डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
आज सुबह की सैर के दौरान लखनऊ पारसी अंजुमन की तरफ़ से गुज़र हुआ.लखनऊ में अब पारसी गिनती के ही बचे हैं,पचास से भी कम,उनमें से ज़्यादातर इसी पारसी अंजुमन के कैंपस में रहते हैं.पारसी आग की पूजा करते हैं,अग्नि उपासक समुदाय है,इनके मंदिर को अग्यारी कहते हैं,पारसियों के मंदिर में आग हमेशा जलती रहती है.लखनऊ के इस पारसी दुआ घर में अग्यारी नहीं है,लेकिन क़रीब दस-बारह बरस पहले हम नवरोज़ के दिन इस अंजुमन में गए थे तो यहाँ पवित्र अग्नि जल रही थी,पारसी अपने मंदिर में किसी को नहीं आने देते,लेकिन हमें किसी ने रोका नहीं तो हम अपने दोस्त यादव जी के साथ इस पारसी मंदिर में चले गए थे.लखनऊ के पारसी कानपुर के पारसियों से जुड़े हैं,कानपुर में पारसियों का फ़ायर टेंपल है,कानपुर से ही पारसियों के धार्मिक काज कराने पारसी धर्मगुरू आते हैं.पारसी धर्म मानने वाले व्यक्ति के शव को मृत्यु के बाद टॉवर ऑफ़ साइलेंस नाम के ऊंचे टावर पर रखने का विधान है जिससे चील-गिद्ध शव को खा सकें,लेकिन लखनऊ में टॉवर ऑफ़ साइलेंस नहीं है,बॉम्बे में है,लखनऊ में पारसी अपने शवों को दफ़नाते हैं,यहाँ उनका कब्रिस्तान है,इलाहाबाद में भी पारसी कब्रिस्तान है.वैसे भी आजकल गिद्ध कम हो गए है,रतन टाटा ने टॉवर ऑफ़ साइलेंस के लिए गिद्ध की संख्या बढ़ाने के लिए काफ़ी प्रयास किया है.ख़ैर,दो सदी पहले गुजरात से रेशम और मोती का काम करने वाले पारसी नवाबी दौर में लखनऊ में आकर बसे,जहाँ आज जीपीओ है,वहीं उनकी बसावट थी,ये लोग रेशम और मोतियों का व्यापार करते थे जिसकी नवाबी दौर में ख़ूब मांग थी.तब से यहाँ पारसी आबाद हैं.दिल्ली में भी पारसी आबाद है,एक पारसी मंदिर में हम दिल्ली में गए हैं,वो है दिल्ली के दरियागंज का पारसी मंदिर.लेकिन सबसे ज़्यादा पारसी बॉम्बे में हैं.ज़्यादा क्या अब पूरे देश में लगभग पचास हज़ार पारसी ही बचे हैं,इनकी घटती संख्या के पीछे वजह है इंटर रिलीजन मैरिज,जो पारसी पुरूष ग़ैर पारसी महिला से शादी कर लेता है उसके बच्चों को तो पारसी अपना मानते हैं,लेकिन जब पारसी लड़की ग़ैर पारसी लड़के से शादी करती है तो पारसी उस लड़की के बच्चों को पारसी नहीं मानते.बहरहाल,पारसी देश की एक शिक्षित क़ौम है,कितने प्रसिद्ध पारसियों के नाम गिनाएं जिन्होंने देश की सेवा की,बहुतेरे नाम हैं.पारसी अपने रीति-रिवाजों और कर्मकांडों को लेकर बहुत सजग रहते हैं,वो बाहरी हस्तक्षेप पसंद नहीं करते.पारसी ईरान से हिंद में आए,अपने साथ अपना कल्चर लाए,पारसी खानपान का भी अपना एक कल्चर है,कई बरस पहले बॉम्बे में कई ईरानी रेस्त्रां में हमने पारसी व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया,खाने के साथ-साथ बॉम्बे के ईरानी रेस्त्रां की चाय भी ख़ूब होती है जिसे दम ईरानी चाय कहते हैं.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments