किंग जार्ज पंचम के लिए बना था यह डाक बंगला !

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किंग जार्ज पंचम के लिए बना था यह डाक बंगला !

अंबरीश कुमार 
जंगल की सुबह सुहावनी होती है .दरअसल रात जल्दी सोना होता है तो नींद भी तड़के ही खुल जाती है .हम भी उठे और फिर बैठ गए इसके भव्य बरामदे में .हमें चाय मिल गई और वह भी ग्रीन लेबल .ग्रीन टी नहीं .अपने को स्वाद को ग्रीन लेबल का ही भाता है .यह बात अलग है कि पत्ती वाली चाय का प्रोटोकाल थोडा लंबा होता है .यह केतली में कुछ देर रखने के बाद ही लेनी चाहिए और दूध अगर जरुरत हो तो अलग से .ऐसी धुंध वाली सुबह में ग्रीन लेबल की सुगंध वाली चाय का मिलना भी सुखद अनुभव था .जंगल में हर जगह आपकी इच्छा का खाना पीना जल्दी हो नहीं पाता .पर यहां सब इंतजाम था .फिर उस डाक बंगला में जो जार्ज पंचम के स्वागत में वर्ष 1910 में बना हो .चाय के साथ रसोइये से चर्चा भी हुई .डाक बंगले के ये रसोइये न सिर्फ हुनरमंद होते हैं बल्कि अच्छे किस्सागो भी होते है .बताया गया हम जिस डाक बंगला में हैं उसके पहले अतिथि किंग जार्ज पंचम थे .पहले अतिथि क्या होता है यह तो बनाया ही उनके स्वागत के लिए था .वह भी साल था 1910 का .तब तो वही राजा भी थे .लखनऊ में में किंग जार्ज मेडिकल कालेज भी तो बना .फिर इस डाक बंगला में तो वे साक्षात ठहरे ही थे .तब तो सिर्फ ठहरना ही नहीं होता था बल्कि शिकार भी होता था .जाहिर है वे भी शिकार किए ही होंगे .वर्ना पहले हमें भी यह समझ न आया कि इस वीराने में ऐसा भव्य डाक बंगला क्यों बना और अपने पहाड़ की चीड़ इधर कैसे आई .दरअसल सारा आयोजन तो किंग जार्ज पंचम के लिए ही हुआ .इसकी छत तनशी प्रजाति की घास से बनाई गई थी ताकि जार्ज पंचम को कमरे में ठंढी हवा मिले .उनके कक्ष में पुराने जमाने की दरी से बने हाथ से से झुलाने वाले पंखे जिसे एक अर्दली झुलाता रहता था .आज भी वह वैसे ही लगा है . 
साथ ही चीड़ का बाकायदा वृक्षारोपण हुआ ताकि किसी पहाड़ी सैरगाह जैसा अनुभव ही .यह इलाका तो गर्म होता था.जंगल ,जानवर और भव्य डाक बंगला .इसलिए सूपखार के इस डाक बंगला का इतना महत्व भी है .फिर कौन नहीं आया पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी तक . और सुबह शाम आसपास मंडराते हुए तरह तरह के जानवर भी मिल जाते हैं . बाघ, तेंदुआ, ढोल (जंगली कुत्ते), गौर (बाईसन), चीतल, सांभर, चोसिंघा, जंगली सूअर आदि. परिंदे भी रंग बिरंगे . दूधराज, मोर, सफ़ेद पेट वाला कटफोड़वा, क्रेस्टेड सर्पंएंट ईगल, चेंजबल हॉक ईगल, वाइट रम्प भी आसपास दिख जाती है . इसी वजह से कई बड़े नेता भी इधर आए . 

इंदिरा गांधी को तो बाघ देखने की बहुत इच्छा रहती थी .यह किस्सा अपने को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तब सुनाया जब वे केंद्रीय मंत्री थे .वे आए थे रामगढ़ .सामने ही ठहरे .हम लोगों को चाय पर बुलाया .खूब बातचीत हुई .जाते समय गेट पड़ खड़े रहे और बोले कि वाकर पर चल रहा हूं आपकी सीढ़ी उतरना संभव नहीं फिर आऊंगा .बहरहाल किस्सा यह था कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी .अर्जुन सिंह से कहा कि वे बाघ देखना चाहती हैं .मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उनसे कहा कि तीन दिन का समय निकाल कर आएं क्योंकि बाघ कई बार आसानी से नहीं दिखता है .खैर वे आईं और बांधवगढ़ का कार्यक्रम बना .एक हाथी पर महावत के साथ सिर्फ इंदिरा गांधी .उनके पीछे अर्जुन सिंह दूसरे हाथी पर और कुछ अफसर ,सुरक्षा वाले .अचानक एक बाघ निकला और उसने इंदिरा गांधी के हाथी के सामने से छलांग लगा दी .सबकी जान सूख गई .अर्जुन सिंह के हाथ कैमरा था और वह फोटो उन्होंने ली .जिसके फ्रेम में बाघ ,हाथी और इंदिरा गांधी तीनो थे .तब रील वाला ज़माना था .फोटो बनी और सबने देखी पर बाद में वह फोटो जब अपनी आत्मकथा के लिए अर्जुन सिंह ने तलाशनी चाही तो नहीं ही मिली . 

खैर यह किस्सा जंगल से जुड़ा था इसलिए याद आया .यह हार्ड कोर इलाके का जंगल था .सैलानियों के लिए मुक्की का जंगल लाज है.इधर की तरफ आने की इजाजत सभी को नहीं है .खैर चाय पीने के बाद कैमरा लेकर कुछ दूर निकले .पर सड़क के आसपास ही .हालांकि कच्ची सड़क पानी की वजह से रपटीली भी हो चुकी थी .कुछ परिंदे तो मिले भी पर रौशनी की दिशा ऐसी थी कि ढंग की फोटो मिली नहीं .लौट आए और एक बहुत पुराना यात्रा संस्मरण पढने लगे बरामदे में बैठ कर .यह साथ लेकर चले थे जो कलकत्ता से पानी के जहाज से अंडमान तक की समुद्री यात्रा का था .वह भी बहुत रोचक .और इस बरामदे को आप भी देखें जो कभी किंग जार्ज पंचम के लिए बनवाया गया था .डाक बंगला पुस्तक से

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