मंटो को शराब बहुत पसंद थी

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मंटो को शराब बहुत पसंद थी

चंचल  
सर्वेश्वर जी . सर्वेश्वर दयाल सक्सेना . कवि , लेखक , पत्रकार और सबसे बड़े भले इंसान . हमे पंडित जी बुलाते थे . बंगाली मार्केट में अपनी दोनो बेटियों विभा और शुभा के साथ रहते थे . हम दिल्ली पहुंचे तो सर्वेश्वर जी बेटियों ने ही हमे महावत खान रोड पर एक कमरा किराए पर दिलवाया था . यह रेलवे की कालोनी थी . मकान मालिक जैन साहब थे, बहुत भले इंसान . हमने कई बार बताया है कि, - कमबख्त अपनी जन्दगी कभी सलीके से चली ही नही . जिस दिन हमे इस किराए के मकान में शिफ्ट होना था एक नई मुसीबत सामने आ गयी . हमारा सामान जॉर्ज के घर पर था . 24 (शायद ) 
तुगलक क्रिसेंट . वहां से जब हम चले तो लैला जी ने कहा चलो हम तुम्हे छोड़ देते हैं . ( जार्ज के यहां से रिहाइश क्यों बदला ? जार्ज के के चैप्टर में ) 
बहरहाल थोड़ा सा सामान , हम तीन जन- लैला ( जार्ज की पत्नी ) उनका बेटा सोनू ,ड्राइवर और हम जोंगा जीप में लदे महावत खां पहुचे . किसी ने लैला को पहचान लिया और साहब मकानमालिक की सिट्टी पिट्टी गुम . रेलवे का सरकारी मकान . किराए पर कैसे दे दिया ? क्या जवाब दूंगा ? लैला खुद चश्मदीद हैं ? छत मिलते मिलते जाने से लगी लेकिन विभा ने सब संभाल लिया . नतीजा हुआ कि हम उस घर मे इज्जत भी पाने लगे बगैर किसी सुकर्म के . एक टुकड़ा और जोड़ दूँ - 
जैन साहब की एक लड़की रेलवे में बुकिंग क्लर्क थी , जब हम रेलवे में जार्ज के साथ जुड़े तो एक दिन वही लड़की अपने पति के साथ आकर मिली और सकुचाते हुए कहा - भाई ! हमने अभी शादी किया है , हमे रेलवे की कालोनी में एक मकान चाहिए . उन दोनों को देख कर पुराने दिन याद आ गए . 
- पहले चाय पीओ 
- नही , चाय नही पियेंगे 
- फिर हमें क्यों पिलाती थी ? 
मकान लेलो . फिर किसी दिन आएंगे . और जब गया तो लगा अरसे बाद अपने परिवार में खड़े हैं . आंखे नम थोड़े ही थी , भट्ठी का धुंआ जो था . 
बहरहाल हम बता रहे थे सर्वेश्वर जी के बारे में . नही पूरी कथा तो और कहीं यहां तो बस यह बताना है कि सर्वेश्वर जी शराब नही पीते थे . 
लेकिन हम पीते थे . इसे और गाढ़ा करके बोलूं तो कहूंगा पीना पड़ता था . महावत खान रोड और बंगाली मार्केट के बीच बस एक रेल लाइन बिछी पड़ी थी . उसे लाँघिये तो नत्थू स्वीट हाउस . बंगाली मार्केट की शान . 
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का एक गेस्ट हाउस बंगाली मार्केट में भी है . यह अदब का अड्डा हुआ करता था . विश्वविद्यालय के छात्र रहे मरहूम पंकज सिंह , प्रभात झा , विजय चौधरी इस गेस्टहाउस के स्थायी गेस्ट रहे. यही पर रंगमंच के भाई भानु भारती , कवि आलोक धन्वा , दिल्ली विश्व विद्यालय के टटके प्रो0 ईश मिश्रा , प्रसिद्ध कथाकार भाई निर्मल वर्मा साँझ होते होते करोल बाग से चले मंडी हाउस . अच्छी खासी महफिल . हम भी उसी में शामिल . एक साँझ थोड़ी शराबी हो गई और चर्चा में चलपडी . यह चर्चा सर्वेश्वर जी तक पहुंची . उनदिनों अदब का अड्डा हुआ करता था श्रीराम सेंटर की कैंटीन . सर्वेश्वर जी कहा चलो पंडित घर चलो. घर गया . साँझ गहराने लगी . सर्वेश्वर जी ने पूछ क्या हुआ था ? 
हमने बता दिया . ओम प्रकाश निर्मल आये हुए है , पंकज सिंह उन्हें मारने पर आमादा हो गए कि निर्मल ने बाबा नागार्जुन को मंच से नीचे क्यों उतार दिया था इसी बात को लेकर . - तो तुमने क्या किया ? 
हमने निर्मल वर्मा जी कहा कि यह तो गलत होगा और निर्मल जी ने पंकज को रोका भानु भारती को भी यह सब बहुत नागवार गुजरा . ( यह वाकया किसी और बयान में आएगा ) चलो छोड़ो . ओम प्रकाश निर्मल मामूली आदमी नही है . 
-चलो आज पिया जाय . हमे तो डॉक्टर ने मना किया है . जावो किचेन से दो गिलास लाओ . 
- बोतल ? 
- वो , वहां गिल्टी मैन आफ इंडियाज पार्टीशन के पीछे हाथ डालो . 
किताब के पीछे बोतल तो लीटर भर की, पर शराब मुश्किल से दो पेग . 
- ये तो खाली है . 
- एक एक तो हो जाएगा न . बनाओ . बन गया . 
- गिल्टी मैन विभाजन का अपराधी ? जिन्ना तो शराब पीते थे . 
- कायदे से कोई कांग्रेसी साथ देने वाला होता तो बटवारा शायद न होता . 
- साथ मतलब शराब में ? 
- इसका जवाब मौलाना आजाद की किताब इंडिया विंस फ्रीडम खोलती है . गिल्टिमेन आफ इंडियाज फ्रीडम डॉक्टर लोहिया की प्रतिक्रिया है मौलाना को . 
- ये तो खत्म हो गयी , जाऊं एक खरीद लाऊं ? 
- नही . देखो सामने ' मंटोनामा ' के पीछे देखो . 
वह भी उसी तरह . मुश्किल से दो पेग . 
- मंटो को शराब बहुत पसंद थी . 
- इसी लिए तो पाकिस्तान चला गया . कमबख्त उसकी रूह यहीं भटकती रही गयी . पंडित ! तुम रेणु से मिले हो ? 
- बहुत छोटी सी मुलाकात , वो भी न के बराबर . जेपी आंदोलन में . उस समय उनकी तबियत ठीक नही थी . 
- हिंदी रोयेगी , रेणु बहुत बड़ा लेखक है , लिखवानेवाला नही मिला . लतिका जी ने कुछ लिखवाया जरूर 
- अज्ञेय जी ? 
- अपने काम भर का बिहार के सूखा और बाढ़ पर 
दिनमान को इससे बेहतर रपट फिर कभी नही मिल पाई - ऋण जल , धन जल . 
- बस ? 
- देखो एक और होगी .

फोटो साभार 

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