प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता
"इस सीट पर अबकी मुकाबला बेहद नजदीकी है. टीएमसी उम्मीदवार चंद्रिमा भट्टाचार्य और सीपीएम के विधायक रहे तन्मय भट्टाचार्य बीते पांच वर्षों के दौरान इलाके के लोगों के सुख-दुख में लगातार साथ खड़े रहे हैं. ऐसे में टक्कर बराबरी की है."---कोलकाता से सटे दमदम उत्तर विधानसभा क्षेत्र के एक सेवानिवृत्त शिक्षक मनोतोष घोष इन शब्दों में ही इलाके की चुनावी लड़ाई की तस्वीर पेश करते हैं. बीजेपी ने भी यहां अपना उम्मीदवार उतारा है. लेकिन उसे बाहरी के तमगे से जूझना पड़ रहा है.
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित दमदम उत्तर विधानसभा इलाके में दो किस्म की आबादी है. पहली देश के विभाजन के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश से आकर बसे लोगों और दूसरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए लोगों की. इस सीट पर हालांकि लड़ाई टीएमसी उम्मीदवार और स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और पिछले चुनाव में उनको हराने वाले सीपीएम के तन्मय भट्टाचार्य के बीच है. लेकिन बीजेपी की अर्चना मजूमदार भी यहां खुद पर लगे बाहरी के तमगे को हटाने और घर-घर जाकर अपनी पहचान बनाने का भरसक प्रयास कर रही हैं. उत्तर 24-परगना जिले की इस सीट पर छठे चरण में 22 अप्रैल को मतदान हो रहा है.
कभी लेफ्ट का गढ़ रहे इस इलाके में वर्ष 2011 के चुनाव में टीएमसी ने सेंध लगाई थी. चंद्रिमा भट्टाचार्य यहीं से जीत कर ममता बनर्जी सरकार में मंत्री बनी थीं. लेकिन पांच साल बाद हुए चुनाव में सीपीएम के तन्मय भट्टाचार्य के हाथों उनको हार का मना करना पड़ा. बाद में चंद्रिमा पूर्व मेदिनीपुर की दक्षिण कांथी सीट पर हुए उपचुनाव में जीत कर दोबारा मंत्री बनी थीं. लेकिन दक्षिण कांथी की विधायक होने के बावजूद चंद्रिमा बीते पांच वर्षों के दौरान लगातार इस इलाका का दौरा करती रहीं हैं. बीते साल कोरोना महामारी के दौरान भी वे इलाके के लोगों के साथ खड़ी रही थीं.
दूसरी ओर, बीते साल जितने वाले सीपीएम विधायक तन्मय भट्टाचार्य के बारे में भी यही बात कही जा सकती है. तन्मय के कट्टर विरोधी भी मानते हैं कि हर मुसीबत के समय इलाके के लोगों के साथ खड़े होने में उनका कोई सानी नहीं है. तन्मय ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान राज्य सरकार के असहयोग का मुद्दा उठाते रहे हैं. वह कहते हैं, बीते पांच साल में आम लोगों के हित में काम करने के दौरान उनको सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से कई बाधाओं का सामना करना पड़ा है. सड़कों का काम नहीं करने दिया गया. मैंने अपनी विधायक निधि का पूरा पैसा इलाके के विकास पर खर्च किया है.
लेकिन टीएमसी उम्मीदवार चंद्रिमा का दावा है कि सीपीएम विधायक ने इलाके के विकास के नाम पर कुछ भी नहीं किया है. अपनी कमी छिपाने के लिए अब वे टीएमसी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
चंद्रिमा और तन्मय के बीच इस लड़ाई में बीजेपी उम्मीदवार अर्चना मजूमदार को अपनी पहचान बनाने के लिए जूझना पड़ रहा है. उनकी मुश्किल स्थानीय लोगों का यह आरोप है कि कोरोना के समय बीजेपी का कोई नेता या कार्यकर्ता इलाके में नजर नहीं आया था. लेकिन तमाम प्रतिकूल हालात से जूझते हुए अर्चना ने अपने अभियान में राज्य सरकार के साथ ही स्थानीय सीपीएम विधायक की कथित नाकामी को प्रमुख मुद्दा बनाया था. उनका कहना है कि टीएमसी सरकार तोलाबाजी यानी उगाही में जुटी है जबकि लेफ्ट के 34 साल के शासनकाल के दौरान यह इलाका पूरी तरह उपेक्षित रहा है.
वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम के तन्मय भट्टाचार्य ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी और तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रिमा भट्टाचार्य को करीब साढ़े हजार वोटों को अंतर से हराया था. तब भाजपा आठ फीसदी वोट लेकर यहां तीसरे स्थान पर रही थी. इस इलाके में करीब ढाई लाख वोटर हैं.
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