नक्सलवाद पर लगाम क्यों नहीं लग पा रहा

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नक्सलवाद पर लगाम क्यों नहीं लग पा रहा

जनादेश ब्यूरो  
छत्तीसगढ़.राज्य में नक्सल समस्या बहुत पुरानी है. लाल आतंक को खत्म करने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही है. बावजूद इसके नक्सल समस्या बरकरार है. छत्तीसगढ़ में सरकार बीजेपी की हो या फिर कांग्रेस की हो. नेता और मंत्री नक्सल समस्या को सिर्फ मंच से खत्म करने की गाथा गाते हैं. बावजूद इसके नक्सलवाद पर लगाम नहीं लग सका है. अब एक बार फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नक्सलियों से मुख्यधारा में जुड़ने की अपील की है. 

मालूम हो कि छत्तीसगढ़ राज्य मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 (84वाँ संविधान संशोधन: अनुच्छेद 03 के तहत राज्यों का गठन) द्वारा भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश से पृथक होकर 01 नवम्बर, 2000 को 31 अक्टूबर की मध्यरात्रि से भारतीय संघ का 26वाँ राज्य बना.राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ में 3200 से अधिक मुठभेड़ की घटनाएँ हुई हैं. गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2001 से मई 2019 तक माओवादी हिंसा में 1002 माओवादी और 1234 सुरक्षाबलों के जवान मारे गये हैं. इसके अलावा 1782 आम नागरिक माओवादी हिंसा के शिकार हुए हैं. इस दौरान 3896 माओवादियों ने समर्पण भी किया है.2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि 30 नवंबर तक राज्य में 31 माओवादी पुलिस मुठभेड़ में मारे गये थे, वहीं 270 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था. 

बताया जाता है कि माओवादी मुठभेड़ और आत्मसमर्पण की ख़बरों के बीच-बीच में शांति वार्ता की पेशकश की चिट्ठी और विज्ञप्तियां भी आती-जाती रहती हैं लेकिन बात कहीं पहुंचती नहीं है.सीएम भूपेश बघेल ने बिलासपुर में नक्सल मामले में बड़ा बयान दिया है. सीएम ने कहा कि नक्सली भारत के संविधान पर विश्वास करें. हथियार छोड़कर संवैधानिक तरीके से बात करें. सरकार कहीं भी किसी भी मंच पर बातचीत के लिए तैयार है. 

कांग्रेस तत्कालीन भाजपा सरकार पर बस्तर में नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों को फर्जी मामलों में फंसाने का आरोप लगाती रही है. साल 2018 के चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार बनी तो जेलों में बंद आदिवसियों को रिहा किया जाएगा. भूपेश सरकार ने जस्टिस पटनायक की अध्यक्षता में कमेटी बनाई. इस समिति ने बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर, कोंडागांव और राजनांदगांव जिलों के अनुसूचित जनजाति वर्ग के केस पर मंथन किया है. कुछ आदिवासियों की रिहाई भी हो चुकी है. 

कवायद नक्सली समस्या से निपटने के लिए पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह सरकार ने भी अपनी ओर से कवायद की थी, लेकिन उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलते देख सरकार ने दिशा बदल ली. रमन सरकार की यह कवायद सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के नक्सलियों के अपहरण करने के बाद शुरू हुई थी.21 अप्रैल 2012 - सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का मांझीपारा गांव से नक्सलियों ने अपहरण किया. कलेक्टर की रिहाई के लिए सरकार ने नक्सलियों से चर्चा की शुरूआत की. नक्सलियों ने मध्यस्थता के लिए दो नाम तय किए. एक नाम बस्तर के पूर्व कलेक्टर बीडी शर्मा और दूसरा नाम प्रोफेसर हरगोपाल बताया.3 मई 2012 - बीडी शर्मा और प्रो. हरगोपाल कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए नक्सलियों से बातचीत करने ताड़मेटला के जंगल गए. नक्सलियों से चर्चा के बाद अलेक्स पॉल मेनन को साथ लेकर लौटे.3 मई 2012 - छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों से हुए समझौते के तहत छत्तीसगढ़ के जेलों में निरुद्ध नक्सलियों के मामलों के पुनर्विचार के लिए मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति का गठन किया.4 सितंबर 2014 - निर्मला बुच समिति ने ढाई साल की अवधि में 9 बैठकों में जेल में 2 साल से ज्यादा समय से और छोटे प्रकरणों में निरूद्ध नक्सलियों से जुड़े 654 मामलों पर विचार किया. 306 प्रकरणों में बंदियों की जमानत पर रिहाई की अनुशंसा भी की. 

इस बीच 03 अप्रैल को हुई गोलीबारी में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में भारत के 22 जवानों ने शहादत दी है. इन 22 शहीदों ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि इसी देश में रहने वाले लोग, इसी देश का नमक खाने वाले कुछ लोग. देश के साथ गद्दारी करेंगे और उनके ऊपर छिपकर वार करेंगे. देश के लिए जान न्योछावर कर देने से बढ़कर कोई सेवा हो नहीं सकती. इसीलिए हम इसे सर्वोच्च बलिदान कहते हैं. आज भारत के 135 करोड़ लोगों की तरफ से हम इन शहीदों के परिवार वालों को कहना चाहते हैं. कि ये देश हमेशा इन शहीदों का ऋणी रहेगा. 

छतीसगढ़ में कैथोलिक समुदाय के नेतृत्व करने वाले रायपुर महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष हेनरी ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा है, "मैं अत्यन्त दुःखी हूँ कि हमारे सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी करते हुए मारे गये.इस तरह की हिंसा को किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता. 

03अप्रैल को हुई गोलीबारी पिछले चार सालों में सबसे दिल दहलाने वाली है.चालीस वर्षों से माओवादी विद्रोही, जिन्हें नक्सली कहा जाता है, सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया है. वे सबसे गरीब और आदिवासी लोगों की रक्षा का हवाला देते हैं, जिन्हें भारत के आर्थिक विकास से कोई लाभ नहीं होता. 

महाधर्माध्यक्ष ठाकुर ने कहा, "हम किसी विवाद या असहमति का हल वार्ता से कर सकते हैं, हिंसा द्वारा कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ है." उन्होंने मृतकों की आत्मा की अनन्त शांति एवं दुखित परिवारवालों की सांत्वना के लिए प्रार्थना की. 

बीजापुर और सुकमा जिले के बॉर्डर पर हुई इस मुठभेड़ ने छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है.हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब नक्‍सली हमले में जवानों ने अपनी जान गंवाई है.इससे पहले भी नक्सली हमले में कई जवान शहीद हो चुके हैं.आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, 2010 के बाद से इस क्षेत्र में नागरिकों के अलावा, लगभग 200 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं. 

छत्तीसगढ़ के नक्सल विरोधी अभियान के पुलिस उप महानिरीक्षक ओपी पाल ने बताया कि शुक्रवार रात बीजापुर के जंगल में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना थी. इसके बाद उसी  रात बीजापुर और सुकमा जिले से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के कोबरा बटालियन, DRG और STF के संयुक्त दल को नक्सल विरोधी अभियान में रवाना किया गया था. इस टुकड़ी में करीब 2 हजार जवान शामिल थे. 

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा और बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में शनिवार को सुरक्षा बलों पर नक्सलियों की बटालियन नंबर एक ने हमला किया था। इस बटालियन ने बस्तर क्षेत्र में बड़ी नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया है जिसका नेतृत्व नक्सली कमांडर माड़वी हिडमा करता है। 

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुई नक्सली घटना से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है. नक्सलियों का बयान आया है कि कमांडो राकेश्वर उनके पास हैं. कमांडो राकेश्वर को छोड़ने के लिए नक्सलियों ने अपनी शर्त रखी है. चिट्ठी लिखकर अपनी शर्त नक्सलियों ने सामने रखी है और कहा है कि सरकार पहले मध्यस्थों के नाम का एलान करे. इसके बाद वो सीआरपीएफ के कमांडो राकेश्वर सिंह को छोड देंगे. 


अपनी चिट्ठी में नक्सलियों ने लूटे हुए 14 हथियारों और 2 हजार से ज्यादा कारतूस मिलने की बात भी स्वीकार की है. वहीं ये भी माना है कि चार नक्सली उस हमले में मारे गए. नक्सलियों ने बाकायदा एक प्रेस रिलीज जारी करके ये बात बताई है. ये प्रेस नोट नक्सलियों की दण्डकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने जारी किया है. 

* 15 मार्च 2007 को बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला,55 शहीद 

* 12 जुलाई 2009, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में घात लगाकर किए गए हमले में पुलिस अधीक्षक वीके चौबे समेत 29 जवान शहीद  

* 06 अप्रैल 2010 को सुकमो के ताडमेटला में सीआरपीएफ जवानों पर हमला,76 शहीद 

* 17 मई 2010 को दंतेवाड़ा में 12 स्पेशल पुलिस फोर्स के जवानों समेत 36 लोगों की जान गई 

* 29 जून 2010 को नारायणपुर ज़िले में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 27 जवान शहीद हो गए 

* 25 मई 2013 को बस्तर जिले के झीरम घाट में कांग्रेस काफिले पर हमला होने से पूर्व केंद्रीय मंत्री विधाचरण शुक्ल व अन्य पर,31 कांग्रेसी व जवान शहीद 

* 11 मार्च 2014 को सुकमा जिले के टाहकवाड़ा में हमला,15 शहीद 

*01 दिसंबर 2014, सुकमा जिले के चिंता गुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया, नक्सलियों के इस हमले में 14 जवान शहीद और 12 घायल हुए 

* 12 अप्रैल 2015 को बस्तर जिले दरभा में एंबुलेंस को विस्फोट से उड़ाया,15 जवान,ड्राइवर व स्वास्थ्यकर्मी शहीद  

* 25 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले के  बुरकापाल में सीआरपीएफ जवानों पर हमला, 25 शहीद 
* 06 मई 2017 को सुकमा के कसलापाड़ा में घात लगाकर हमला,14 जवान शहीद 
* 09 अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा के श्यामगिरी में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी और उनके चार सुरक्षाकर्मियों की नक्सलियों ने हत्या कर दी 
* 23 मार्च 2020 को सुकमा जिले के मिनपा में जवानों पर हमला,17 शहीद 
* 23 मार्च 2021को नारायण में जवानों की बस को विस्फोट से उड़ाया,05 शहीद 
* 03 अप्रैल 2021 को बीजापुर जिले के तरेंम में मुठभेड़,22 शहीद 
 

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