बर्फ और चट्टानों के गठजोड़ के उपर

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बर्फ और चट्टानों के गठजोड़ के उपर

सुभाष तारण  
तीन दिन लगातार चलने रहने के बाद हम लोग बेस कैंप पहुँचे थे.पिछले तीनो दिन हम लोग सुबह आठ बजे नाश्ता करने के बाद दिन का खाना साथ बांधते और अपना अपना पिट्ठू  लादे शाम होने तक चलकर अपने अगले पड़ाव पर डेरा डालते और खाना पीना करते.हमारे साथ बेस कैंप तक जो पोर्टर राशन लेकर आए थे वे वहाँ से वापिस लौट गये थे.एक दिन के आराम के बाद हमे अगले कैंप पर जाना था. 
जहाँ बेस कैंप का मौसम अमूमन खुशगवार पाया जाता है वहीं किसी चोटी की तरफ बढ़ते हुए मौसम निर्मम और निर्दयी होने लगता है.बैस कैंप पर देह को सुकून पहुँचाने वाली हवा ऊँचाई बढने के साथ और ज्यादा घातक होने लगती है और जब तब आपके इर्द गिर्द विष कन्या की तरह फुफकारने लगती है. सड़क छोडने के बाद वह हमारा 16 वां दिन था जिस दिन हमे कैंप 3 के लिए लोड फेरी करनी थी.रोप फिक्स हो चुकी थी.अपने जरूरी सामान के अलावा बुते भर का सामान पीठ पर लादे हम लोग अगले कैंप की तरफ बढ रहे थे.बेहद ठंडी सुबह के मुँह अंधेरे जब हमने अपना सफर शुरू किया तो आसमान बिलकुल साफ था.बर्फ और चट्टानों के गठजोड़ के उपर लटकी रस्सियों में हम लोग नटों की तरह संतुलन बनाते हुए बहुत सावधानी के साथ कैंप तीन की तरफ बढे चले जा रहे थे. 
इस सफेद बियाबान में आसमान से सूरज ऐसी तीखी धूप बरसा रहा था जो बर्फ की परत से टकरा कर दूने वेग से हमारी आखों को अंधा और त्वचा को भस्म करने के मंसूबे से हमारी तरफ बढी जाती थी.अगर आँखों पर चश्मा और शरीर पर हवा और पानी रोधी कपड़ों की परत न होती तो सूरज की वह किरणें हमे अंधा कर हमारी देह से चमडी उधेड़ कर रख देती.इसके अलावा गाहे ब गाहे बर्फीली हवाएं भी आकर हमारी पसीने से तर ब तर थकी देह के भीतर गुंथे कंकाल और मांस पेशियों को कंपकपाती रहती. हम लोग जब कैंप 3 पर पहुंचे तो दोपहर पार होने को थी. 
हम लोगो ने लोड फेरी मे जो सामान लाया था उसे रखने के लिए बर्फ की परत पर टेंट पिच कर ही रहे थे कि तभी साफ सुथरे आसमान पर बादलों ने हवा के मार्फत धावा बोल दिया.अभी कुछ मिनट पहले जो आसमान नीलापन लिए बर्फ के उस समुद्र पर सूरज की किरणें बिजली की तरह बरसा रहा था अचानक उसने स्याह रंगत से भरी गंभीरता ओढ ली और तीर की तरह चुभती हवा के साथ बर्फ के फाहे बरसाने लगा.इतनी ऊँचाई पर मौसम का यह मिजाज अक्सर देखने को मिलता है.लिहाजा हम लोग बिना किसी घबराहट के अपना सामान पत्तर लेकर टेंट्स के भीतर दुबक गये.हमारे साथ जो अनुभवी साथी थे उनका यह मानना था कि बर्फ का यह तूफान थोडी देर का है लेकिन ऐसा नहीं हुआ.बर्फ के फाहों और हवा की रफ्तार गुजरते समय के साथ और तेज होने लगी.स्थिति यह हो गयी कि घंटे भर के अंतराल पर तंबूओं पर से बर्फ की उस परत को बेलचे की मदद से हटाना पड रहा था जो हमे दफन करने की फिराक में आसमान से बस गिरे ही जा रही थी. 
शाम हो गयी थी.शुक्र इस बात का था कि हम सभी के पास अपने अपने स्लीपिंग बेग थे.लेकिन चिंता इस बात की थी कि हमारे शरीर उस दिन चढ़ी गयी लगभग साढे सात सौ मीटर की ऊँचाई के अभ्यस्त नहीं हुए थे.एक झटके मे हासिल की गयी ऊँचाई पर हवा के दबाव और ऑक्सिजन के स्तर मे गिरावट ने हमारे फेफडों पर बोझ बढा दिया जिसके चलते हम में से बहुत से लोग हांफ रहे थे.आपकी जानकारी के लिए यहाँ मै यह भी बताना चाहूँगा कि इस ऊँचाई पर जिन लोगों की सांसें फूल रही थी उन में से एक मैं भी था. 
भयानक रूप से दहाड़ रही हवा और बर्फवारी के बीच ज्यों ज्यों रात गहरा रही थी, मेरे दिल में डर के साथ साथ नकारात्मता हावी होते जा रही थी. पर्वतारोहण के दौरान पढाए गये पाठयक्रमों में शिखर अभियानों मे होने वाली जितनी भी दुर्घटनाओं के बारे में बताया गया था, वो सब रह रह कर मेरे जेहन में उभर कर आ रही थी.टेंट के भीतर पसरे अंधेरे में खाँसते बडबडाते साथियों ने माहौल को और ज्यादा डरावना बना रखा था. स्लीपिंग बेग के भीतर दुबका मैं जैसे ही आँखें  बंद करता, सुने पढे जा चुके मरहूम दुर्घटना ग्रस्त पर्वतारोहियों के टूटे फूटे, गले और अंकड़े हुए क्षत विक्षत शव मेरी बंद आँखों के सामने तैरने लग जाते.ऐसा महसूस होता मानो छाती पर किसी ने भारी वजन रख दिया हो.बैचेनी की हालत में उखडती हुई सांसों को संभालते हुए मैं खुद को सामान्य बनाने की कोशिश करता और अपने जेहन में औचक से आई इस आफत के समाधान टटोलने लग जाता.मुझे किसी तकलीफ या दुर्घटना की सूरत में डॉक्टर और अस्पताल याद आ रहे थे.हम लोग तो लगातार चलने के बाद रोड हेड तक ही तकरीबन हफ्ते भर में पहुँच पाते.उसके लिए मौसम का साफ होना पहली शर्त था जबकि यहाँ तो रात गुजारनी भारी हो रही थी. 
आधे से ज्यादा रात गुजर चुकी थी.मौसम का मिजाज अभी भी ज्यों के त्यों बना हुआ था. एक लंबी और गहरी साँस लेते हुए मैने खुद को सामान्य रखने की एक जोरदार कोशिश की और खुद को इस नतीजे पर स्थापित कर दिया कि जिस हौसले और हिम्मत ने हमे यहाँ तक पहुंचाया है वही हमे इस बर्फीली तूफानी रात से भी पार पहुंचाएंगे.कुछ देर पहले हटाई जा चुकी बर्फ की परत हमारे टेंट पर फिर से काबिज हो गयी थी.हमारा एक वरिष्ठ और अनुभवी साथी ज्यों ही टेंट पर मोटी होती जा रही बर्फ की परत को हटाने के लिए बाहर निकलने लगा, मैने अपनी बहक रही सांसों पर काबू पाते हुए सर पर लगी हेड लाइट जलाई और उनसे कहा कि इस बार बर्फ साफ करने हेतु मुझे जाने दिया जाए.मनहूस से माहौल में वरिष्ठ साथी मुस्कुरा दिए और टेंट के दरवाजे से पीछे हट गये.मैने अपने कपडे, टोपी दस्ताने और जूते  दुरूस्त किए और टेंट के दरवाजे की चैन खोलकर बाहर निकल पड़ा. 
बाहर निकलते ही हवा के तीर की तरह तीखे झौंके ने मेरा स्वागत किया.मै अचानक ठंडे पानी से भीगे किसी निरीह प्राणी की तरह कांप उठा लेकिन इच्छाशक्ति तो इससे भी बडे मंसूबे बांधे हुए थी.बाहर का मंजर बहुत भयानक नजर आ रहा था.हमारा टेंट बर्फ की सतह से लगभग डेढ फुट के आसपास ही उपर नजर आ रहा था. मैने अपनी आइस एक्स ली और बर्फ में आधे से ज्यादा डूब चूके बेलचे का हत्था पकड़ा और टेंट की ढलानों पर मोटी होते जा रही बर्फ की परत पर पिल पड़ा. 
बत्तख के पंखों से निर्मित नरम परत वाले स्लीपिंग बेग की गर्माहट जो काम नही कर पा रही थी वह काम कुछ देर पहले बटोरी गयी  हिम्मत ने कर दिया.टेंट पर से बर्फ की परत साफ कर जब मैं टेंट के भीतर आया तो शरीर मे एक नयी ताजगी भर चुकी थी.नाक और आँखों से भले पानी बह रहा था लेकिन मन अब बर्फीले तूफान से निपटने के इरादे बना चुका था.ठंड के मारे हाथ की उँगलियाँ सुन्न होने को थी लेकिन टेंट की छत पर फिर से जमने वाली बर्फ की परत को कैसे साफ करना है, इस बारे में दिमाग ने अभी से योजना बनानी शुरू कर दी थी.सांसे भले ही पहले से तेज चल रही थी लेकिन वे इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि कम ऑक्सिजन में भी वह खून में अपनी हिस्सेदारी बराबर बनाए रखेगी. 
कोरोना के इस वीभत्स दौर में फेफडों के संक्रमण से जूझते हुए लोगों के संघर्ष के बारे में पढ सुनकर मुझे आज बर्फीले बियाबान में गुजारी गयी वो रात याद आ गयी है.जीवन में ऐसा अनेकों बार होता है जब हम मृत्यु के बहुत करीब होते है लेकिन तब हमारी इच्छा शक्ति हमसे वो करवा लेती है जो किसी करामात से कम नही होता.चाहे कोई समुद्री तूफानों में भटका हुआ जहाजी हो, चाहे कोई रेगिस्तान में भटका हुआ राहगीर हो, चाहे कोई हिम शिखरों के तीखे ढलानों पर आने वाले ब्लिजार्ड में फंसा पर्वतारोही या फिर किसी रोग से लडता हुआ कोई रोगी, इच्छा शक्ति के चलते वह मृत्यु को कुछ समय के लिए गच्चा दे सकता है और यही वह समय है जब हमारा मन और शरीर उस मुश्किल घड़ी को पार पाकर फिर से जीवन को बतौर ईनाम पा लेता है.

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