राकेश 'रफीक'
किसान आंदोलन अब अपने तीसरे चरण में प्रवेश कर दिया यहां किसान और सरकार दोनों एक दूसरे के सामने ऐसे खड़े हैं जैसे युद्ध की सेना सरकार अपने वजीर कोरोना को लेकर आगे चल पड़ी तो ऑक्सीजन के संकट में खुद ही उलझ गई अब सरकार की समझ में यह नहीं आ रहा कि कोरोना के नाम पर अगर किसान को दिल्ली से हटाया जाए तो ऑक्सीजन के नाम पर उसकी जो खिलाफत हो रही है उसका दायरा और ज्यादा व्यापक बन जाए गा. दूसरी तरफ किसान नेताओं में शायद सबसे ज्यादा समझदार उग्रहा जीने 21 तारीख को पंजाब से किसानों को आने का जो कॉल दिया था उसमें लगभग 20000 किसान टिकरी बॉर्डर पर पहुंच गए और तब से अभी तक पंजाब से आने वाले किसानों का सिलसिला जारी है हरियाणा के किसान भी बॉर्डर पर पहुंच गए इस प्रकार सरकार की यह योजना कि कोरोना के डर से लोग दिल्ली नहीं आएंगे . या किसान अब थक चुके हैं दिल्ली नहीं आएंगे यह सब अनुमान धारा शाही हो गए.
अब सरकार का असमंजस , साबित कर रहा है कि सरकार 2 तारीख को चुनावी नतीजे आने के बाद ही कोई कदम उठाएगी इस तरह फैसला मई माह में होगा यह मई माह भारत की तारीख में बहुत महत्व का है इसी माह में 18 57 का भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ। इस संग्राम के लिए योजनाकारो ने निर्धारित तारीख 31 मई तय की थी लेकिन 10 मई को मेरठ के सैनिकों में असंतोष इतने चरम पर पहुंच गया कि उन्होंने अंग्रेजों को मार कर मेरठ पर कब्जा कर लिया और 11 मई को दिल्ली पहुंच कर बहादुर शाह जफर को अपने आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया इस प्रकार बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत की नई राज व्यवस्था प्रारंभ हुई एक दिन योगेंद्र यादव का फोन आने पर मैंने 10 मई की बात कही थी बाद में उन्होंने संयुक्त मोर्चे की मीटिंग का दिन 10 मई निर्धारित कर दिया .यानी किसान 10 मई को 18 सो 57 के महानसंग्राम को याद करेंगे वास्तविकता भी यह है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों की इतनी तो जीत हुई ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हुआ लेकिन महारानी विक्टोरिया का शासन कायम हो गया और हमें ब्रिटिश प्रजा मान लिया गया .
तब से शुरू हुआ कानून के शासन के नाम पर अंग्रेजों का ऐसा शासन जिसने भारत के लोगों को कानून के नाम पर इतना दबा दिया कि उनकी पहल कदमी हीं खत्म हो गई और शिक्षा के नाम पर ऐसा सब पढ़ा दिया जिससे एक और वह अपने मां-बाप को पिछड़ा समझने लगे और दूसरी और अपने समाज के दूसरे धर्म और जाति के लोगों के खिलाफ द्वेष भावना पालने लगे अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए झूठ आज भी भारतीय समाज में जीवित है अंग्रेजों के शासन के खिलाफ 18 57 के बाद 90 वर्ष तक चले स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों का शासन तो खत्म हुआ लेकिन अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई व्यवस्था और कानून अंग्रेजी काल के ही बने रहे इसलिए सत्ता हस्तांतरण के उपरांत गांधी जी ने कहा अब हम भारत के गांव की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ेंगे क्योंकि अंग्रेजी व्यवस्था के तहत गांव का स्तर गुलामी का ही था लेकिन आजादी के बाद भारत की विशिष्ट ग्रामीण व्यवस्था को भूल कर पश्चिम जैसा भारत बनाने की कोशिश आज तक जारी हैं
80 के दशक में जब किसान आंदोलन चले थे तब भारत बनाम इंडिया की बहस इसी ओर इशारा करती थी ।भारत यानी गांव के देश को इंडिया यानी अंग्रेजी सभ्यता में ढले हुए शहरों के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ने की योजना थी लेकिन दुर्भाग्य से किसानों के संगठनों की आपसी लड़ाई में यह लड़ाई अधूरी रह गई अबकी बार देशभर के किसानों की व्यापक एकता कायम हुई है और उम्मीद बनी है कि महात्मा गांधी के सपनों का देश बनाने के लिए देशभर के किसान अब अंग्रेजी सभ्यता ,अंग्रेजी संस्कृति और अंग्रेजी से अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। देखना यह है कि मई माह में सरकार अपने कदम पीछे हटा लेती है या किसानों को अपने आंदोलन को नए चरण में ले जाना पड़ेगा.
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