बीजेपी, शहरियत कानून और एनआरसी

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बीजेपी, शहरियत कानून और एनआरसी

हिसाम सिद्दीक़ी  
पांच असम्बली चुनावों के दरम्यान एक बार फिर साबित हुआ कि भारतीय जनता पार्टी और वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी व उनकी सरकार की किसी बात और एलान पर भरोसा नहीं किया जा सकता तकरीबन डेढ साल पहले मोदी सरकार ने पार्लियामेंट में शहरियत तरमीमी कानून (सीएए) पास कराया था अब तक उसके जवाबित (नियम) नहीं बने हैं. जबकि चंद माह कब्ल लाए गए तीन किसानी कवानीन के न सिर्फ जवाबित तैयार हो गए बल्कि किसान कानून नाफिज भी कर दिए गए, जाहिर है सीएए का शोशा सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों और सेक्युलर जेहन शहरियों को चिढाने और आंदोलन पर उतारने के लिए ही छोड़ा गया था. शहरियत कानून (सीएए) के लिए मोदी, अमित शाह और उनकी सरकार कितनी संजीदा है कि अमित शाह मगरिबी बंगाल मे तो कह रहे हैं कि बीजेपी सरकार बनी तो पहली ही कैबिनेट मीटिंग में शहरियत तरमीमी कानून (सीएए) नाफिज करने का फैसला कर दिया जाएगा. बंगाल से मिले हुए दूसरे प्रदेश असम में भी एलक्शन हो रहे थे तो  अमित शाह समेत किसी भी बीजेपी लीडर ने वहां सीएए का नाम तक नहीं लिया. इतना ही नहीं असम के लिए जो चुनावी मंशूर (घोषणा पत्र या संकल्प पत्र) पार्टी ने जारी किया उसमें सीएए और एनआरसी का जिक्र तक नहीं किया गया. दक्खिन भारत के प्रदेश तमिलनाडु पहुंचते-पहुंचते बीजेपी खुद भी सीएए और एनआरसी की मुखालिफ हो गई. तमिलनाडु में बीजेपी वहां की बरसरे एक्तेदार (सत्ताधारी) पार्टी आल इण्डिया अन्ना डीएमके की पिछलग्गू बनकर चुनावी मैदान में उतरी है. आल इण्डिया अन्ना डीएमके ने बीजेपी को दो सौ चौंतीस (234) असम्बली सीटों मे से सिर्फ बीस सीटें ही दी हैं. आल इण्डिया अन्ना डीएमके ने अपना जो चुनावी मंशूर जारी किया है उसमें साफ तौर पर लिखा है कि अगर उनकी सरकार सत्ता में वापस आती है तो प्रदेश में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होने दिया जाएगा. बीजेपी उसी चुनावी मंशूर पर खुद भी लड़ रही है. इससे तो यही जाहिर होता है कि सीएए के जरिए मोदी सरकार उत्तर भारत के कट्टरपंथी हिन्दुओं को भड़का कर उन्हें अपने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है. 
बांग्लादेश में मटुवा समाज के हिन्दुओं की एक बड़ी आबादी है, यहां मगरिबी बंगाल और असम में मटुवा समाज की एक बड़ी आबादी रहती है. वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी गुजिश्ता दिनों जब बांग्लादेश के दौरे पर गए तो मटुवा समाज के मंदिर में जाकर उन्होने माथा टेका और मटुवा समाज से मुखातिब होकर कुछ इस अंदाज में तकरीर की जैसे सीएए कानून आने के बाद वह बांग्लादेश के सभी मटुवा हिन्दुओं को भारत की शहरियत दे देंगे. बांग्लादेशी मटुवा वहां से माइग्रेट होकर भारत में बसना भी चाहते हैं. मोदी ने मटुवा समाज से जो कुछ कहा वह दरअस्ल मगरिबी बंगाल और असम के मटुवा वोट लेने की कवायद थी. उनका यह दाव उल्टा पड़ा असम और मगरिबी बंगाल दोनों ही प्रदेशों के आम हिन्दू और खुसूसी तौर पर मटुवा समाज के लोग किसी भी कीमत पर यह नहीं चाहते कि अब बांग्लादेश से हिन्दू आबादी माइग्रेट करके असम और मगरिबी बंगाल आए. उनका कहना है कि दोनों रियासतों में पहले से ही बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है अगर बांग्लादेश से और हिन्दू आ गए तो पहले से ही कम वसायल (संसाधन) में जबरदस्त छीना झपटी मच जाएगी. 
अमित शाह और नरेन्द्र मोदी ने सीएए से पहले एनआरसी पर भी बहुत जोर दिया था सुप्रीम कोर्ट के आर्डर की आड़ में एक हजार छः सौ करोड़ रूपए खर्च करके असम में एनआरसी तो मुकम्मल करा दी लेकिन उसके जब नतायज सामने आए तो उन्होंने बीजेपी को हिला कर रख दिया. तकरीबन उन्नीस लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गए जिनमें बारह लाख से ज्यादा हिन्दू हैं. नतीजा यह कि घुसपैठिए कहकर असम और देश के हिन्दुओं को खुश करने के लिए असमी मुसलमानों की शहरियत खत्म करने का जो मंसूबा बीजेपी ने बनाया था वह दाव उल्टा पड़ गया और पार्टी असमी हिन्दुओं को ही नाराज कर बैठी. बीस नवम्बर 2019 को पार्लियामेंट में होम मिनिस्टर अमित शाह ने गरजते हुए सीएए और एनआरसी की क्रोनोलाजी समझाई थी. उन्होंने कहा था कि पहले सीएए और उसके बाद पूरे देश में एनआरसी लागू की जाएगी. पूरे देश में एनआरसी लागू करने पर चौंसठ हजार करोड़ रूपए खर्च होने का अंदाजा है. उसका भी नतीजा असम जैसा ही आने की तवक्को है. असम में एनआरसी का हश्र देखकर बीजेपी भी बहुत ज्यादा दबाव में आ चुकी है. असम्बली के मौजूदा एलक्शन में एनआरसी और सीएए की वजह से ही बीजेपी की शिकस्त का पूरा खतरा है. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह यह भूल जाते हैं कि सीएए के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर हिन्दुओं ने सड़कों पर निकल कर मुजाहिरा किया था, असम और त्रिपुरा में फौज बुलानी पड़ी थी कई लोग फायरिंग में मारे गए थे. 
सीएए और एनआरसी दरअस्ल दोनों ही अवाम को मजहबी बुनियाद पर तकसीम करने और नफरत फैलाने की गरज से लाए गए थे पाकिस्तान, बांग्लादेश के हिन्दुओं के साथ-साथ अफगानिस्तान जिसकी सरहदें भारत से नहीं मिलती वहां के हिन्दुओं और ईसाइयों तक को भारत की शहरियत देने की बात शहरियत तरमीमी कानून (सीएए) में कही गई है लेकिन श्रीलंका और म्यामांर जैसे पड़ोसी मुल्कों के ईसाइयों और हिन्दुओं व तमिलों को भारत में लाकर शहरियत देने की बात नहीं कही गई. म्यांमार की सरहदें भारत के तीन प्रदेशों से मिलती हैं मिजोरम के चीफ मिनिस्टर वजीर-ए-आजम मोदी को खत लिखकर मतालबा कर चुके हैं कि म्यांमार में फौजी सरकार में ईसाइयों पर बेपनाह जुल्म व ज्यादतियां हो रही हैं इसलिए म्यांमार से भाग रहे ईसाइयों को भारत में पनाह दी जाए. सरहद पर बड़ी तादाद में ईसाई पड़े हैं लेकिन मोदी सरकार सीएए के तहत उन्हें भारत में दाखिल नहीं होने दे रही है. उल्टे फौज को यह हिदायत दी गई है कि सरहद पर पड़े और भारत में दाखिल हो चुके म्यांमार के ईसाइयों को वापस उनके मुल्क में ढकेल दिया जाए. मोदी सरकार का सीएए और एनआरसी जैसे हस्सास (संवेदनशील) मामलात पर यह किरदार (चरित्र) है.जदीद मरकज़

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