नाजरेथ अस्पताल को खुलवाने की कवायद तेज

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

नाजरेथ अस्पताल को खुलवाने की कवायद तेज

आलोक कुमार  
मोकामा.जदयू के नेता और विधानसभा पार्षद नीरज कुमार ने ट्वीट कर कहा है कि माँ मरियम के तीर्थस्थल मोकामा है.यहां पर 1948 में नाजरेथ  अस्पताल स्थापित किया गया.दो दशक पूर्व तक राज्य की आधी आबादी लाभान्वित होती थी. @scnfamily  से सादर निवेदन है स्थापना के मूल उद्देश्य सेवाभाव को याद कर इस वैश्विक चिकित्सीय आपदाकाल में सर्वसुविधायुक्त इस संस्थान को मूलरूप मे संचालित करें. 

मोकामा ने हमेशा से आपकी (ईसाई समुदाय)आस्था की सेवा की हैं और आगे भी करती रहेगी. अभी मोकामा को आपकी जरूरत हैं.इस कोरोना महामारी में मोकामा और इसके आसपास के लाखों लोगों का एक मात्र सहारा नाजरेथ अस्पताल, पिछले 10 वर्षो से बंद पड़ा हैं, इस कठिन परिस्थितियों में अस्पताल का फिर से चालू होना, लाखों लोगों के लिए एक वरदान से कम नहीं होगा.आपकी एक ट्वीट हजारों की जान बचा सकती हैं. 


कोरोना महामारी के इस मार्मिक दौर में मोकामा नाजरेथ अस्पताल को फिर से चालू कराने की मुहिम को मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, बड़हिया, लखीसराय, सूर्यगढ़ा, बेगूसराय, सरमेरा आदि जगह के युवाओं का एक बड़ा समूह बढ़ चढ़ कर ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से आवाज उठा रहें हैं. सैंकड़ो बेड का नाजरेथ अस्पताल आज स्थानीय जनप्रतिनिधियों के नकारेपन, यूनियनों की ओर से लगातार किये गए हड़ताल व कई अन्य अज्ञात कारणों की वजह से सुनसान पड़ा है. इस भीषण कोरोना महामारी के वक्त जब पूरे देश में एक एक बेड के लिए हाहाकार मची हो वहीं अगर इस नाजरेथ अस्पताल को खोल दिया जाए तो पता नहीं कितने मरीजों की जान बचाई जा सकती है.  

इस मुहिम का पहला कदम के तहत 7 तारीख को शाम के 7 बजे ट्विटर पर #openmokamanazareth हैश टैग के लिए आह्वान किया गया. जैसा कि आपसभी जानते है इस कोरोना काल के वक्त सरकार के सामने अपनी बात को रखने के लिए सबसे सुलभ और मुख्य साधन ट्विटर है. आपलोग ट्विटर के माध्यम से एक ही वक्त में जितना हो सके ट्वीट करें और लोगों को भी अधिक से अधिक ट्वीट व रिट्वीट के लिए प्रेरित करें ताकि पूरे बिहार और देश में यह मुहिम ट्रेंड कर सके. आपलोगों में जो साथी ट्विटर पर नहीं है वह जल्द से जल्द जरूर इसे जॉइन करें.हम बिहार के हर कोने में रहने वाले अपने समर्थकों और चाहने वालों से विनती करेंगे कि मोकामा व आसपास के युवाओं के द्वारा जारी की गई इस मुहिम में आप अपना सहयोग जरूर करें, हम और पूरा मोकामा वासी इसके लिए आपका सदा आभारी रहेंगे. इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें. 

संपूर्ण मामला यह है कि आजादी के एक साल के बाद सन् 1948 में नाजरेथ अस्पताल स्थापित किया गया.64 साल के सफर करने के बाद बड़े ही नाटकीय ढंग से अस्पताल को 2 जुलाई 2012 से बंद कर दिया गया. एक साथ ही एक ही झटके में 48 कर्मचारी सड़क पर आ गए. 3 जुलाई 2012 से गेट पर धरना कार्यक्रम जारी कर दिया गया. इन 20 माह के दौरान 3 मजदूरों की मौत भी हो गयी है.नाजरेथ अस्पताल के जुल्मी प्रबंधन के द्वारा 3 कर्मचारी शहीद हो गए. आज भी शहीदों के परिवार बिलबिलाने को मजबूर हैं.कोई अपने पतिदेव की तस्वीर को लेकर आंसू बहा रहे हैं तो कोई भुखमरी के शिकार हो गये है. परोपकारी संस्था के ढाल रखने वाले मिशनरी संस्थाओं पर सरकार के द्वारा नकेल नहीं कंसने से मिशनरियों का हौसल्ला सातवें आसमान तक पहुंच गया है. 

   बर्बादी की कहानी 30 जून 2012 को लिखी गयी. 1 जुलाई को 48 कर्मचारियों की सूची बनायी गयी.2 जुलाई को नाजरेथ अस्पताल बंद करने की घोषणा की गयी. 3 जुलाई को मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष ने बर्बादी की कहानी वाला पत्र प्राप्त किया.देखते-देखते अस्पताल के बंद होने के 20 माह गुजर गये. इस दौरान 3 साथी परलोक सिधार चुके.8 जुलाई 2012 को छंटनीग्रस्त राजू राउत, 20 जून को सूसन किस्कू( सालोनी किस्कू) और 9 मार्च 2014 को रोहन दास की मौत हो गयी. इस ओर अस्पताल की प्रशासिका सिस्टर मूकदर्शक बन गयी हैं.इस पर मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना चाहिए. 

09 साल से अस्पताल बंद है.अस्पताल बंद होने से केवल कर्मचारी ही बेहाल नहीं बल्कि आसपास के लोग भी हलकान हो गए हैं.अस्पताल के आसपास के दुकानदारों का तो बुरा हाल है.इनका आमदनी का जरिया ही बंद हो गया है.कुल मिलाकर  क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि क्या करें और क्या न करें.फिलवक्त रोनकदार अस्पताल में सन्नाटा पसर गया है. 

  ईसाई धर्म स्वीकारने वाले और यहां के गाड़ी चालक दानिएल रोजारियों ने चालाकी से मिशन में रहकर मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन गठित कर पाने में सफल हुए थे. इसके कुछ दिनों के बाद मिशनरी प्रशासकों ने चालक को दूध में पड़े मक्खी की तरह नौकरी से बाहर कर दिये थे. 

  मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष मारकुस हेम्ब्रम ने कहा कि हर दिन की तरह कर्मचारी काम करने जा रहे थे कि ओपीडी की सुपरवाइजर सिस्टर टेस्सी ने कहा कि 2 जुलाई 2012 से नाजरेथ अस्पताल बंद हो गया.आप लोग इस लिफाफा को स्वीकार कर ले. तब कर्मचारियों ने चट्टानी एकता दिखाते हुए सिस्टर के द्वारा दिया जा रहा लिफाफा को लेना मंजूर नहीं किये और ओपीडी में ही धरना पर बैठ गये. अनुमान के अनुसार कोषाध्यक्ष ने कहा कि ग्रेच्यूटी और जून माह का वेतनादि का चेक था. ओपीडी में 10 जुलाई तक धरना होने से ओपीडी बंद कर दिया गया. इसके बाद मुख्यद्वार को भी बंद करने से हारकर कर्मचारी मुख्यद्वार के बाहर धरना देना शुरू कर दिये. 
 धरना स्थल पर महिला कर्मी मोनिका हेम्ब्रम ने 38 साल, टेरेसा केरोबिन ने 32 साल, सावित्री कुमारी 29 साल,तपोथी मंराडी ने 28 साल,मार्था टुडू ने 28 साल,राम विलास पासवान ने 28 साल, मारकुस मंराडी ने 28 साल, राजू राउत ने 28 साल,रोहन दास 28 साल तक कार्य किये. इनके अलावे मो0 चांदो,राजेन्द्र रजक, मो0गुलाम रसूल, टुनटुन राउत,देवेन्द्र चौधरी,अखिलेश्वर प्रसाद, अशोक कुमार,अभयकांत कुमार, राम मंडल,अजीत कुमार,दीपक कुमार, माइकल हेम्ब्रम, क्लारा कर्माकर,मटिल्डा सोरेन, कार्मेला बेक, विमला मुर्मू, आग्नेस टुडू,रोसालिया मुर्म, जसिन्ता राजू, होनोरा मुर्मू, क्रिस्टीना किस्कू, शांति मुर्म,सावित्री कुमारी,किरन कुमारी,सिसिलिया जोआकिम, सुजीना कुमारी ,लीली टोप्पनो, एलवीना एक्का,मार्सेला सोरेन, चुबी कुमारी,सुसन किस्कु (सालोनी किस्कू),कुंती देवी, वैशाखी राय,टरेसा मरांडी,मरिया गा्रेरेटी बास्की,संगीता मुर्मू,राजेष कुमार,लाजरूस मुर्मू, शैला लुसिया और मो0मुस्लिम को भी हटा दिया। सेन्टर सप्लाई में 38 साल से मोनिका हेम्ब्रम  ने कहा कि 38 साल काम करने के एवार्ड नौकरी से बाहर कर देना है.नर्सेज एड में काम करने वाली मार्था टूडु ने कहा कि 28 साल की सेवा को सिस्टर उषा ने चुटकी बजाकर समाप्त कर दी. 


अपने सहकर्मी की मौत से आक्रोशित अस्पताल कर्मियों ने 11 मार्च को नाजरेथ अस्पताल के गेट पर प्रदर्शन किया. इसके पहले 10 मार्च को दोपहर धरना सभा के दौरान रोहन दास की तबीयत अचानक बिगड़ गई.  इलाज के अभाव में उसने देर रात दम तोड़ दिया। इससे नाराज अस्पताल कर्मियों ने अस्पताल प्रबंधन के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. विरोध प्रदर्शन में मजदूर यूनियनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया. अस्पतालकर्मियों को काम पर वापस ले की मांग पर अड़े हैं. वहीं अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि यहां अब ज्यादा कर्मियों की जरूरत नहीं है. उनके बैंक खाते में सेवानिवृत्ति की राशि जमा करा दी गई है. फिलवक्त मजदूर यूनियन और अस्पताल प्रबंधन के बीच लेबर कोर्ट में भी केस चल रहा है.श्रम आयुक्त इसकी सुनवाई कर रहे हैं.ग्रामीणों का कहना है कि इन मजदूरों को न्याय नहीं मिला तो भूखे मर जाएंगे.सरकार और स्थानीय प्रशासन को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए.इस खुद मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना चाहिए. 


इस बीच नाजरेथ अस्पताल मैनेजमेंट के हेडक्वॉर्टर अमेरिका में सिस्टर ऑफ चैरिटी को मोकामा की जनता के दुःख दर्द से भरी दास्तान का ईमेल भेजा गया है.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :