डा शारिक़ अहमद ख़ान
लखनऊ में यूपी समेत देश के कई मुलुक बसते हैं.उसी में से एक है 'आलू पट्टी' जो यूपी के मैनपुरी इटावा फ़र्रूख़ाबाद कन्नौज उरई फ़िरोज़ाबाद ज़िलों को मिलाकर बनती है.वैसे तो पूरे यूपी-बिहार-हरियाणा-झारखंड-उत्तराखंड-आंशिक राजस्थान-आंशिक मध्यप्रदेश को देश के दूसरे प्रांतों के लोग गोबरपट्टी कहते हैं लेकिन गोबर पट्टी में भी कई उप पट्टियाँ हैं.उसी में से एक है आलू पट्टी.
आलू पट्टी में आलू की काश्त बंपर होती है.वहाँ हर खाने की चीज़ में आमतौर पर आलू डाल दिया जाता है.जब किसी क्षेत्र का व्यक्ति कहीं जाता है तो अपने साथ अपने खानपान का कल्चर भी लेकर जाता है.इसी तरह जब आलू पट्टी के लोग लखनऊ आए तो अपनी आलू पट्टी से बाज़रिए आलू मोहब्बत जारी रखी.इसी क्रम में लखनऊ में रहने वाले आलू पट्टी के किसान ख़ान साहब ने आज 'दावत-ए-आलू साहेबान' का एहतेमाम शहर लखनऊ में किया जिसमें कंडों की आग में भुने आलू साहेबान हरी चटनी के साथ परोसे गए.दावत-ए-आलू साहेबान में एक हज़रत ने हमसे पूछा कि आपकी नज़र में आलू पट्टी का सबसे चमाचम सियासी आलू कौन है.हमने जवाब दिया कि यूँ तो सलमान ख़ुर्शीद को होना चाहिए,वो शकलन भी आलू हैं,शक्ल से इतने बड़े वाले कि पाकिस्तान का पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी इंज़माम-उल-हक़ जिसे 'आलू ' कहा जाता था वो भी सलमान ख़ुर्शीद की आलू जैसी शक्ल देखकर शरमा जाए,लेकिन सलमान ख़ुर्शीद में आलू वाली ख़ूबी नहीं हैं.आलू का मतलब है हर जगह सेट हो जाए.गोश्त से लेकर मटर-टमाटर तक.ये काम सलमान ख़ुर्शीद नहीं कर पाए.
कांग्रेस से एक तरह से किकआउट होने के बाद भी अपना स्वतंत्र मुकाम नहीं बना पाए.सही मायनों में देखा जाए तो आलू पट्टी के सबसे चमाचम आलू हैं मुलायम सिंह,वो आलू पट्टी के एक ऐसे सियासी आलू हैं जो गोश्त-मटर-टमाटर सबमें सेट हैं.जबकि समोसे का आलू बनने के चक्कर में लालू परेशान हो गए.समोसे का आलू कभी नहीं बनना चाहिए,बनना हो तो गोश्त-मटर-टमाटर का बनना चाहिए,ऐसे में आलू साइड आइटम रहता है,लाइमलाइट में नहीं आता.
ख़ैर,एक बार हम उर्दू शायर अकबर इलाहाबादी की आलूछाप शायरी से जुड़ी बात बता चुके हैं,लेकिन आज मौक़ा और दस्तूर है तो बताते चलें कि एक बार अकबर इलाहाबादी पहुँचे ख़्वाजा हसन निज़ामी के यहाँ,वहाँ उनके लिए आलू की सब्ज़ी ख़्वाजा साहब की छोटी सी 'हूर' नाम की बच्ची लेकर आयी.अकबर इलाहाबादी ने बच्ची पूछा कि आलू कहाँ से आए हैं.बच्ची ने कहा कि मेरे ख़ालू बाज़ार से लाए हैं.ये सुन अकबर इलाहाबादी ने मज़ाहिया शेर पढ़ा कि 'लाए हैं ढूंढ के बाज़ार से आलू अच्छे,इसमें कुछ शक नहीं हैं हूर के ख़ालू अच्छे'.
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