बेऊर जेल में मोबाइल मिलने का सिलसिला जारी

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बेऊर जेल में मोबाइल मिलने का सिलसिला जारी

आलोक कुमार 
पटना.आदर्श केन्द्रीय कारा बेऊर में मोबाइल मिलने का सिलसिला जारी है.पटना के आदर्श केन्द्रीय कारा बेऊर में गुरुवार को सुबह-सुबह छापेमारी हुई. छापेमारी के दौरान जमीन के अंदर से 3 मोबाइल और एक चार्जर बरामद किया गया.मोबाइल में सिम कार्ड नहीं लगे थे.करीब 2 घंटे तक जेल प्रशासन ने गोदावरी और यमुना खंड में छापेमारी की.वहीं से ये सामान बरामद हुए. इस जानकारी के अनुसार सुबह 6:45 में जेल के कई खंडों में छापेमारी की गई. दर्जनों वार्डों में तलाशी अभियान चलाया गया, जिसमें गोदावरी और यमुना खंड से 3 मोबाइल बरामद हुआ. बेउर थाने में अज्ञात के खिलाफ FIR दर्ज करवाई गई है. बताया जा रहा है कि आज दोपहर 3 बजे जेल के अन्य खंड में भी छापेमारी अभियान चलाया जाएगा. 

बेऊर जेल में इससे पहले 3 मार्च को छापेमारी की गई थी.करीब 4 घंटे तक निरीक्षण में अंदर से चल रहे खेल के कई राज सामने आए थे. वार्ड के एक बंदी के पास से जियो का एक सिम कार्ड बरामद किया गया था.तलाशी के दौरान एक खाली कमरे से सैमसंग के दो मोबाइल तथा दो रजिस्टर बरामद किए गए. रजिस्टर की जांच के क्रम में उसमें बैंकों के पांच खाता नंबर तथा 20 मोबाइल नंबर अंकित मिले थे.इस मामले में जेल में बंद पूर्व सांसद विजय कृष्ण के ऊपर बेउर थाने में एक FIR दर्ज कराई गई थी. 

छापामारी करने की नौबत  

जानकारी के अनुसार जेल में भी मोबाइल रखने के शौकिन शौचालय में,जमीन के नीचे,टाइल्स के नीचे मोबाइल रखते हैं. मजे से जेल के अंदर जुगाड़ करके टाइल्स को निकालकर टाइल्स के अंदर मोबाइल रखकर आटा से टाइल्स को चिपका देते हैं.पद स्थापित जेल अधीक्षक हर हाल में कारा के अंदर से मोबाइल फोन के खात्मा करने का दावा करते हैं.पर दावा केवल दांव लगाते ही रहने को मजबूर कर जाता है. इसी सिलसिले में कारा अधीक्षक ने एक नयी योजना शुरू की थी जिसका नाम रखा गया ‘स्वेच्छा से जमा करो योजना’.उसका सार्थक परिणाम सामने आया ‘स्वेच्छा से जमा करो योजना’ के तहत कैदियों ने 24 मोबाइल फोन जमा कर दिए. जो इस आदर्श जेल में आदर्श नमूना बन गया. 

आप माने न माने परन्तु यह सच है  

आज भी आदर्श केन्द्रीय कारा बेऊर में मोबाइल फोन का भंडारण विराजमान है. जेल के अंदर और बाहर विशेष तरह की सुरक्षात्मक कदम उठाने के बावजूद मोबाइल फोन बड़ी सुगमता से अंदर पहुंचा दिया जाता है. इसको लेकर पदस्थापित कारा अधीक्षक परेशान हो जाते हैं.समय समय पर छापामारी मारने के बावजूद जेल परिसर में मोबाइल रिंग टोन आ जाती है. एक से बढ़कर एक कर्णप्रिय धुन बजती रही. इससे कारा अधीक्षक के अलावे अन्य अधिकारी चिंतित हो जाते हैं। चूंकि अभी तक जेल में जेम्बर लगाने की व्यवस्था को अमलीजामा नहीं पहुंचाया जा सका है. 

 
पल-पल बगले तलाशने के बावजूद  

पल-पल और जगह-जगह बगले तलाशने के बावजूद 
भी जेल के अन्दर मोबाइल पहुंच ही जाता है.जेल के अन्दर जाने के पहले कैदी की तलाशी ली जाती है. और तो और कैदी से मुलाकात करने वालों को मुक्कमल गेट पर तलाशी ली जाती है. मुलाकातियों को मैटल चेकअप करने के बाद ही मुलाकात करने की अनुमति दी जाती है. उसके बाद भी जेल में रिंग टोन बन्द कराने में जेल प्रशासन नाकामयाब है. हर छापामारी में मोबाइल फोन बराबद होता ही रहता है.इससे जाहिर होता है कि सर्वाधिक सुरक्षित समझे वाले स्थानों में बड़ी सहुलियत से सेंधमारी की जा सकती है. आदर्श कारा बेऊर के सुरक्षातंत्र तार-तार है और तो और सुरक्षा में लगाएं सुरक्षा प्रहरी लापरवाह और निकम्मा  हो गए हैं. ऐसे लोगों के बल पर कारा में अनुशासन और व्ववस्था बनाये रखना खतरे से खाली नहीं है,खतरे को दावत देने जैसे है. आखिरकार कारा में मोबाइल-मोबाइल खेल का अंत कब होगा.यह यक्ष सवाल है.विफल होने के पीछे इच्छाशक्ति का अभाव भी दर्शाता है. 

कारा से छुटकर आने वाले ने कलई खोली 

कैदी ने कहा कि जब कारा से कैदी कोर्ट में सुनवायी करने वाहन से जाते हैं. सुनवायी की तारीख पर कैदियों के परिजन और शुभचिंतक भी जाते हैं. अपने कैदी की इच्छानुसार समान भी ले जाते हैं.उस समय समानों की तलाशी नहीं ली जाती है. कारण की कोर्ट के हाजत में कैदी रहते हैं. वहीं पर कारा के आरक्षी भी रहते हैं.झोली में भरा समान को कैदी वाहन में रख दिया जाता है.मुलाकाती करवाते समय लुजपुंज की व्यवस्था बन जाती है. मसलन आप मजे से टिफिन बॉक्स में दाल और भात के साथ मोबाइल ले जा सकते हैं. ब्रेड और बिस्किट के बीच में स्मैक, गांजा, भांग, बीड़ी, सिगरेट, पान मशाला, गुटका आदि रख सकते हैं. तरकारी खरीदकर सब्जी के बीच में अवैध ढंग समान लेकर जा सकते हैं. इसमें वाहन के चालक भी चालाकी से झोलों को रखकर जेल के अंदर पहुंचाने में सहायता करते हैं. तब न कारा में छापामारी करने के दरम्यान अवैध समान बराबद होते रहता है. 

यह सवाल है ? 
क्या बेऊर कारा में मोबाइल फोन का कारखाना अथवा सेल काउंटर है जहां से मोबाइल फोन को खरीदा जा सकता है.अबतक सर्वाधिक सुरक्षित माने जाने वाले जेल भी असुरक्षित ही हो गया है.कुछ  ही रूपए  देने से कारा में राज कायम किया जा सकता है. यहां नशापान की दुकान सजायी जा सकती है. रूपए  देने से राइटर और कारा पुलिस ठगे जा सकते  हैं.किसी तरह का कार्य करने के लिए रजामंद किए जा सकते  हैं. यह सब बिहार के कारा में हो रहा है. मजे से वे  टिफिन बॉक्स में दाल और भात के साथ मोबाइल भी कारा के अन्दर पहुंचाने में सहयोग कर सकते हैं. यह पढ़कर आप जरुर चौक गए होंगे, मगर चौकियें नहीं, यह एक नया तरीका इजाद किया गया है. 

प्रिजन एक्ट की धारा में बदलाव की जरूरत 

कारागार के अधिकारियों के मुताबिक जेल में मोबाइल फोन समेत अन्य प्रतिबंधित चीजों के इस्तेमाल पर प्रिजन एक्ट की धारा 42 और 43 के तहत छह महीने की सजा और 200 रुपये जुर्माने का प्रावधान है. यह दंड काफी कम है. अब जेलों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को पूरी तरह से रोकने के लिए इस धारा में संशोधन करने की जरूरत है.इसमें जो भी बंदी प्रतिबंधित सामान रखने का दोषी होगा, उसे धारा 43 के तहत तीन साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माना लगना चाहिए.ये सजा उसके मूल अपराध की सजा से अलग होनी चाहिए.अगर कोई जेलकर्मी या अधिकारी उसे मोबाइल फोन या अन्य प्रतिबंधित सामान जेल के अंदर उपलब्ध करवाते हैं तो वे भी इस धारा के तहत दंडित हो. 

मार्च महीने में ही बेऊर जेल में  

मार्च महीने में ही बेऊर जेल में एक-दो नहीं बल्कि तीन बार छापेमारी की गई. 3, 7 और 8 मार्च को छापेमारी में हर दफे मोबाइल फोन बरामद हुआ. 7 मार्च को एक हिंदी दैनिक ने ‘ बेऊर जेल से फोन कर के मांगी 5 लाख की रंगदारी’ शीर्षक से छपी खबर के बाद कारा प्रशासन द्वारा जेल में छापेमारी की गई थी.इस दौरान वहां एक मोबाइल और चार्जर मिला.वहीं 8 मार्च को जेल आईजी की मौजूदगी में तीसरी दफे छापेमारी हुई तो फिर से 2 मोबाइल और 1 पेन ड्राइव के अलावा प्रतिबंधित सामग्री मिली थी.इसके अलावा जेल में कुख्यात सुभाष सिंह द्वारा बंदी को डराने-धमकाने का वीडियो वायरल हुआ था. इस मामले में भी उनकी लापरवाही सामने आई है. इससे पहले बेऊर जेल के उपाधीक्षक संजय कुमार को निलंबित किया गया था.    

बिहार में केवल जेल अधीक्षक ही मोबाइल रख सकते 

जेल में अधीक्षक को छोड़ कोई भी अधिकारी या कर्मचारी मोबाइल नहीं ले जा सकते. अधीक्षक भी मोबाइल अपनी जिम्मेदारी पर ले जाएंगे.इसके अलावा ड्यूटी के दौरान उपाधीक्षक, सहायक अधीक्षक समेत कोई भी पदाधिकारी और कर्मी अपना मोबाइल जेल के अंदर नहीं ले जाएंगे. यह सुनिश्चित करना अधीक्षक की जिम्मेवारी होगी. ऐसा करने में विफल होने पर उनपर कार्रवाई हो सकती है.  
आईजी कारा एवं सुधार सेवाएं मिथिलेश मिश्र द्वारा जारी आदेश के मुताबिक अक्सर ड्यूटी के दौरान उपाधीक्षक, सहायक अधीक्षक, लिपिक, चिकित्सा पदाधिकारी, पारा मेडिकल स्टॉफ, प्रोग्रामर और कम्प्यूटर ऑपरेटर मोबाइल फोन अपने साथ रखते हैं. यह कारा की सुरक्षा के लिए सही नहीं है. उन्होंने तत्काल प्रभाव से इसपर रोक लगाने का आदेश दिया है. 

अधीक्षक देंगे प्रमाण पत्र 
कैदियों के न्यायालय में वर्चुअल प्रोडक्शन के काम के अलावा किसी भी पदाधिकारी और कर्मचारी द्वारा जेल के अंदर न तो मोबाइल फोन का प्रयोग हो रहा नहीं कोई फोन लेकर आ रहा, इसका प्रमाण-पत्र सभी अधीक्षकों को देना होगा. इसके बावजूद यदि निरीक्षण के दौरान जेल में कोई भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते पाया गया तो संबंधित अधीक्षक जिम्मेवार होंगे.वहीं अधीक्षक, व्यक्तिगत जिम्मेवारी पर कार्यालय कक्ष में अपना मोबाइल फोन साथ ले जा सकते हैं. 
वहीं कोरोना की वजह से विचाराधीन बंदियों की स्थानीय न्यायालय में वर्चुअल पेशी को सुनिश्चित कराने के लिए प्रोग्रामर, सहायक प्रोग्रामर या कम्प्यूटर ऑपरेटर जरूरत के मुताबिक मोबाइल फोन का प्रयोग जेल में कर सकते हैं. यह जेल अधीक्षक की अनुमति और देखरेख में हो सकता है.  
 

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