डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान
कहावत है कि 'ज़िन्दा तारण गोमती,मुर्दा तारण गंग'.मतलब कि गोमती नदी ज़िन्दा लोगों को तारने वाली है.गोमती का अर्थ है,गाय जैसी,मतलब गाय के समान.सनातन धर्म में गोमती को गंगा से पुरानी नदी कहा गया है,कहते हैं कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो दो ही नदियाँ उस समय बनाईं,एक गोमती और दूसरी कावेरी.गंगा तो त्रिधारा के रूप में आयी,तीसरे नंबर पर आयी.गोमती कैसे ज़िन्दा लोगों को तारती है इसका एक उदाहरण 'फ़रहत बख़्श कोठी' है.आज सुबह शहर लखनऊ की फ़रहत बख़्श कोठी की तरफ़ जाना हुआ.एडिशनल तौर पर एक मकसद हवाख़ोरी भी सिद्ध हुआ.फ़रहत बख़्श कोठी का निर्माण फ़्रांसीसी जनरल क्लाड मॉर्टिन ने सन् 1781 में कराया.क्लॉड मॉर्टिन इसमें रहा करता.तब इस कोठी को 'मॉर्टिन विला' के नाम से जाना जाता था.क्लॉड मॉर्टिन के निधन के बाद अवध के नवाब आसफ़ुद्दौला ने इस कोठी को ख़रीद लिया.वक़्त गुज़रा,एक बार अवध के नवाब सआदत अली ख़ान गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.ब्रिटिश रेज़ीडेंट देखने आया तो उसने नवाब से कहा कि आप स्वास्थ्य लाभ के लिए मॉर्टिन कोठी में रहिए,वहाँ की हवा से स्वस्थ हो जाएंगे.
रेज़ीडेंट की सलाह पर नवाब सआदत अली ख़ान इस कोठी में रहने चले गए.जब नवाब पहुँचे तो मौसम-ए-गर्मा था,मतलब ग्रीष्म ऋतु थी,बाहर शिद्दत की गर्मी थी,लेकिन इस कोठी के तहख़ाने का निर्माण इस तरह हुआ था कि ज़िन्दा लोगों को तारने वाली गोमती नदी के पानी से होकर आने वाली ठंडी हवाएँ इस कोठी के तहख़ाने को ठंडा रखती थीं.नवाब साहब तहख़ाने मतलब भूधरे में ही अड्डा बनाकर रहने लगे,शामों को कोठी की बालकनी में भी बैठा करते,इसकी गोथिक शैली की बालकनी ऐसी बनी है कि इस बालकनी से उस दौर का चारों तरफ़ का लखनऊ दिखा करता.ऐसी ही बालकनी लखनऊ के वर्तमान लॉ मार्टिनियर कॉलेज में भी है,उसे भी क्लॉड मॉर्टिन ने बनवाया था.ख़ैर,कुछ ही दिनों में नवाब सआदत अली ख़ाँ बिल्कुल स्वस्थ हो गए.अपने स्वास्थ्य लाभ से नवाब इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने इस मॉर्टिन कोठी में और आसपास नए-नए निर्माण कराए,ख़ूबसूरत चित्रकारी करायी,दांतेदार मेहराबें बनवायीं और ठेठ अवधी शैली की खिड़कियाँ भी बनवाईं,फिर इसका नाम रखा 'कोठी फ़रहत बख़्श'.जिसका मतलब होता है 'आनंददायक कोठी'.
बाद में इस कोठी के बगल में छतर मंज़िल भी बनी जो एक दौर में अवध की सत्ता का केन्द्र थी.आज सुबह कोठी फ़रहत बख़्श की ये तस्वीर मेरे कैमरे से.क्योंकि सुबह सूरज पूरब दिशा से उग रहा था और आज लखनऊ में बदली भी है लिहाज़ा तस्वीर बहुत साफ़ नहीं आयी,जब सूरज उतार पर होता है और उसकी रोशनी पश्चिम से पड़ती है तो कोठी फ़रहत बख़्श साफ़ नज़र आती है.इस कोठी की डिज़ाइन ही ऐसी है कि जब दिन में सूरज उतार पर हो और गर्मी के मौसम में शिद्दत की गर्मी पड़ती हो तो कोठी के तहख़ाने के उस हिस्से में गर्मी ना पहुँचे जहाँ गोमती नदी के ठंडे पानी को छूते हुए ज़िन्दा लोगों को तारने वाली ठंडी हवा का गुज़र होता हो.
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