर में एक गिलास पानी तक नहीं दिया जाये. लेकिन मां खाना बना कर  मेज पर रख कर सोने चली जाती, देर रात जब भाई आते तो कामगार लोग दरवाजा खोल देते, दीया जला देते, पिता को अपनी आराम कुर्सी में पड़े पड़े आभास तो हो जाता, लेकिन कुछ नहीं बोलते. उस समय गौरीअम्मा त्रिवेन्द्रम के ला कालेज में पढ़ने आ गई. वही त्रयसम्मा के भाई थामस भी पढ़ रहे थे. 

ला करने के बाद उन्होने चेर्तला कोर्ट में काम करना शुरु कर दिया. तब रहने के लिए उन्होंने एक बंगला किराये पर लिया तो पिता भी उनके साथ आकर रहने लगे. अक्सर रात को वे अपने बचपन की बातें बताते. जाति के भेद भाव , दरिद्रता के बारे में विस्तार से बताते. तब तक बड़ी बहन की मृत्यु हो गई, जिससे पिता टूट गये थे, इसलिए  पिता और छोटी  पुत्री में एक मित्रता का भाव जगा. पिता की तबियत खराब हुई तो मां और बहन पिता की सेवा करने आई, लेकिन मां नें तुरन्त गांव जाने की जिद करने लगी तो गौरी अम्मा ने  गुस्से में उन्हे गांव भेज दिया. लेकिन कुछ दिन में ही पता चला कि पिता की तबियत खराब है तो वे हाथ से खींचने वाले रिक्शा से घर लौटी, पिता अन्तिम प्रस्थान के लिए तैयार थे, गौरी अम्मा को देखते ही पिता ने बेटी का हाथ पकड़ा और देह त्याग दी. गौरी अम्मा के लिए पिता विहीन संसार की कल्पना भी कठिन थी. सुकुमार पूरी तरह कम्यूनिज्म में चले गये. वे गांव गांव में जाकर कामगारों श्रमिकों को साम्यवाद और उनके अधिकारों के बारे में बकायदा क्लास लेकर पढ़ाने लगे. और जाति, वर्ग भेद के विरोध में खड़ा होना सिखाने लगे. अपनी मजदूरी की मांग के लिए भी सिखाने लगे. 
त्रावनकोर के दीवान की क्रूरता बढ़ती गई़ , वे गोली चलाने का आदेश भी देने लगे. 
1948 में जब युवकों ने  राष्ट्र ध्वज फहराना चाहा है,  तो लोगो को दीवान से भय लगा कि वे गोलिोयों  से भुनवा देंगे. त्रावनकोर के दीवान अंग्रेज भक्त थे. लेकिन बार एसोसियेशन ने निश्चय किया कि वे जरूर ध्वज फहरायेंगे. लेकिन नोटिस के लिए नाम देने के लिए लोगो को भय हुआ तो गौरी अम्मा ने अपना नाम देकर नोटिस लिखने की मंजूरी दे दी. कात्यायनी मन्दिर के प्रांगण में सबने मिल लोगो ने झण्डा फहराया़.  इस काल में केरल में युवाऔं में कांग्रेस सोशलिस्ट और कम्यूनिज्म का प्रभाव बढ़ता जा रहा था़ , ये आपस में विरोध नहीं रखते थे. गौरी कांग्रेस के साथ काम करने लगी, और आचार्य कृपलानी और उनके पत्नी  जब आये तो उन्हें दायित्व दिया. उन्होंने  अपने घर के सामने मैदान बनाया, बहुत से कांग्रेसी और कम्यूनिस्ट जुट गये. वे एक सशक्त नेता के रूप में उभर रही थी,  अब तक जमीदारों और श्रमिकों में बहुत भेद बढ़ गया. उन पर  यूनियन के मेम्बर बनाने का जोर पड़ा, उनके घर बड़े बड़े नेताओं जैसे कि ई एम अस नम्पूतिरि , सुकुमारन उनके घर इक्ट्ठे होते थे, इस तरह वे बहुत व्यस्त होने लगी. कामरेड पी कृष्ण पिल्लै ने उन्हें चुनाव लड़ने  को प्रेरित किया. चेरितल्ला से पहला चुनाव लड़ा, लेकिन विजित नहीं हो पाई. तब तक उनके घर अनेक कामरेड रहने भी लगे थे. अभी तक कांग्रेस और कम्यूनिस्ट साथ काम कर रहे थे, लेकिन कुछ घटनाओं के बाद दोनों अलग होने लगीं. 1952 में वे चुनाव लड़ी और विजित हुई. और केरल की पहली कम्यूनिस्ट सरकार Travancore-Cochin Legislative Assembly in(  में रैविन्यू मन्त्री बनी. फिर उन्होंने भूमि परिष्करण  बिल The Land Reforms in Kerala ) को लागू करने में पूरी ताकत लगा दी, जिससे जमीदारों की भूमि कामगारो को बांटी गई. और समस्त कामगारों को जिन्दगी में पहली बार अपनी जमीन में रहने का सौभाग्य मिला, यह कदम केरल साम्यवाद के लिए महत्वपूर्ण कदम था. यही नहीं उन्होंने अपने परिवार की 138 एकड़ जमीन सरकार को दान कर दी. The Land Reforms in Kerala केरलीय सामाजशास्त्र का अभूतपूर्व परिवर्तन था, जिन दलित वर्ग को कपड़े पहनने की भी छूट नहीं थी, जो दो निवाले भात के लिए बेगारी करते थे, उन्हें जमिंदारों की जमीन में पूरा हिस्सा मिला, और उनकी रीढ़ को खड़ा करने में सहायक हुआ. गौरी अम्मा वकील थी, इसलिये यह बिल बेहतरीन तरीके से लागू हुआ. यह E. M. S. Namboodiripad (EMS) के मुख्य मन्त्रित्व की पहली सरकार थी. 

थामस और गौरी अम्मा में मित्रता भाव चला आ रहा था, तो पार्टी ने उनसे विवाह करने का अनुरोध किया. इस तरह सरकार के दो मन्त्रियों का आपस में विवाह हुआ. लेकिन नेहरू नें पार्टी भंग  कर दी. इस तरह कम्यूनिस्ट पार्टी फिर सड़क पर आ गई तो पार्टी में मतभेद हुआ, CPI, और CPM. 
दुर्भाग्य से पति पत्नी अलग अलग पार्टी में थे, इसतरह विवाहित होकर भी बिछोह हो गया. 1968में वे फिर से नियम सभा मे पहुंची. उस समय उन्होंने महिला संघ की स्थापना की. 
1967 के  चुनाव में वे फिर से  Left Democratic Front सरकार में वे फिर से  E.M.S. Namboodiripad के साथ मंन्त्री बनी, उन्हें  Minister for Revenue, Sales Tax, Civil Supplies, Social Welfare and Law मन्त्री बनाया गया. उन्होंने लभूमि सुधार बिल के अन्त्रग्त बखूबी से काम किया. जिससे साड़े तीन लाख बेगारों को जमीन मिली. केरल से जमीदारी का पूरी तरह उन्मूलन हो गया़ 


गौरी ने पार्टी के लिए अपने दाम्पत्य जीवन की उपेक्षा कर दी, अपने युवा काल के प्रेम को पार्टी के लिए छोड़ दिया. पार्टी को अपना सारा धन दे दिया़ 

E. K. Nayanar के साथ फिर कम्यूनिस्ट पार्टी चुनाव जीती, और गौरी अम्मा को Agriculture, Social Welfare, Industries, Vigilance आदी विभाग मिले. गौरी अम्मा नें काजू की अच्छी किस्म विकसित करने पर जोर दिया और कालाबाजारी पर रोकथाम लगाई, जिससे कुछ माफिये, जो अब तक मजदूर संघटनों के नेता था, और संभवतया बिचौलिये के रूप में कमा रहे थे, उनके खिलाफ हो गये. और लेफ्ट की एक शाखा CTU , जो काफी सशक्त हो गई थी, उनके खिलाफ हो गई. पार्टी में  सी टू यू का दबदबा था़ . कोई भी पार्टी हो, काल के साथ उनमें कुछ तत्व आ जाते हैं, जो समाज उस पार्टी की ही वैचारिकता के विरोधी होते हैं. दरअसल नयनार सरकार के दूसरे काल में गौरी अम्मा को मुख्य मन्त्री के रूप में प्रचलित किया गया था, लेकिन जीत के उपरान्त नयनार ने उन्हें केवल मन्त्री पद ही दिया. गौरी अम्मा खुल कर बोलने वाली निर्भीक महिला थीं, पार्टी की गलत नीतियों की भी आलोचना करती थी. 1994 में उन्हे कम्यूनिस्ट पार्टी ने ही निष्कासित कर दिया. 



सोच कर देखिये, जिस महिला ने जो स्वयं दलित वर्ग से आती थी,  दलितों को आत्मसम्मान दिलवाया, दलित महिलाओं को पढ़ने का मार्ग दिखाया, जिसने महिलाओं की राजनीतिमें पहचान दिलवाई, जो लगातार जन प्रिय नेता रहीं, उन्हे पार्टी ने ही बाहर निकाल किया. मजबूत और सीधा बोलने वाली महिलाओं को कोई भी हो स्वीकार नहीं कर पाता. 
वे बेहद दुखी हो कर ए के जी सेन्टर की सीढ़ियों पर बैठी सोचती रही कि मेरी गल्ती क्या थी. 

लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी बनाई,  ए के जनाधिपत्य समिति और फिर से चुनाव लड़ा, से चुनाव लड़ा और फिर से मन्त्री बनी. लेकिन इस बार वे कांग्रेस सरकार में थी. A. K. Antony की सरकार में वे फिर से दो बार मन्त्री बनी, पार्टी बदलने में भी उनके प्रभाव में कमी नहीं थी, वे फिर कभी नहीं हारी थी. बाद में २०० ४ में वे ओम्मन चाण्डी की सरकार के साथ भी काम करती रहीं. कहने का तात्पर्य यहीं है कि उन्होंने किसी भी पार्टी के लिए काम किया, वे जीती अपने दम पर, और हमेशा समाज से जुड़ी रहीं। 


बाद के कम्यूनिस्ट नेताओं ने अपने अग्रजो की गल्ती समझी, और उन्हें आदर पूरंव कम्यूनिस्ट पार्टी में आमन्त्रित किया, वे मन से सदैव साम्यवादी हीं रहीं, उन्हें सम्मान से ए के जी सेन्टर भी लाया गया. लेकिन उन्होंने अपनी साफगोई को कभी विदा नहीं किया, वे अपनी ही विचार धारा की सफाई में भी विश्वास करती थी उनके सौ साल होने पर पूरे वर्ष केरल में आघोष मनाने का निश्चय किया गया. वे एक मात्र ऐसी महिला नेता रहीं, जो अपने कर्म से नहीं जुदा हुई, अपनी पार्टी के लिए अपने प्रेम का भी बलिदान कर दिया, लेकिन आधात होने पर वे शेरनी सी फुफकार उठी, और अपने बल पर जनता के लिए काम करती रहीं. वे कम्यूनिस्ट पार्टी की बुराइयों को भी वे बेखौफ बता देती थीं. सोचिए, क्या हम उस महिला के बारे में कुछ जानते हैं? या जानने की कोशिश करते है? 
 

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