अमित प्रकाश सिंह
दिल्ली में कोरोना की बढत को देखते हुए सरकार ने शहर में रात का कर्फ्यू लगा दिया है.ऐसे में प्रेस क्लब क्या इतना महत्वपूर्ण संस्थान है कि इसके चुनाव इसी महीने कराए जाएं.देश के पांच राज्यों में हो रहे चुनाव की नकल में इस चुनाव को नहीं देखा जाना चाहिए. क्योंकि क्लब एक मनोरंजन स्थल भी है .हालांकि इसके कुल सदस्य ही कितने हैं और कितने फीसद चुनाव में मतदान करने आ सकेंगे. इसे भी समझा जाना चाहिए.यह सब इसलिए जरूरी है क्योंकि पत्रकार सामाजिक प्राणी है उसे टीकाकरण में भाग लेना है और दिहाड़ी करनी है.परिवार चलाने के लिए भागदौड भी करनी है.
यह सही है कि कि दिल्ली प्रेस क्लब में सालाना सदस्यता शुल्क और खाने पीने की चीजें लगातार महंगी होती गई हैं.लेकिन इन पर कभी कोई चिंता नहीं हो पाती क्योंकि क्लब में एसोसिएट मेंबरशिप बडी तादाद में है.प्रेस क्लब ने आज तक क्लब में आने वालों के लिए कोई ड्रेस कोड महिलाओं और पुरुषों के लिए तय नहीं किया.लेकिन यदि कोई कैपरी पहन कर जाएं तो आपत्ति फौरन होती है. क्यों . क्लब में अतिथि शुल्क दिन में सब पर क्यों लागू नहीं दिखता .यदि शुल्क वसूलने में समस्या है तो उसे खत्म कर दिया जाए. पत्रकार अपने परिवार के साथ अब इस क्लब में कम आते हैं क्योंकि जब यहां आने पर बाजार से ज्यादा खाने-पीने पर देनी है और फिर क्वालिटी भी चौपट है तो क्यों यहीं आएं.
प्रेसक्लब को सामान्य तौर पर अखाडा राजनीति का केंद्र बनाने की कोशिशों का विरोध होना चाहिए.यह क्लब पत्रकारों का है तो यहां देश और विदेश में पत्रकारों के साथ हो रहे अन्याय की बात होनी चाहिए.देश के कन्फलिक्ट वाले इलाकों में पत्रकारों के साथ शोषण और दमन की समस्याओं पर बात होनी चाहिए.देश में पत्रकारिता से जुडे और मारे पत्रकारों के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिए.दिल्ली प्रेस क्लब को देश में महिला पत्रकारों और पुरुष पत्रकारो के काम संबंधी,वेतन संबंधी ,विभिन्न वेज आदि की अनदेखी और अखबारों ,टीवी प्रबंधन की साजिशों का विरोध करने का मंच बनना चाहिए.
प्रेस क्लब को अपनी आमदनी का केंद्र बनाने वालों ,इसे आफिस बतौर इस्तेमाल किए जाने का विरोध किया जाना चाहिए. क्लब वर्क सेंटर नहीं हुआ करते .आज देश और राजधानी दिल्ली कोरोना की चपेट में है.रात का कर्फ्यू लग चुका है .ऐसे में क्लब का चुनाव टाल दिया जाना चाहिए.
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