सादगी और राजनीतिक शुचिता की स्वर्ण जयंती यानी राजेंद्र चौधरी

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सादगी और राजनीतिक शुचिता की स्वर्ण जयंती यानी राजेंद्र चौधरी

अरुण कुमार त्रिपाठी 
लोग नाहक हौवा खड़ा किए रहते हैं कि आज की राजनीति में ईमानदार होना कठिन है.ईमानदार बने रहना बेहद आसान है.सिर्फ ना कहना सीख जाइए, अपनी जरूरतें घटा लीजिए और लालच को हावी न होने दीजिए.जनता को ध्यान में रखकर काम कीजिए आप बड़े आसानी से ईमानदार बने रह सकते हैं.यह कहना है कि सार्वजनिक जीवन में पचास वर्ष बेदाग बिताने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का.उनका कहना है कि ईमानदारी की जो घुट्टी पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह ने युवा अवस्था में पिलाई थी उसका असर 74 साल की उम्र में भी बना हुआ है.यही कारण है कि उन्हें आधुनिक व्याधियां व्याप्त नहीं हुईं और इतने लंबे राजनीतिक जीवन में आज तक किसी किस्म का आरोप लग नहीं पाया. 
हाल में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में निर्वाचित किए गए राजेंद्र चौधरी ने अपने गृह जनपद गाजियाबाद में लोहिया नगर के गांधीपार्क में रविवार को आयोजित एक अभिनंदन समारोह में वर्तमान राजनीति में भ्रष्ट होने के दबावों पर खुलकर चर्चा की.उन्होंने मौजूदा समय में समाज के सामने उपस्थित नफरत और तानाशाही के संकटों पर भी लोगों को आगाह किया.उनका कहना था कि जब अखिलेश यादव ने उन्हें आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे प्राधिकरण का चेयरमैन बनाया तो वे बहुत परेशान हो गए.अचानक उनके पास कंपनियों के अधिकारी आने लगे नए नए आफर लेकर.वे मुख्यमंत्री के पास गए और कहा कि आपने मुझे यह क्या झमेला सौंप दिया है.मेरे ऊपर तरह तरह से दबाव पड़ने शुरू हो गए हैं.किसी और को यह काम दे दीजिए.इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इसीलिए आपको दिया है क्योंकि आप दबाव झेल ले जाएंगे कोई और होगा तो वह झुक जाएगा. 
इस तरह राजेंद्र चौधरी ने कारपोरेट दबावों को झेलते हुए किसानों को 65 प्रतिशत ज्यादा मुआवजा दिलवाया जो अपने में एक उपलब्धि थी.यह एक उदाहरण है जिसके अनुसार अगर आप की नजर में निजी हितों की बजाय जनता का हित है तो आप सत्ता की राजनीति में लंबे समय तक रहते हुए और विकास का काम करते हुए भी ईमानदार बने रह सकते हैं.अपनी इसी ईमानदारी और समाजवादी सिद्धांतों पर राजेंद्र चौधरी को गहरा भरोसा है .इसीलिए वे मानते हैं कि भाजपा और संघ के लोग कितनी भी नफरत फैलाएं  और समाज को बांटें लेकिन भारतीय समाज का स्वभाव वैसा नहीं है जैसा वे बनाना चाहते हैं.भारतीय समाज मूलतः सांप्रदायिक सद्भाव वाला समाज है और यहां तमाम जाति और धर्म के लोग मिल जुलकर रहते हैं.इसलिए भले ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात से निराश हों कि सत्ता परिवर्तन के बाद भी समाज पर सांप्रदायिक और विभाजनकारी प्रभाव बने रहेंगे लेकिन राजेंद्र चौधरी जैसे जमीनी नेता को अपने समाज पर बहुत भरोसा है. 
डा राममनोहर लोहिया जिसे बादशाहत और फकीरी की मिली जुली राजनीति कहते थे उसे राजेंद्र चौधरी ने अच्छी तरह से साधा है.इसीलिए उनमें राजनेता और संत दोनों का व्यक्तित्व एक साथ दिखाई पड़ता है.गाजियाबाद के कोट गांव में जन्मे राजेंद्र चौधरी सत्तर के दशक में मधु लिमए, जार्ज फर्नांडीस, किशन पटनायक, जनेश्वर मिश्र, बृजभूषण तिवारी, मोहन सिंह जैसे समाजवादी नेताओं के प्रभाव में छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और नगर के एच.एम. कालेज के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.राजेंद्र चौधरी अपने छात्र जीवन में इतने लोकप्रिय थे कि वे 1968 से 1974 के बीच अपने कालेज के महामंत्री और अध्यक्ष पद पर तीन बार निर्वाचित हुए.वे गाजियाबाद में वकालत कर रहे थे तभी चौधरी चरण सिंह के प्रभाव में आए और लोकदल से जुड़ गए.वे पहली बार 1974 में उसी समय भारतीय क्रांति दल से विधानसभा का चुनाव लड़े जब सत्यपाल मलिक ने भी चुनावी राजनीति में प्रवेश किया.राजेंद्र जी वह चुनाव तो नहीं जीत पाए और एक साल बाद इमरजंसी लग गई और तमाम विपक्षी नेताओं के साथ जेल भेज दिए गए.उन्हें जेल में यातना और 19 महीने का कारावास सहा और इसी के साथ किसानों और मजदूरों की राजनीति के प्रति उनका संकल्प और भी दृढ़ होता गया.लेकिन वे 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बनकर पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया.उन्होंने अपना ज्यादा समय सांगठनिक कामों में लगाया और यही कारण है कि उनके खाते में मंत्री पद कम और संगठन के पद ज्यादा रहे.वे जनता पार्टी के युवा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रहे, लोकदल के प्रदेश महामंत्री रहे.वे उत्तर प्रदेश में एग्रो चैयरमैन और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अध्यक्ष रहे.उन्होंने 2012 में बनी अखिलेश यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कारागार, खाद्य और रसद और राजनीतिक पेंशन विभाग संभाला लेकिन विभागों की भ्रष्ट शैली से ऊबे राजेंद्र चौधरी का काम जल्दी जल्दी बदला जाता रहा. 
उनका यह शुचिता का संकल्प इतना दृढ़ और संवेदनशील है कि रविवार को जब वे अपने अभिनंदन के लिए गांधी मैदान की ओर जा रहे थे तो एक ओर उनके स्वागत के लिए उमड़ी युवाओं की भीड़ थी तो दूसरी ओर वे अपने ड्राइवर को लगातार डांट रहे थे कि गाड़ी धीरे चलाओ.अगर किसी साइकिल वाले और ठेले वाले को लग गई तो बहुत बुरा होगा.जब राजनीति में दूसरे को धकियाने और तेजी से आगे बढ़ने की पहले हम पहले हम की होड़ मची हो तब किसी राजनेता में ऐसी संवेदनशीलता उसे भीड़ और सत्ताधारी राजनेताओं की जमात से अलग खड़ा करती है.शायद वे सौ कदम अकेले चलने की बजाय सौ लोगों को लेकर एक कदम चलने में यकीन करते हैं.इसीलिए उनके व्यकित्व पर टिप्पणी करते हुए समाजवादी विचारक प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं, `` राजेंद्र चौधरी समाजवादी परिवार के एक अनुकरणीय नायक हैं.जिनकी सफलता का कारण सार्वजनिक जीवन के प्रति निष्ठा, कर्तव्य पालन और आदर्श व्यवहार में संतुलन को बनाए रखने में निहित है.समाजवादी महानायक इसी को राग, जिम्मेदारी की भावना और अनुपात की समझ कह गए हैं और श्री राजेंद्र चौधरी इसी सूत्र के श्रेष्ठ प्रतिमूर्ति हैं.’ 
अपनी इसी निष्ठा के बूते पर वे उन्हें विश्वास है कि इस देश में भाजपा का एजेंडा लंबे समय तक नहीं चलने वाला है.यह एक पड़ाव है.यह बात जरूर है कि राजनीतिक लड़ाई के बाद सामाजिक लड़ाई के लिए भी लगना होगा.उसके लिए लोगों को जागरूक करना होगा.वे कहते हैं कि दरअसल भारतीय समाज सहज और भोला है और भाजपा के लोग उसके भोलेपन का दोहन कर रहे हैं.महात्मा फुले की जयंती पर आयोजित अपने अभिनंदन समारोह में उन्होंने उनको याद करते हुए कहा कि उन्होंने जातिविहीन समाज बनाने के लिए संघर्ष किया था लेकिन आज भाजपा के लोग समाज में जातिगत वैमनस्य फैला रहे हैं.दरअसल वे लोग भ्रम की राजनीति कर रहे हैं.वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में भ्रम फैला रहे हैं.इसका मुकाबला गांधी, लोहिया, डा आंबेडकर और चरण सिंह के विचारों के आधार पर वैकल्पिक कार्यक्रम बनाकर ही किया जा सकता है.किसान आंदोलन उसका एक हिस्सा है. 
राजेंद्र चौधरी का मानना है कि यह सरकार किसानों को ठग रही है उन्हें बर्बाद करना चाहती है क्योंकि उनकी राजनीति सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने और कारपोरेट को फायदा पहुंचाने की है.इसमें किसान पीसे जा रहे हैं.यही कारण है कि वे आक्रोशित हैं.युवा आक्रोशित है क्योंकि बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है.सरकार महामारी के नाम पर और कारपोरेट विकास के नाम पर लोगों के अधिकार छीन रही है.जो अधिकार संविधान ने हमें दिए हैं उन्हें कम किया रहा है.लेकिन आज जनता जागरूक हो गई है और वह वैसा होने नहीं देगी.राजेंद्र चौधरी मानते हैं कि यह समय गंभीर वैचारिक संकट का है.यही कारण है कि समाज में हिंसा फैल रही है और जो चुनाव जीत रहे हैं वे किसी समस्या का हल नहीं कर रहे हैं सिर्फ भाषण दे रहे हैं.लेकिन चौधरी साहेब को यकीन है कि जनता पांच साल बाद हिसाब तो मांगेगी ही कि क्यों व्यर्थ में हमारे पांच साल गंवा दिए. 
यह जानना रोचक है कि पचास साल सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहने, चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव से नजदीकी रिश्ता रखने और कई बार विधायक और एक बार कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद उनका गाजियाबाद में अपना कोई मकान नहीं है.उनका मकान कोट गांव में ही है.प्लाट लेने और मकान बनाने का यह प्रयास उन्होंने लखनऊ में भी नहीं किया.वे लखनऊ में सरकारी फ्लैट में रहते हैं और गाजियाबाद आने पर किसी होटल में ठहरते हैं.अविवाहित राजेंद्र चौधरी ने संपत्ति और संतति न रखने के डा लोहिया के सुझाव को चरितार्थ कर दिया है.उनकी इसी सादगी के सौदर्य का कमाल है कि अगर पच्चीस साल पहले उनके सार्वजनिक अभिनंदन में पत्रकार शिरोमणि प्रभाष जोशी, सामाजिक क्रांतिकारी स्वामी अग्निवेश, समाजशास्त्री इम्तियाज अहमद, प्रोफेसर आनंद कुमार और समाजवादी चिंतक विजय प्रताप मौजूद थे तो इस कोराना काल में भी उनके कार्यक्रम में वयोवृद्ध पत्रकार कुलदीप तलवार, एल. आर. कालेज के पूर्व प्राचार्य डा वी. एल गौड़, लोकशिक्षण अभियान ट्रस्ट के संस्थापक राम दुलार यादव, लोक शक्ति संदेश के संपादक मुकेश शर्मा के अलावा गाजियाबाद के सैकड़ों वकील, शिक्षक, राजनीतिक कार्यकर्ता, किसान नेता और गणमान्य नागरिक मौजूद रहते हैं. 
अगर महात्मा गांधी, डा लोहिया और जेपी के विचार राजेंद्र चौधरी की पूंजी है तो चौधरी चरण सिंह का साथ उनके नैतिक और राजनीतिक अनुभव की वह गठरी है जिससे वे मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को बिना लाग लपेट के उचित सलाह देते रहते हैं.गाजियाबाद बार एसोसिएशन और हिंडन नदी देखकर वे भाव विभोर हो जाते हैं क्योंकि इसी के साथ जुड़ी हैं किसानों के मसीहा और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृतियां.वे बताते हैं कि चौधरी साहब गाजियाबाद में वकालत करते थे और यहीं हिंडन नदी में नहाते थे.उस समय हिंडन साफ सुथरी नदी थी एक नाला नहीं.हिंडन नदी के नाला बनने की कहानी हमारी राजनीति के पतित, भ्रष्ट, मूल्यहीन और अलोकतांत्रिक होते जाने की कहानी है.हालांकि राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि सार्वजनिक जीवन में ईमानदार बने रहना मुश्किल नहीं है लेकिन अब तो यह समाज इस बात का स्वप्न ही देख सकता है कि उसके भीतर से डा लोहिया, चौधरी चरण सिंह जैसे मूल्यवान, विद्वान और संघर्षशील नेता जन्म लेंगे और हमारी हिंडन उनके नहाने लायक बनेगी.   

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