अंबरीश कुमार
वर्ष 1890 के आसपास ब्रिगेडियर जानसन कुमायूं के रामगढ़ में आ बसे .शौकीन मिजाज जानसन को प्रकृति से लगाव था वर्ना काठगोदाम से अल्मोड़ा के पैदल रास्ते पर घोड़े से करीब पचास किलोमीटर का रास्ता तय कर इतनी उंचाई पर न आते .उन्होंने बहुत शानदार कोठी उस समय बनवाई जो आज भी खड़ी है और ग्वालियर के सिंधिया परिवार के पास है .इस कोठी में राजमाता सिंधिया समेत उनके परिवार के सभी सदस्य सत्तर अस्सी के दशक तक आते रहे .उनके साथ गांधी परिवार भी छुट्टियां बिताने इधर आता .संजय गांधी इसी परिसर में परिंदों का शिकार करते .पर यह कोठी बनती उजडती भी रही .
ब्रिगेडियर जानसन ने बड़े शौक से यह कोठी बनवाई .आज भी समूचे रामगढ़ में इसके फायर प्लेस की डिजाइन की तारीफ़ होती है .अपने कैप्टन साहब एक बार बर्फ में ऐसे फंसे कि नीचे के रास्ते पर जाना मुश्किल हो गया तो एक रात इसी कोठी में गुजारी .उन्होंने बताया कि बाहर बर्फ गिर रही थी और वे भीतर के कमरें में फायर प्लेस के सामने बैठ गए .ओवर कोट से लेकर मफलर स्वेटर सब लादे हुए थे .पर आधे घंटे बाद वे सिर्फ पैंट शर्ट में आ गए .ऐसा फायर प्लेस जिससे भीतर जरा सा भी धुआं नहीं रुकता .हालांकि अब इस कोठी का रखरखाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता .
जब यह कोठी बनी थी तो बहुत कम घर आसपास में थे .इसके जैसा तो कोई था ही नहीं .पर ब्रिगेडियर जानसन ने दो दशक के भीतर ही इसे ब्रिटिश सेना के एक अफसर लिंकन को बेच दी .जिसके बाद यह लिंकन स्टेट कहलाई .लिंकन ने इसे सजाया और संवारा .इसे ' एप्पल गर्थ ' का नाम दिया गया .उन्होंने ब्रिटेन से सेब की करीब सौ प्रजातियों के सेब अपने 410 एकड़ के फार्म में लगा दिए .इनमें कुछ प्रजातियां थी 'ब्यूटी आफ बाथ ,विंटर बनाना ,किंग डेविड और न्यूटन आदि .रामगढ़ अगर आज कुमायूं की फल पट्टी बना हुआ है तो उसका ज्यादा श्रेय लिंकन को भी जाता है .
पर वर्ष 1930 में लिंकन को भी भारत छोड़ना पड़ा और उहोने मध्य प्रदेश के महाराजा अजय गढ़ को सेब का यह बड़ा बगीचा और कोठी बेच दी .महाराजा अजय गढ़ से सिंघिया परिवार ने साठ के दशक में यह आर्चिड और कोठी ले ली .सिंधिया ने इसका नाम वृंदावन आर्चिड रखा .पर उसी दौर में सीलिंग के चलते सरकार ने 320 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर ली .अब नब्बे एकड़ जमीन बची जिसके बीच में आज भी यह कोठी मौजूद है .अब यह सिंधिया के पारिवारिक ट्रस्ट के हाथ में है .और जैसे ट्रस्ट चलते हैं वैसे ही यह भी चल रहा है .इस कोठी के कई किस्से कहानियां भी हैं .एक दौर में शाम होते ही इस कोठी की रौनक बढ़ जाती थी .दिन में आसपास के घने जंगल में लोग शिकार करते और रात में महफ़िल जमती .
अब शादी ब्याह या किसी स्थानीय कार्यक्रम के समय ही इसमें भीड़ भाड़ नजर आती है .इस आर्चिड के बीच से एक रास्ता सेब नाशपाती के बगीचे के बीच से गुजरता है जिससे हम भी निकलते हैं .सामने हिमालय खड़ा रहता है पर बच्चे सेब तोड़ते हुए चले जाते हैं कोई कुछ कहता नहीं .पीली कोठी के महत्वपूर्ण तथ्य भट्ट जी ने दिए जिनका ढाबा बहुत मशहूर है .वे अच्छे किस्सागो भी हैं
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