ममता होंगी मोदी मुखालिफ चेहरा

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ममता होंगी मोदी मुखालिफ चेहरा

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! मगरिबी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की चीफ ममता बनर्जी ने जिस बेमिसाल कामयाबी के साथ फिरकापस्ती और नफरत की सियासत को शिकस्त दी है उससे मुल्क की सियासत पर भी बहुत गहरा असर पड़ने की तवक्को है. राहुल गांधी, शरद पवार, उमर अब्दुल्लाह, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव समेत जितने भी सियासी लोगों ने ममता की शानदार जीत पर उन्हें मुबारकबाद दी सभी ने इस बात पर खास जोर दिया है कि ममता ने फिरकापरस्त ताकतों की नफरत के जहर को न सिर्फ हराया है बल्कि उसपर सख्त चोट करते हुए धूल चटा दी है. सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम, श्मशान, कब्रस्तान जैसे नफरत भरे नारों की बुनियाद पर सियासत करने वालों को ममता बनर्जी ने जो सख्त सियासी चोट पहुंचाई है उसका नतीता मगरिबी बंगाल के हिन्दू अक्सरियती पांच जिलों झाड़ग्राम, पूर्वी मिदनीपुर, पच्छिमी मिदनीपुर, पूरूलिया और बांकुड़ा में बीजेपी बुरी तरह हारी और ममता बनर्जी ने अपनी कामयाबी के झण्डे गाड़ दिए. इन जिलों में नव्वे से सत्तान्नवे (90-97) फीसद हिन्दू आबादी है. इस आबादी में दलितों और आदिवासियों की अक्सरियत है. शुरू से यह प्रोपगण्डा किया जा रहा था कि मगरिबी बंगाल के दलित और आदिवासी खुसूसन मतुवा दलित समाज पूरी तरह से बीजेपी और नरेन्द्र मोदी के साथ है. नरेन्द्र मोदी ने तो बांग्लादेश के मतुवा तबके के मंदिर में जाकर यहां तक कह दिया था कि वह भारत में आपका इस्तकबाल करने के इंतजार में हैं. शहरियत तरमीमी बिल (सीएए) इसीलिए लाया गया था. वह दरअस्ल बांग्लादेश के मतुवा समाज के बहाने मगरिबी बंगाल के मतुवा समाज को मैसेज दे रहे थे. अभी तक जब भी मोदी की बीजेपी को हराने की बात होती थी एक बड़ा तबका यह सवाल करने लगता था कि अगर मोदी को वोट न दें तो किसे दें. अब यह मसला भी हल होता दिख रहा है. दुनिया के सामने है कि एक तरफ मोदी और उनकी पूरी पार्टी हिन्दू मुस्लिम और राष्ट्रवाद के सहारे चुनाव लड़ रही थी वहीं ममता बनर्जी तरक्कियाती कामों, बंगला मानुष, सेक्युलरिज्म जैसे मुद्दों पर उन्हें जवाब दे रही थी. मतलब यह कि अगर मोदी और उनकी पार्टी हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के हथियारों से लैस होकर मैदान में उतरी थी तो ममता बनर्जी उन्हें सेक्युलरिज्म, इंसानियत और बंगाली अजमत के हथियारों से जवाब दे रही थीं. बीजेपी ने पूरी एलक्शन मुहिम के दौरान इल्जाम लगाया कि ममता मुसलमानों की मुंहभराई (तुष्टिकरण) करती हैं और हिन्दुओं को दुर्गापूजा तक नहीं करने देतीं. बंगाल के अवाम ने जवाब दिया नरेन्द्र मोदी आप और आपकी पार्टी पूरी तरह से झूट बोल रही है हम लोक सभा एलक्शन में आपके झूट को समझ नहीं पाए थे और आपके झांसे में फंस गए थे. अब ऐसा नहीं होगा. हमें आपकी हकीकत का पता चल गया है अब हम आपके झांसे में नहीं फंसेंगे. नतीजा यह दो सौ से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करने वाले सतहत्तर (77) सीटों पर ही सिमट गए वह भी तब लेफ्ट फ्रण्ट और कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया. 
इस असम्बली एलक्शन से यह भी तय हो गया कि अगर पूरी ईमानदारी से ममता बनर्जी की तरह फिरकापरस्ती से लड़ा जाए तो इसे हराया भी जा सकता है. एक और बात जो ममता बनर्जी के हक में जाती है वह यह है कि वह न तो मोदी की तरह मगरूर (घमण्डी) हैं और न जबरदस्ती गैर जरूरी तरीके से ‘अना’ की बातें करती हैं. कांग्रेस उनके खिलाफ लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलकर असम्बली एलक्शन लड़ रही थी इसके बावजूद एलक्शन मुहिम के दौरान उन्होने सभी अपोजीशन पार्टियों को खत लिखकर अपील की कि सभी को मिलकर बीजेपी से लड़ना चाहिए तो वह खत उन्होंने कांग्रेस की सदर सोनिया गांधी को भी भेजा. नरेन्द्र मोदी इसी पर खुश हो गए थे उन्होने कह दिया कि ममता को अपनी शिकस्त का एहसास हो गया है इसीलिए उन्होने तमाम अपोजीशन पार्टियों से मदद मांगी है. 
आम हिन्दुस्तानी यह चाहता है कि वह खुद तो हर तरह जायज और नाजायज कमाई करके दौलतमंद बन जाए लेकिन उसके लीडर ईमानदार और सादा जिंदगी बसर करने वाले हों. ममता बनर्जी इस पैमाने पर भी खरी उतरती हैं. वह डेढ-दो सौ रूपए की मामूली सूती साड़ी पहनती हैं उनके पैरों में हवाई चप्पलें होती है. कलाई पर न घड़ी न सोने की चूड़ियां और न ही महंगा मोबाइल. वह कोई भत्ता और तंख्वाह भी सरकारी खजाने से नहीं लेती. उन्हें किताबों और म्यूजिक की रायल्टी मिलती है उसी से अपना खर्च चलाती हैं. दस साल से चीफ मिनिस्टर हैं सरकारी मकान में रहने के बजाए अपने एक कमरे के जाती मकान में रहती है. दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी हैं जो रोजाना लाखों की कीमत के कुर्ते पाजामे और जैकेट पहनते हैं उनकी सिक्योरिटी पर भी साल भर में कई सौ करोड़ खर्च होते हैं. प्राइम मिनिस्टर का दौरा साल में कितनी बार होता है इसके बावजूद अमरीकी सदर की बराबरी करने के चक्कर में उन्होने आठ-साढे आठ हजार करोड़ में अपने लिए खुसूसी किस्म का बोइंग खरीद लिया. मजबूरी में मुल्क के राष्ट्रपति के लिए भी वैसा ही जहाज खरीदना पड़ा. ममता की सादगी भी नरेन्द्र मोदी पर भारी पड़ सकती है और पूरा आरएसएस मिल कर भी ममता पर कोई जाती इल्जाम नहीं लगा सकता है. 
ममता बनर्जी की सादगी ही है कि एलक्शन मुहिम के दौरान नरेन्द्र मोदी ने सत्रह (17) बार बंगाल का दौरा करके रैलियां कीं तो उनके होम मिनिस्टर अमित शाह ने इक्कीस (21) रैलियां कर डाली इसके अलावा जेपी नड्डा जैसे पार्टी के दूसरी कतार के लीडरान तो बंगाल में ही पड़े रहे. जितने घटिया से घटिया इल्जामात मुमकिन थे इन लोगों ने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी पर लगा डाले. इन लोगों ने दिल्ली से जाकर जितनी रैलियां कर डाली उतनी रैलियां तो ममता बनर्जी बंगाल में रहकर नही कर पाईं. इतनी रैलियां और झूटे इल्जामात भी काम नही. आए. 
ममता बनर्जी की शानदार जीत ने यह भी साबित कर दिया कि अगर सच्चाई और ईमानदारी के साथ फिरकापरस्तों से लड़ा जाए तो इन्हें शिकस्त देना बहुत मुश्किल काम नहीं है. अभी तक कांग्रेस पार्टी ही मुल्कगीर पैमाने पर बीजेपी और नरेन्द्र मोदी से लड़ने का काम कर रही थी लेकिन वह भी आधे अधूरे दिल के साथ. मोदी और उनकी पार्टी सीधे-सीधे फिरकावाराना तरीके से लड़ रही थी तो कांग्रेस नर्म हिन्दुत्व का मुजाहिरा करके उसका मुकाबला करने की कोशिश करती रही है. कभी राहुल गांधी मंदिरों का दौरा करते फिरते थे तो कभी जनेऊ दिखाकर खुद को हिन्दू साबित करते दिखते थे. खुद राहुल गांधी और उन्हें मश्विरा देने वालों ने कभी यह नहीं सोचा कि मोदी के सामने उन्हें कोई भी हिन्दू तस्लीम नहीं करेगा. ममता ने पूरी ईमानदारी के साथ मोदी एण्ड कम्पनी के हिन्दूत्व का मुकाबला किया नतीजा सबके सामने है. 
नरेन्द्र मोदी और उनकी बीजेपी ने इस एलक्शन में कम्युनिस्ट पार्टियों और कांग्रेस का भी पूरा वोट ले लिया इसके बावजूद 2019 के लोक सभा एलक्शन के मुकाबले उसका वोट कम हुआ है. मोदी की इतनी शर्मनाक शिकस्त कि पार्टी सौ सीटें भी नहीं जीत सकी. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि नरेन्द्र मोदी अमित शाह और जेपी नड्डा समेत बीजेपी के तमाम लोगों ने ममता बनर्जी पर जाती हमले बहुत ज्यादा किए जबकि ममता के मुखालिफीन भी उन्हें बेईमान मानने को तैयार नहीं हैं. मोदी की बीजेपी ने पानी की तरह पैसा बहाया और मिथुन चक्रवर्ती जैसे लालचियों को मोटी रकम के एवज में अपनी तरफ कर लिया इसे भी आम बंगालियों ने अच्छा नहीं समझा.

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