डा शारिक़ अहमद ख़ान
ये लखनऊ का कश्मीरी वाज़वान है.जब मुग़ल बादशाह ने अवध में अपना नायब नियुक्त किया तो पहले फ़ैज़ाबाद अवध की राजधानी बनी.ऐसे में वहाँ पढ़े-लिखे लोगों की मांग बढ़ी जो राजकीय कार्यों को संभाल सकें.इसी क्रम में कश्मीर से कश्मीरी मुसलमान और कश्मीरी पंडित फ़ैज़ाबाद आए जो अपने दौर के हिसाब से उच्च शिक्षित थे,वो हुक़ूमत के ख़ादिम हुए.जब राजधानी फ़ैजाबाद से लखनऊ आयी तो कश्मीरी लोग भी लखनऊ आ गए,कश्मीरी पंडितों को नवाब द्वारा एक बड़ा बाग़ रहने के लिए दिया गया जो कश्मीरी मोहल्ला कहलाया.
कश्मीरी मुसलमान दूसरी जगह बसे जहाँ बाद में नवाब के हरम की एक राजपूत बेगम ठकुराईन की मज़ार बाद में बनी.जब कश्मीरी लखनऊ में बसे तो उनके साथ उनका कश्मीरी खानपान का कल्चर भी आया जो सदियों से लखनऊ के कश्मीरियों के घरों में जस की तस लज़्ज़त के साथ कायम है.आज उन्हीं कश्मीरी लोगों में से एक के यहाँ लखनऊ का कश्मीरी वाज़वान डिनर में मिला जो तस्वीर में है.तस्वीर में जो थाल नज़र आ रही है इसे ट्रामी कहते हैं.
प्लेट में सादा चावल है,मेथी माज़ है.माज़ गोश्त को कहते हैं.मेथी माज़ में बकरे की आंतों को मेथी के साथ ख़ास विधि से पकाया जाता है.चावल की प्लेट में सींक कबाब भी है और तबक माज़ भी है,तबक माज़ बकरे की सीने की हड्डियों से लगे गोश्त से बनता है.अब बाएं से नज़र डालें तो सफ़ेद सालन गोश्ताबा रक़ाबी में है.दूसरी में वज़ा पालक है,जो पालक और छोटे कोफ़्तों से बनता है,तीसरी में रूवांगन छमन है जो टमाटर और पनीर से बनी डिश है,ये बकरे की चर्बी में पकती है.चौथी रक़ाबी में रोग़न जोश है,जिससे सब शौक़ीन परिचित हैं और लोगों के घरों में भी पकती है.पांचवी रक़ाबी में रिस्ता है,ये लाल सालन वाला कोफ़्ता है.आज हमें लखनऊ के किश्मी मतलब कश्मीरी वाज़वान तक पहुँचाने का श्रेय एक न्यूरोलॉजिस्ट मित्र को है.
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