रीता तिवारी
दीव यानी देश के पश्चिमी छोर पर अरब सागर के किनारे बसा एक नन्हा-सा द्वीप. लेकिन यह नन्हा-सा खूबसूरत समुद्रतटीय शहर अपने-आप में कितनी विविधता और खूबसूरती समेटे है, इसका अंदाजा यहां आये बिना लगाना बहुत मुश्किल है. एक वाक्य में कहें तो सागर किनारे बसी यह जगह खुद गागर में सागर है. इसका इतिहास जितना पुराना है संस्कृति उतनी ही समृद्ध.
गुजरात दौरे का कार्यक्रम बना तो नक्शे पर देखा कि यह जगह सोमनाथ से कोई घंटे-डेढ़ घंटे की दूरी पर ही है. बस इसके लिए एक दिन और निकाल लिये. सोमनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन और उसके बाद मंदिर से लगे जिस सागर दर्शन अतिथि गृह में ठहरे थे, वहां नाश्ता करने के बाद सुबह कोई दस बजे हम दीव के लिए निकले. ऊना होकर कोई सवा ग्यारह बजे हम दीव के प्रवेश द्वार पर खड़े थे. जी हां, देश के बाकी हिस्सों से इस द्वीप को जोड़ने वाली सड़क पर एक प्रवेश द्वार बना है. वहां बाहरी गाड़ियों और पर्यटकों को टैक्स भर कर ही दीव में घुसना होता है. गेट से भीतर जाते ही लगता है कि हम किसी केंद्र शासित प्रदेश नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश में पहुंच गये हों. सड़कों के किनारे बने छोटे-छोटे सुंदर मकान. सड़क के साथ चलती नदी और इसमें मछुआरों की सैकड़ों नावें बेहद सम्मोहक नजारा पेश कर रही थीं.
यह शहर गुजरात के काठियावाड़ तटीय क्षेत्र के पास मुख्यभूमि से थोड़ा हट कर है. इसका एक भाग उत्तरी गुजरात के जूनागढ़ और अमरेली जिलों से सटा है जबकि बा़की तीन तऱफ समुद्र पसरा है. यह द्वीप दो पुलों के जरिये मुख्यभूमि से जुड़ा है. माना जाता है पौराणिक काल में यहां जालंधर नामक दैत्य का राज था, जिसका अंत भगवान विष्णु ने किया था. वनवास के दौरान पांडव भी यहां कुछ दिन रुके थे. द्वारिका नगरी बसाये जाने के बाद यह क्षेत्र भगवान कृष्ण के प्रभाव में भी रहा. ईसा से 322-320 वर्ष पूर्व यह मौर्यवंश के आधिपत्य में था. बाद में यहां गुप्त और चालुक्य राजाओं का प्रभाव रहा. दीव ने कई बाहरी आक्रमण भी झेले हैं. पुर्तगाली यहां 16वीं शताब्दी में व्यापार के लिए आये थे. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने दीव को अपना उपनिवेश बना लिया. दीव साल 1535 से 1961 तक पुर्तगालियों के कब्जे में रहा. साल 1961 में भारत सरकार के आपरेशन विजय के तहत गोवा और दमन के साथ यह द्वीप भी भारत का हिस्सा बन गया. लगभग 425 वर्षो तक पुर्तगालियों के कब्जे में रहने की वजह से दीव के भवनों, किलों, भाषा, संस्कृति और जीवनशैली पर पुर्तगाली सभ्यता का प्रभाव साफ देखने को मिलता है.
यहां गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी और पुर्तगाली भाषाएं बोली और समझी जाती हैं. स्थानीय लोगों को शायद फूलों से बेहद लगाव है. शहर में बने छोटे-बड़े हर मकान में फूलों के पौधे देखने को मिलते हैं. हमारे ड्राइवर हीरालाल ने बताया कि गुजरात के विभिन्न शहरों के अलावा मुंबई के अमीर लोगों ने भी इस शांत जगह पर चैन से छुट्टियां बिताने के मकसद से यहां मकान खरीद या बनवा लिये हैं. उसकी बातें सुनने के बाद तालाबंद मकानों की हकीकत समझ में आयी.
एक लंबा-सा ब्रिज पार कर हम शहर में घुसे. हमारे एक पारिवारिक मित्र ने रहने के लिए जिस रसल बीच रिसॉर्ट में हमारी बुकिंग करायी थी वह नागोआ बीच पर था. दीव एअरपोर्ट के ठीक सामने. होटल के कमरे की बालकनी से सामने हवाईपट्टी भी साफ नजर आ रही थी. यह जगह मुख्य शहर से कोई दस किलोमीटर दूर है. लेकिन यह कहने में कोई दुविधा नहीं है कि दीव में ठहरने के लिये नागोआ बीच से सुंदर कोई दूसरी जगह नहीं है. इसका अहसास हमें शाम के समय हुआ जब शहर के चक्कर लगाने के बाद हम इस बीच पर आये. बैंकाक की तर्ज पर वाटर स्पोर्ट्स, वाटर स्की, बोट राइडिंग और वाटर बाइक से लेकर सबकुछ तो यहां मौजूद था. लगा लोग बेकार मोटी रकम खर्च कर इनका लुत्फ उठाने के लिए विदेशों का रुख करते हैं. इस अर्धचंद्राकार बीच पर खाने-पीने के कई रेस्तरां भी हैं. इसके अलावा अगर खेलों में आपकी दिलचस्पी नहीं है तो आप किनारे बैठ कर चाय की चुस्की के साथ दूसरों को ऐसा करते देख सकते हैं.
दीव में सौराष्ट्र की जीवनशैली की भी झलक देखने को मिलती है. दरअसल पुर्तगालियों के कब़्जे से पहले यह द्वीप गुजरात का ही हिस्सा था. साफ-सुथरी सड़कों वाले छोटे से दीव कस्बे में घूमने की जगहें ज्यादा नहीं हैं, लेकिन यही बात इसे बाकी पर्यटन स्थलों से अलग करती है. सैलानी यहां बिना थके प्रकृति का लुत्फ उठा सकते हैं.
दीव किला यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है. इसलिए हमारा भी पहला पड़ाव वही था. अक्तूबर का महीना होने के बावजूद सिर पर सूरज आग उगल रहा था. यह लगभग 5.7 हेक्टेयर क्षेत्र में बना हुआ है और सागर के भीतर समाता लगता है. किले के बीच में पुर्तगाली योद्धा 'डाम नूनो डी कुन्हा' की कांसे की मूर्ति भी बनी हुई है. यहां एक प्रकाश स्तंभ भी है जहां से पूरे दीव का नजारा दिखता है. यह किला तीन दिशाओं में समुद्र से घिरा है तो चौथी दिशा में एक छोटी-सी नहर इसकी सुरक्षा करती है. किले का गेट भी इधर ही है. इस किले का निर्माण गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने पुर्तगालियों से संधि के तहत मु़गल आक्रमण से बचाव के लिए 16वीं सदी में कराया था. उस दौर में किले की प्राचीर पर तैनात की गयी कई तोपें आज भी देखी जा सकती हैं. हालांकि वक्त के थपेड़ों से धीरे-धीरे उनकी रंगत फीकी पड़ती जा रही है. दीव का जेल भी इसी किले के एक हिस्से में बना है. किले के परकोटे से समुद्र की खूबसूरती देखते ही बनती है. किले के ठीक सामने समुद्र के बीचोबीच किले जैसी एक और छोटी सी इमारत है. इसे पानीकोटा कहते हैं. पत्थर की विशाल चट्टानों से बना यह दुर्ग एक समुद्री जहाज के आकार का नजर आता है. वहां तक नाव या मोटरबोट से ही पहुंचा जा सकता है.
किले से कुछ दूर ही जेट्टी है. वहां से नाव में बैठ कर खाड़ी की सैर की जा सकती है. शाम के समय दीव में बिजली की झिलमिलाती रोशनी में इस जेटी से शहर को निहारने का मजा ही अलग है. दीव में ज्यादातर आधुनिक मकान देखने को मिलते हैं. किले से निकलने के बाद हमारा अगला पड़ाव था सेंट पॉल चर्च. साल 1610 में बने इस चर्च की इमारत आज भी भव्य है. यहां से कुछ दूर पुराने सेंट थॉमस चर्च की इमारत को अब संग्रहालय बना दिया गया है.
यहां किले के रास्ते पर स्थित अपना होटल के ओपन एअर रोस्तरां में बैठकर समुद्री लहरों का लुत्फ उठाते हुए दोपहर के भोजन में चावल के साथ खायी झींगा मछली का स्वाद अब तक याद है. इसी तरह मुख्य बाजार में शाम के समय खायी गयी पानी पूरी का स्वाद भुलाना भी मुश्किल है.
दोपहर के खाने के बाद समुद्र के किनारे वाली सड़क पर चलते हुए हम सबसे पहले जालंधर बीच पहुंचे. इसके नजदीक की एक पहाड़ी पर जालंधर मंदिर और देवी चंद्रिका मंदिर स्थित हैं. जालंधर नामक दैत्य ने अंतिम समय में भगवान से यहीं क्षमाप्रार्थना की थी. आगे बढ़ने पर नजर आता है बेहद शांत चक्रतीर्थ बीच. जहां लहरों के शोर के अलावा कोई दूसरी आवाज कानों तक नहीं पहुंचती. तट के पास तेज हवा में लहराते नारियल के पेड़ और कुछ दूरी पर छोटी-छोटी पहाडि़यां इसकी शोभा बढ़ा रही थीं. इस तट की शांति अनायास ही कदमों को बांध कर कुछ देर ठहरने पर मजबूर कर देती है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक जालंधर दैत्य का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने यहीं से चक्र चलाया था. इसीलिए इसका नाम चक्रतीर्थ पड़ा. कुछ दूरी पर सनसेट प्वाइंट है जहां से सूर्यास्त का नजारा देखा जा सकता है.
इसी रास्ते पर समुद्र के किनारे भारतीय नौसेना के एक युद्धपोत ‘आईएनएस खुकरी’ का स्मारक है. यह 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की एक पनडुब्बी से छोड़े गये टारपीडो से नष्ट हो गया था. उसी की याद में एक छोटी पहाड़ी पर यह स्मारक बनाया गया.
दीव के फुदम गांव में समुद्र के किनारे एक झुकी हुई चट्टान के नीचे छोटी-सी गुफा है. मान्यता है कि वनवास के दौरान भटकते हुए पांडव यहां भी कुछ देर ठहरे थे. उन्होंने इस गुफा के भीतर पांच शिवलिंग स्थापित किए थे जो आज भी मौजूद हैं. यह गंगेश्वर महादेव मंदिर के नाम से मशहूर है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने पर यह शिवलिंग अक्सर जलमग्न हो जाते हैं. यह नजारा हमने भी देखा. लगा मानो समुद्र श्रद्धापूर्वक भगवान शिव का अभिषेक कर रहा हो. यह मंदिर स्थनीय लोगों की आस्था का केंद्र है. सोमवार का दिन होने की वजह से वहां पूजा-अर्चना करने वालों की भीड़ थी.
नागाओ बीच तक का रास्ता नारियल जैसे दिखने वाले पेड़ों से घिरा है. उनके ऊपरी हिस्से में हरी-भरी नयी पत्तियां दिख रही थीं और नीचे सूखी पत्तियां लटकी थीं. हमारे ड्राइवर ने बताया कि इनको ‘पॉम होका ट्री’ कहते हैं. नागोआ बीच की गिनती भारत के सुंदरतम समुद्र तटों में की जाती है. घोड़े की नाल के आकार के इस बीच पर बिखरी सुनहरी रेत इसके सौंदर्य में चार चांद लगाती है. यही कारण है कि वहां शाम के समय अच्छी-खासी रौनक थी. यहां भारतीय और विदेशी पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोग भी खूब आते हैं. यहां कई अच्छे होटल और रिसॉर्ट भी हैं. समुद्र में नहाने के लिहाज से यह जगह काफी सुरक्षित है.
दीव घूमने के लिए दीव फेस्टिवल का मौ़का सबसे बेहतर होता है. होटल के मैनेजर ने बताया कि दीव के मुक्ति दिवस के मौके पर होने वाले इस महोत्सव के दौरान देश-विदेश से भारी तादाद में सैलानी यहां पहुंचते हैं. तब होटलों में और बीच पर तिल धरने तक की जगह नहीं होती. इस महोत्सव के दौरान दीव की बहुजातीय संस्कृति की झांकी देखने को मिलती है. गुजराती संस्कृति से प्रभावित होने के कारण दीव के लोगों का पसंदीदा लोकनृत्य गरबा है. इसके साथ ही उस आयोजन में पुर्तगाली लोकनृत्य मांडो, वीरा आदि भी सैलानियों को आकर्षित करते हैं. सबसे बड़ी बात है कि दीव की खूबसूरती अनछुई-सी लगती है. यही चीज उसे दूसरे समुद्री पर्यटन केंद्रों से अलग और आकर्षक बनाती है.
अगले दिन भोर के उजाले में सूरज की पहली किरण के साथ दीव को अलविदा कहने का नजारा भी बेहद आकर्षक रहा. सूरज दूर तक हमारे साथ चलता रहा. मानो हमें विदा कर रहा हो.